सांप्रदायिक सद्भाव: बहराइच में एक मुस्लिम करता है मंदिर की देखभाल

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 24-01-2025
Communal harmony: A Muslim takes care of a temple in Bahraich
Communal harmony: A Muslim takes care of a temple in Bahraich

 

ज़ी सलाम / बहराइच ( उत्तर प्रदेश)

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के एक 58 वर्षीय धर्मनिष्ठ मुस्लिम व्यक्ति ने एक हिंदू मंदिर का प्रबंधन करने वाले ट्रस्ट के अध्यक्ष और कार्यवाहक के रूप में अपनी 18 साल की अटूट सेवा के माध्यम से एकता का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गए हैं.

अपने बचपन के एक जीवन-परिवर्तनकारी क्षण को याद करते हुए, अली ने बताया, "जब मैं सात साल का था, तो मुझे ल्यूकोडर्मा हो गया था, जिससे मेरी आँखें सफेद हो गई थीं. जब तक मेरी माँ मुझे घूरदेवी मंदिर नहीं ले गईं, तब तक उपचार विफल रहा." 
 
उत्तर प्रदेश के मस्जिदों और मजारों के नीचे मंदिर के अवशेष खोजने का सिलसिला लगातार जारी है. मंदिरों पर कथित कब्ज़े के लिए मुसलमान निशाने पर हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही मंदिर- मस्जिद विवाद की वजह से कई मुसलमानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया, वहीँ सैकड़ों लोग अभी भी पुलिस की हिरासत में है.
 
उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले से सांप्रदायिक सौहार्द की एक दिल को छू लेने वाली कहानी सामने आई है, जो हाल ही में सांप्रदायिक तनाव और भेड़ियों के हमलों के लिए सुर्खियों में रहा है.
 
मोहम्मद अली जो एक मुस्लिम हैं, एक हिंदू मंदिर का प्रबंधन करने वाले ट्रस्ट के केयरटेकर और अध्यक्ष के रूप में अपनी 18साल की लंबी सेवा के माध्यम से एकता का स्थायी प्रतीक बन गए हैं.

बहराइच जिला मुख्यालय से 27किलोमीटर दूर जैतापुर बाजार में, अली वृद्ध मातेश्वरी माता घुरदेवी मंदिर की देखरेख करते हैं, जो अब मुसलमानों द्वारा भी पूजनीय स्थल है.

रोजा और नमाज जैसी इस्लामी परंपराओं का पालन करते हुए, 58 वर्षीय अली देवी घुरदेवी और भगवान हनुमान की पूजा में भी खुद को समर्पित करते हैं, अपनी दोहरी भूमिकाओं को उल्लेखनीय समर्पण के साथ संतुलित करते हैं.

अली अपने बचपन के एक महत्वपूर्ण मोड़ को याद करते हैं, "जब मैं सात साल का था, तो मुझे ल्यूकोडर्मा हो गया था, जिससे मेरी आंखें सफेद हो गई थीं. जब तक मेरी माँ मुझे घुरदेवी मंदिर नहीं ले गईं, तब तक इलाज विफल रहा." उन्होंने आगे कहा कि उनका मानना ​​है कि "पवित्र पिंडी से जल लगाने" से यह बीमारी ठीक हो गई, जिसने मंदिर से उनके आजीवन जुड़ाव को प्रेरित किया.

उन्होंने कहा कि उन्होंने 2007में वहां सक्रिय रूप से सेवा करना शुरू किया, जब उन्हें एक नाटकीय सपना आया जिसमें देवी ने उन्हें मंदिर की देखभाल करने के लिए कहा. अली के नेतृत्व में, मंदिर का विकास हुआ है. फसल के मौसम के दौरान अनाज संग्रह के माध्यम से धन जुटाने जैसी पहलों ने महत्वपूर्ण संसाधन जुटाए हैं.

