दयाराम वशिष्ठ / फरीदाबाद (हरियाणा)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की साड़ी के कारीगरों की सूरजकुंड में काफी चर्चा है.हालांकि सूरजकुंड मेला शुरू हुए अभी दो-चार दिन ही हुए हैं, पर इन कारीगरों की बनाई गई बनासरी साड़ियों के काफी चर्चे हो रहे हैं. इनके स्टाॅल पर खरीदारों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है.
हर साल की तरह इस बार भी सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेला (Surajkund International Crafts Mela) में कारीगरों और शिल्पकारों का जबरदस्त जमावड़ा देखने को मिल रहा है.यह मेला हरियाणा के फरीदाबाद स्थित सूरजकुंड में आयोजित किया जाता है, जो न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर के शिल्पकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बन चुका है.
इस मेले में कारीगर अपने उत्पादों का प्रदर्शन करते हैं और बड़े पैमाने पर कारोबार करते हैं.इस बार मेला परिसर में खासतौर पर मुस्लिम कारीगरों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है.
खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस (वाराणसी) से भी काफी संख्या में युवा शिल्पकारों ने इस मेले में भाग लेने के लिए अपने उत्पाद भेजे हैं, और वे स्टॉल के लिए संघर्षरत हैं.
बनारस से आए युवा शिल्पकारों का उत्साह और संघर्ष
38वें सूरजकुंड शिल्प मेले में इस बार खासकर बनारस से आये शिल्पकारों की उपस्थिति ने एक नया आकर्षण पैदा किया है.बनारस का हैंडलूम और बनारसी साड़ी के शिल्प की ख्याति दुनिया भर में है, और इस मेले में भाग लेने वाले इन शिल्पकारों की आंखों में अपने काम को और बड़ा बनाने का सपना है.हालांकि, कुछ युवा शिल्पकारों के लिए स्टॉल मिलने की उम्मीद अभी भी अनिश्चित बनी हुई है.
मोहम्मद जावेद का संघर्ष और उम्मीद
मोहम्मद जावेद, जो बनारस में रेलवे स्टेशन के पास एक पारंपरिक शिल्प कारखाने के मालिक हैं, बताते हैं कि उनका यह काम पुश्तैनी है.उनके परिवार के चार सदस्य भी इस कारोबार में लगे हुए हैं.
वह कहते हैं कि उनका लक्ष्य अब उत्पादन को बढ़ाना है, क्योंकि बनारसी साड़ी की मांग अब पहले की तुलना में बहुत अधिक बढ़ गई है.
हाल ही में उनका ट्रांसपोर्टर पर ढाई लाख रुपये का माल भेजा गया है, लेकिन स्टॉल के बिना उनकी योजनाओं को ठहराव का सामना करना पड़ रहा है.जावेद कहते हैं,
"अगर मुझे यहां स्टॉल मिल जाता है, तो मुझे अपने कारोबार को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी.
"जावेद अब अपनी उत्पादन प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए मशीनें लगाने की योजना बना रहे हैं,
ताकि उत्पादन की क्षमता बढ़ सके.साथ ही, वे डिजाइनिंग में भी नवीनतम तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसे कि कंप्यूटर द्वारा डिजाइनिंग, जो पहले केवल हाथ से किया जाता था.उनका मानना है कि यदि सूरजकुंड मेला में स्टॉल मिल जाता है, तो यह उनके लिए एक बड़ा अवसर होगा.
एक और युवा शिल्पकार, खुर्शीद अहमद, जिन्होंने 2016 में मात्र डेढ़ लाख रुपये से अपने कारोबार की शुरुआत की थी, इस बार सूरजकुंड मेले में अपनी जगह बनाने की उम्मीद में हैं.वे अपने चार अन्य साथियों के साथ फरीदाबाद के प्रहलादपुर में एक किराए के घर में रह रहे हैं.
अहमद का कहना है कि उन्हें यह नहीं पता था कि स्टॉल के लिए पहले आवेदन करना होता है.उन्होंने अब तक हजारों रुपये खर्च कर दिए हैं, और अगर इस बार स्टॉल नहीं मिला, तो उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
खुर्शीद अहमद ने अपनी व्यापार यात्रा में दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ और अहमदाबाद जैसे शहरों में मेले में भाग लेकर अपने कारोबार को बढ़ाया.उनका मानना है कि सूरजकुंड मेला उनके लिए एक बड़ा अवसर हो सकता है.वह कहते हैं, "अगर मुझे स्टॉल मिल जाता है, तो मैं ग्राहकों की मांग को समझकर अपने उत्पादों में और सुधार कर सकता हूं."
बिजनेस की शुरुआत और कर्ज का संघर्ष
खुर्शीद अहमद का कहना है कि उन्होंने अपने बिजनेस की शुरुआत करने के लिए कर्ज लिया था.उन्होंने कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद अधिकांश कर्ज चुका दिया है.
अब उनका मुख्य लक्ष्य अपने कारोबार को आगे बढ़ाना है, और सूरजकुंड मेला इसके लिए एक बेहतरीन मंच हो सकता है.वह यह भी कहते हैं कि भविष्य में वह समय से पहले स्टॉल के लिए आवेदन करेंगे ताकि उन्हें ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े.
गुलाम बक्स और अन्य युवा शिल्पकारों की उम्मीदें
इसके अलावा, गुलाम बक्स जैसे कई युवा शिल्पकार भी इस बार सूरजकुंड मेले में स्टॉल पाने की उम्मीद लगाए हुए हैं.ये सभी शिल्पकार अपनी मेहनत और कड़ी संघर्ष के साथ मेले में अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
उनका मानना है कि सूरजकुंड मेला जैसे बड़े मंच पर अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने से न केवल उनके कारोबार में वृद्धि होगी, बल्कि उन्हें अपने काम को और बेहतर बनाने के लिए जरूरी प्रेरणा भी मिलेगी.
सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेला हर साल शिल्पकारों के लिए एक शानदार अवसर लेकर आता है, जहां वे न केवल अपने उत्पादों को बेचने का मौका पाते हैं, बल्कि साथ ही अन्य शिल्पकारों से भी सीखने का अवसर मिलता है.
बनारस से आए ये युवा शिल्पकार इस मेले के जरिए अपने पारंपरिक व्यवसाय को न केवल बढ़ाने की उम्मीद कर रहे हैं, बल्कि नए तरीके और तकनीकों को अपनाकर इसे और बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं. इन शिल्पकारों की मेहनत, संघर्ष और उम्मीदों के साथ सूरजकुंड मेला उनके भविष्य को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.