महिलाओं के सोलह सिंगार में से एक चूड़ी का सिंगार भी होता है.लड़कियां अपनी शादी में खूबसूरत दिखने के लिए डिजाइन ब्राइडल लहंगे और मेकअप के अलावा कई ऐसी ज्वेलरी और एक्सेसरीज कैरी करती हैं,जो एक दुल्हन की खूबसूरती में निखार लाते हैं. भारतीय सभ्यता के अनुसार एक सुहागन के सोलह श्रृंगार होते हैं. इन सोलह श्रृंगार में से एक है हाथों में पहनी जाने वाली चूड़ियां.
किसी भी जाति, धर्म या संप्रदाय में चूड़ियों के बिना हर स्त्री का श्रृंगार अधूरा माना जाता है.लेकिन चूड़ियां केवल श्रृंगार ही नहीं बल्कि ये सम्मान का प्रतीक है जो दुल्हन हो अपनी शादी में ससुराल पक्ष की तरफ से मिलती है. शादी के बाद चूड़ियों से भी उसकी पहचान होती है. बिहार में गया के मुस्लिम परिवारों की पांच हजार से अधिक महिलाएं चूड़ियां बनाती हैं और घर को आर्थिक रूप से मजबूत करती हैं.
अब बाजारों में खासकर दुल्हनों के लिए गया में बनी चूड़ियों की मांग बढ़ने लगी है कुछ ही समय में चूड़ियां लोकप्रिय हो गईं. यहां कई तरह की रंग-बिरंगी आकर्षक चूड़ियां बनाई जाती हैं. कुछ चूड़ियां विशेष अवसरों के लिए ख़ास होती हैं, जिनमें विवाह का अवसर भी शामिल होता है, और इस अवसर पर दुल्हन की चूड़ियां अन्य लड़कियों से अलग होती हैं. युवा महिलाओं की पहली पसंद बनने के कारण, यहां की महिलाओं की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होने लगा. गया जिले की मुस्लिम महिलाएं आत्मनिर्भरता की नई राह बना रही हैं. यहां हजारों महिलाएं चूड़ियां बनाना सीख चुकी हैं और इसके जरिए अपनी जरूरतें पूरी कर रही हैं.
यह पेशा बन गया है रोजगार का जरिया
गया शहर के इक़बाल नगर और वारिस नगर मोहल्ले जिन्हें "चौड़ा" कहा जाता है, यहां गरीबी रेखा के नीचे वाली आबादी रहती है. पहले हर घर की महिलाएं बड़े पैमाने पर "अगरबत्ती" बनाती थीं, लेकिन आमदनी कम होती थी और मेहनत ज्यादा थी. लेकिन दो-तीन वर्षों में यहां का काम बदल गया है और दुश्वारियां भी.अब हर घर में चूड़ियां बन रही हैं.
दुल्हन के लिए खास चूड़ी तैयार की जाती है, जिसमें एमडी चूड़ियां भी शामिल हैं, इन चूड़ियों में केमिकल भरकर कई तरह की चूड़ियां बनाई जाती हैं, मोती और चमकदार नगीने आदि लगाई जाती हैं.दूसरे राज्यों से आधी तैयार चूड़ियां यहां पहुंचती है और फिर 'हेनडोरक’गया में किया जाता है.यहां की निर्मित चूड़ियां बिहार के सभी जिलों के अलावा अन्य राज्यों में भेजी जाती हैं.
इसका मासिक टर्नओवर करोड़ों में है.कारीगरों को एक सेट चूड़ी तैयार करने की क़ीमत 20 से 30 रुपये मिलती है.यह पेशा ग़ुरबत में ज़िंदगी जी रहे परिवारों के लिए रोजगार का जरिया बन गया है.दैनिक मजदूरी के रूप में.एक परिवार प्रतिदिन 300 से 500 रुपये तक की कमाई कर रहे हैं.
छात्रा ज़ीनत खान भी करती हैं पैकिंग
इकबाल नगर मोहल्ले की जीनत खान ने बताया कि वह शहर के मिर्जा गालिब कॉलेज में ग्रेजुएशन पार्ट टू में पढ़ रही हैं. उसके माता-पिता उसकी पढ़ाई को लेकर चिंतित थे, लेकिन उसने चूड़ियां पैक करना शुरू कर दिया, क्योंकि चूड़ियां उसके मोहल्ले में ही बनायी जाती हैं और वह अपनी मां के साथ ख़ूबसूरत पैकिंग का काम करती हैं.