अली ने बताया, "इस साल अकेले मंदिर के विकास के लिए 2.7लाख रुपये जुटाए गए." सार्वजनिक योगदान और सरकारी सहायता ने भी इसके जीर्णोद्धार में मदद की है, जिसमें निर्माण और रखरखाव के लिए 30.“40लाख रुपये से अधिक का उपयोग किया गया है.

हाल ही में, जयपुर से 2.5 लाख रुपये में मंगाई गई 5.5 फीट की हनुमान मूर्ति की पांच दिवसीय समारोह के दौरान प्राण प्रतिष्ठा की गई, जिसमें हजारों लोगों ने भाग लिया. कार्यक्रम के निमंत्रण कार्ड में मुख्य अतिथि के रूप में स्थानीय भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह के साथ मंदिर समिति के अध्यक्ष के रूप में अली का नाम प्रमुखता से दिखाया गया था. जिला पर्यटन अधिकारी मनीष श्रीवास्तव ने दो साल पहले मंदिर को धार्मिक पर्यटन पहल में शामिल किए जाने की पुष्टि की थी, जिससे इसका दर्जा और बढ़ गया.

मंदिर का प्रभाव धार्मिक सीमाओं से परे है, जो मुस्लिम महिलाओं को आकर्षित करता है जो हिंदू भक्तों के साथ प्रार्थना में शामिल होती हैं.

अली ने कहा, "मैं हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों का सम्मान करता हूं. मंदिर की सेवा करना मेरी भक्ति और सांप्रदायिक एकता के प्रति मेरी प्रतिबद्धता को पूरा करता है."

बहराइच जिला मुख्यालय से महज 27 किलोमीटर दूर जैतापुर बाजार में मातेश्वरी माता घुरदेवी का मंदिर है. इस मंदिर की ज़िम्मेदारी पिछले 18 सालों से एक मुसलमान के हवाले है. वो भी एक आदर्श मुसलमान, जो रोज़ बिला नागा नमाज़ पढता है. रमजान के रोज़े रखता है, और जिसकी इस्लाम में पूरी आस्था है. 
 
इस्लामी परंपराओं का पालन करते हुए, 58 वर्षीय मोहम्मद अली घुरदेवी और भगवान हनुमान की पूजा के लिए भी खुद को समर्पित कर दिया है.
 
अपनी इस दोहरी आस्था और भूमिका पर अली ने अपने बचपन के एक महत्वपूर्ण घटना को याद करते हैं कहा, "जब मैं 7 साल का था, तब मुझे ल्यूकोडर्मा की बीमारी हो गई थी, जिससे मेरी आंखें सफेद हो गई थीं. जब तक मेरी मां मुझे घूरदेवी मंदिर नहीं ले गईं, तब तक हर तरह का इलाज नाकाम रहा." 
 
उन्होंने आगे कहा कि उनका मानना ​​है कि मंदिर के "पवित्र पिंडी से पानी लगाने" से हमारी यह बीमारी ठीक हो गई. इस बात ने मंदिर से उन्हें जुड़ने के लिए प्रेरित किया. 2007 में अली सक्रिय रूप से मंदिर के खिदमत के काम में जुट गए थे. उन्होंने बताया कि इससे पहले उन्हें एक दिन रात में एक ख्वाब आया जिसमें उन्हें कोई देवी की मंदिर की देखभाल करने के लिए कह रहा था. 
 
बहराइच जिले के पर्यटन अधिकारी मनीष श्रीवास्तव ने दो साल पहले मंदिर को धार्मिक पर्यटन पहल में शामिल किए जाने की तस्दीक की थी, जिससे इसका दर्जा और बढ़ गया है. अब इस  मंदिर का प्रभाव धार्मिक सीमाओं से परे है, जो मुस्लिम महिलाओं को आकर्षित करता है. वह हिंदू भक्तों के साथ प्रार्थना में शामिल होती हैं. अली ने कहा, "मैं हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों का सम्मान करता हूं. मंदिर की सेवा करना मेरी भक्ति और सांप्रदायिक एकता के प्रति मेरी प्रतिबद्धता को पूरा करता है."