कनाडा: वह खालिस्तानियों की पीठ पर सवार होकर करते हैं पत्रकारिता

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 26-09-2023
Canada: He does journalism riding on the back of Khalistanis
Canada: He does journalism riding on the back of Khalistanis

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

दस लाख रूपये का इनामी आतंकवादी खालिस्तान टाइगर फोर्स का प्रमुख हरदीप सिंह निज्जर के कनाडा में मारे जाने से भले ही भारत और कनाडा के रिश्तों में थोड़ी खटास आ गई हो, पर कनाडाई नागरिक राकेश तिवारी लंबे समय से ऐसे लोगों की आंखों में आंखे डालकर बातें कर रहे हैं.

निज्जर के मारे जाने के  बाद एक भारतीय न्यूज एजेंसी ने कनाडा में रहकर भारत में खालिस्तानी, आतंकवादी और आपराधिक गतिविधियां चलाने वालों की लंबी फेहरिस्त जारी की थी. इस फेहरिस्त में सतिंदरजीत सिंह उर्फ गोल्डी बराड़ सहित दर्जनों नाम हैं. मगर राकेश तिवारी निर्भीक होकर इनके खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.
 
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दरअसल, राकेश तिवारी कनाडा के ब्रैंपटन से एक हिंदी पत्रिका निकाले हैं ‘हिंदी टाइम्स’, जिसमें कनाडा में शरण लेने वाले आतंकवादियों एवं अपराधियों की न केवल जमकर आलोचना होती है, बल्कि इसमें बार बार यह याद दिलाने का प्रयास किया जाता है कि अपराधियों, खालिस्तानियों और आतंकवादियों का एक नेक्सेस है जो यहां रहकर भारत विरोधी गतिविधियां चला रहा है.
 
इस क्रम में उन्होंने मई और जून में बैक टू बैक इन विषयों पर दो विशेषांक निकाले हैं. जून में उन्हांेने खालिस्तान और मई में आतंकवाद पर विशेषांक निकला. 64 पेज की ‘हिंदी टाइम्स’ पत्रिका में दोनों ही अंकों में 15 से अधिक खालिस्तानी और आतंकवादी विरोधी लेख प्रकाशित किए गए हैं.
 
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इन दोनों ही अंक में बताने का प्रयास किया गया है कि 1947 के बंटवारे के बाद से ही अलग-अलग तरीके से भारत को तोड़ने की साजिश चल रही है. इस तरह की मुखर पत्रकारिता करने पर क्या उन्हें डर नहीं लगता ? आवाज द वाॅयस ने जब यह सवाल ‘हिंदी टाइम्स’ के प्रमुख संपादक राकेश तिवारी से किया तो उन्होंने कहा, ‘‘बचपन से उनके आदर्श भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस रहे हैं, इसलिए उनके मन में क्रांतिपन है.
 
इसके बावजूद उन्हें धमकियां और गालियां मिलती रहती हैं.’’ राकेश तिवारी पत्रिका के नाम से एक पॉडकास्ट-रेडियो चलाते हैं. उनका कहना है कि दो दिन पहले खालिस्तान और भारत-कनाडा संबंध को लेकर एक कार्यक्रम के दौरान उन्हें काफी गालियां सुनाई गईं. बकौल राकेश तिवारी-‘‘आतंकवादियों की ओर से उन्हें चेतावनी दी गई है कि ‘वे वेट एंड वाॅच’ कर रहे हैं, परिणाम भुगतना पड़ सकता है.’’
 
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इसके बावजूद पिछले तीस वर्षों से गोरखपुर से कनाडा में जा बसे और बीस वर्षों से वहां हिंदी पत्रकारिता कर रहे राकेश तिवारी ने ’हिंदी टाइम्स’ का जो ‘खालिस्तान विशेषांक’ निकाला है, वह पढ़ने लायक है. इसका डिजिटल अंक इस संवाददाता को इसकी वेबसाइट पर देखने को मिला.
 
इसके संपादकीय में पत्रिका के प्रमुख संपादक ने यह बताने की कोशिश की है कि खालिस्तान समर्थक अभियान पाकिस्तान, ब्रिटेन,ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा से योजनाबद्ध तरीके से संचालित हो रहे हैं.पत्रिका के सलाहकार संपादक नवल कांत ठाकुर के लेख ‘खालिस, खालसा, खालिस्तान में बताया गया कि 1699 में गुरु गोविंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में खासला पंथ की शुरुआत की थी. इस पंथ को मानने वालों के लिए निष्कपट,निश्छल, पर हितैषी, परोपकारी, राष्ट्र-धर्म-समाज के प्रति समर्पित होने की शर्तें रखी गई थी, पर खालिस्तान समर्थक इन सिद्धांतों को भुलाकर भारत विरोधी गतिविधियों में लग गए.
 
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नीलम शुक्ला देवांगन के लेख ‘अमृतपाल के बहाने फिर चर्चा में आया खालिस्तान’ में अमृतपाल सिंह के उभरने की कहानी बताई गई है. हरजिंदर भसीन के लेख ‘खालिस्तान बदनामः हिंदू और सिख एक ही सत्य के दो आयाम’ में यह बताने का प्रयास किया गया है कि भारत विरोधी गतिविधियों की जड़ में दरअसल इस्लाम और क्रिश्चैनिटी है. दोनों ही इब्राहिमी धर्म हैं. चूंकि 1699 में सिखों ने भारत को मुस्लिम मुल्क होने से बचाया था, इसलिए सिख उनके निशाने पर हैं.
 