ज़ीनत खान का मानना है कि घर बैठे लड़कियों को भी रोज़गार से जुड़ कर स्वावलंबन की तरफ बढ़ना चाहिए. हालांकि,यहां के चूड़ी उद्योग को एमएसएमइ से उद्योग का दर्जा नहीं मिलने से वो भी निराश हैं.
वहीं, शाहनाज खातून का कहना है कि वह यह काम इसलिए करती हैं क्योंकि घर के पुरुषों को खर्च में मदद मिलती है और वे भी अपनी ज़रूरतें पूरी कर लेती हैं. इकबाल नगर और वारिस नगर इलाका आर्थिक रूप से मजबूत नहीं है लेकिन हाल ही में यह चूड़ियों के छोटे थोक विक्रेताओं सहित निर्माताओं का केंद्र बन गया है.
नाज खान का कहना है कि पहले इस मोहल्ले में गरीबी ज्यादा थी, लेकिन अब लोग आर्थिक रूप से बेहतर हो रहे हैं और जनकल्याणकारी योजनाओं के तहत कुछ काम भी हुए हैं, लेकिन विकास में चूड़ी का काम सबसे ज्यादा कारगर है, यह बात साबित हो चुकी है.
सुमैदा ख़ातून कहती हैं कि पहले घर में दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल था, लेकिन चूड़ी के काम से यह इतना आसान हो गया कि वह अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं और उन्हें सरकारी स्कूल में पढ़ा रही हैं.आर्थिक स्थिति अभी भी अच्छी नहीं है, वह पड़ोस की एक संकरी गली में एक छोटे से घर में रहती हैं, लेकिन फिर भी वह इस काम से खुश हैं.
कैसे बनायी जाती है चूड़ी?
चूड़िया बनाने का काम तीन स्तरों पर होता है, यहां के व्यापारी पहले दूसरे राज्यों से चूड़ी के ढांचे,रसायन और मोती मंगवाते हैं और फिर इसे छोटे व्यापारियों को उपलब्ध कराए जाते हैं. इसे तैयार करने के लिए आस-पड़ोस की महिलाओं को सामग्री उपलब्ध करायी जाती है.
चूड़ी बनने के बाद दूसरी महिलाओं को उसको ख़ूबसूरत डिजाइन में पैकिंग के लिए दिया जाता है. इकबाल नगर और वारिस नगर में चूड़ियां बनाने और पैकिंग का अलग-अलग काम होता है.लोगों का कहना है कि शादी के सीजन में काम ज्यादा होता है.
व्यवसायी नियाज खान कहते हैं कि अब यह काम सीजनल हो गया है, छह से सात महीने तक काम ज्यादा होता है, जबकि बाकी दिनों में मंदी का सामना करना पड़ता है. लेकिन फिर भी पिछड़े क्षेत्र के लिए,यह एक अच्छी आजीविका का साधन बन गया है.
कारोबारियों की ओर से कोशिश है कि उन महिलाओं को ज्यादा काम दिया जाए जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, अब उम्मीद है कि सरकार इसमें कुछ मदद करेगी, जिससे हर घर में बड़े पैमाने पर काम मिलेगा.
गया से बनी चूड़ियों ने हाल ही में अपना नाम कमाया है. यहां बनी चूड़ियों में, सबसे अधिक मांग वाली दुल्हन की चूड़ियां एक विशेष प्रकार की चूड़ियां हैं जिनमें एमडी नामक झुमके के अलावा, बाला भी शामिल हैं.
इन चूड़ियों की ख़ूब धमक है, इसकी भी काफी डिमांड है, यहां के दुकानदारों का कहना है कि पहले दुल्हन की चूड़ियां फिरोजाबाद या जयपुर से आयात होती थीं लेकिन अब गया की बनी चूड़ियां जयपुर से ज्यादा बिकती हैं क्योंकि इसके डिजाइन अच्छे हैं और कीमत वाजिब है.