जन्मदिन विशेष : भारतीय शास्त्रीय संगीत के शिखर पर उस्ताद अमजद अली खान, जिनके सरोद की गूंज पहुंची दुनिया के कोने-कोने

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 10-10-2024
Birthday Special: Ustad Amjad Ali Khan is at the pinnacle of Indian classical music, whose sarod echo reached every corner of the world
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नई दिल्ली

साल था 1963 और जगह थी अमेरिका. कत्‍थक सम्राट पंडित बिरजू महाराज की परफॉर्मेंस होनी थी. वह मंच पर आए और अपने नृत्‍य से फैंस का दिल जीत लिया. हालांकि, इसी दौरान एक और हस्ती ने उसी मंच पर परफॉर्म किया, जिन्होंने सरोद-वादन से ऐसा समां बांधा कि माहौल एकदम संगीतमय हो गया. 

यह हस्ती थे उस्ताद अमजद अली खान. 9 अक्टूबर 1945 को ग्वालियर में जन्में उस्ताद अमजद अली संगीत के माहौल में पले बढ़े. उनका नाता ग्वालियर के 'सेनिया बंगश' घराने से है. उनके पिता उस्ताद हाफिज अली खान ग्वालियर राज दरबार में प्रतिष्ठित संगीतज्ञ थे.

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बताया जाता है कि जब उनकी उम्र 12 साल थी, तो उन्होंने पहली बार एकल वादक के रूप में पहली प्रस्तुति पेश की. एक छोटे से बच्चे की सरोद को लेकर समझ देखकर कार्यक्रम में मौजूद सभी लोग हैरान हो गए.जब उनकी उम्र 18 साल हुई, तो उन्होंने पहली अमेरिका यात्रा की थी.

इस दौरान उन्होंने सरोद-वादन किया. इस कार्यक्रम में कत्‍थक सम्राट पंडित बिरजू महाराज ने भी परफॉर्म किया था. यहीं नहीं, उन्होंने कई रागों को भी तैयार किया. उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह दूसरी जगह की धुनों को भी अपने संगीत में बहुत खूबसूरती के साथ मिला लिया करते थे.

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अमजद अली खान ने ‘हरिप्रिया’, ‘सुहाग भैरव’, ‘विभावकारी चंद्रध्वनि’, ‘मंदसमीर’ समेत कई नए रागों को भी तैयार किया.उस्ताद ने दुनियाभर की फेमस जगहों पर शो किए, जिनमें रॉयल अल्बर्ट हॉल, रॉयल फेस्टिवल हॉल, केनेडी सेंटर, हाउस ऑफ कॉमंंस, फ्रैंकफर्ट का मोजार्ट हॉल, शिकागो सिंफनी सेंटर, ऑस्ट्रेलिया का सेंट जेम्स पैलेस और ओपेरा हाउस शामिल है.

शास्त्रीय संगीत में योगदान के लिए कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया. उन्हें साल 1975 में पद्म श्री, 1991 में पद्म भूषण और 2001 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया. इसके अलावा उन्हें यूनेस्को पुरस्कार, कला रत्न पुरस्कार से भी नवाजा गया.