‘खालिस्तानी आतंकवाद: अंतरराष्ट्रीय मंच पर उभरता नासूर’ शीर्षक से पत्रिका में डॉ मंजू डागर मनु चैधरी का लेख खालिस्तान विशेषांक में छापा गया है. इस लेख में दावा किया गया है कि 1980 से 2000 के बीच पंजाब में 12,694 नागरिक,2000 सुरक्षा कर्मी और 8000 आतंकी मारे गए.
 
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इसका उद्देश्य भारत तोड़ना था. इस लेख में यह बताने की कोशिश की गई है कि 1971 में भारत से युद्ध में हारने के बाद पाकिस्तान के जनरल जियाउल हक ने भारत में खून बहाने के लिए खालिस्तान की रणनीति बनाई.....जब तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और डीजीपी केपीएस गिल ने खालिस्तानियों को कुचल दिया तो बचे कुचे खालिस्तानी नेता पाकिस्तान की मदद से पाकिस्तान,कनाडा, यूएस और पश्चिमी यूरोप में जा छुपे.
 
इस अंक में वीरेंद्र प्रताप के लेख में बताया गया है कि भारत में खालिस्तानियां की सांठगांठ अन्य अलगाववादी आंदोलन के बीच भी है. लेख में माओवादियांे को भी खालिस्तानियों से जोड़ने की कोशिश की गई है.
 
लेख में इसकी वजह बताई गई-ऐतिहासिक,भौगोलिक,वैचारिक,सरकारी,सहभागिता,जातीय और धार्मिक संभर्द. एक अन्य लेख ‘खालिस्तानियों ने लिखी पंजाब की बर्बादी की दास्तां’ में बताया गया है कि 1970-71 के बाद पंजाब लगातार हिंसा देख रहा है, जिससे प्रदेश का कृषि, प्रगति, विकास और अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है.
 
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विशेषांक में संजय दीक्षित के लेख ‘पाकिस्तान का खिलौना हैं खालिस्तानी’ में कुछ दलीलों, संदर्भों और तथ्यों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि पाकिस्तान खालिस्तानी  तत्वों का मूल केंद्र है और ऑस्ट्रेलिया इनका सुरक्षित ठिकाना है.
 
आस्ट्रेलिया में 2014 से हिंदू मंदिरों पर हमले हो रहे हैं. बलबीर पुंज के लेख ‘खालिस्तानी नेटवर्क के ध्वस्तीकरण का यही समय है, सही समय है’ में बताया गया है कि खालिस्तानियों को मिटाना है तो भारत के लिए यह इसलिए उचित समय है कि विश्व मंच पर अभी उसकी धाक है.
 
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एक लेख में कनाडा में खालिस्तानियों को समर्थन देने वालों को भी सावधान किया गया है. इस लेख का शीर्षक है-सावधान कनाडा ! चिंगारी का खेल बुरा होता है. इस अंक में सपना कुमारी का लेख ‘भारत ने सौंपा अमेरिका-कनाडा में खालिस्तानी उपद्रवियों की जांच का जिम्मा‘ भी छापा गया है.
 
चीनी रेडियो में काम कर चुके अनिल आजाद पंडित का लेख ‘चीन में खालिस्तान जैसे आंदोलन को समर्थन नहीं और डॉ जफर बलोच का लेख-भारत को अस्थिर करने के लिए हुआ खालिस्तान आंदोलन का जन्म’ को भी विशेषांक में जगह दी गई है. इसके अलावा इस अंक में ‘खालिस्तान षड़यंत्र की इनसाइड स्टोरी’ नामक पुस्तक की समीक्षा भी शामिल है. यह पुस्तक इंदिरा गांधी की हत्या पर केंद्रित है.
 
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हिंदी टाइम्स ने आतंकवाद विरोधी अंक इस साल के मई में प्रकाशित किया था. इसमें कुल 16 लेख हैं, जिनके माध्यम से बताया गया है कि अब यह वैश्विक मसला बन गया है. इसमें प्रकाशित कुछेक लेख में खालिस्तानियों को बाकी आतंकवादियों और नक्सलियों से जोड़ने की कोशिश की गई है.
 
पत्रिका के सलाहकार संपादक के लेख ‘वैश्विक आतंकवाद सूचकांक: अमानवीय क्रूरता का दस्तावेज ’ में इस बढ़ती समस्या को आंकड़ों के माध्यम से समझाने की कोशिश की गई है. इस अंक में वीरेंद्र प्रताप सिंह का लेख ‘आतंकवाद का बहरूपया स्वरूप’ में धार्मिक, साइबर,राष्ट्रवादी,नार्को और लोन वुल्फ आतंकवाद के बारे में सरल शब्दों में बताया गया है.
 
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इस अंक में ‘आतंकवाद:छद्म युद्ध का ब्रह्रामास्त्र, आतंकवादः कट्टरता की पराकाष्ठा का परिणाम, मजहबी कट्टरता और उन्माद का परिणाम आतंकवाद, धर्म से प्रेरित आतंकवाद सबसे खतरनाक, अकारण नहीं है आतंकवाद, आतंकवाद पर शून्य सहनशीलता की नीति, आतंकवाद के खिलाफ चीन का दोहरा मापदंड, आतंकवाद पर कथनी और करनी में समानता जरूरी, आतंक के विरूद्ध लड़ाई की चुनौतियां शीर्षक से कई लेख छापे गए हैं. इन लेखों के लेखकों में सेवानिवृत ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह कोहली,शंभूनाथ शुक्ल, सद्गुरू जग्गी वासुदेव जैसे कुछ चर्चित नाम भी शामिल हैं.