अंतर धार्मिक संवाद पर बोले बीकानेर के वन अधिकारी अहमद हारून क़ादरी: "मोहब्बत ही हमारा पैग़ाम है"

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 03-07-2024
Our message is love, it should reach wherever it can:  Ahmed Haroon Qadri
Our message is love, it should reach wherever it can: Ahmed Haroon Qadri

 

फ़िरदौस ख़ान / नई दिल्ली 

दुनिया का हर मज़हब मोहब्बत का पैग़ाम देता है, मानवता का पैग़ाम देता है. हमारे देश भारत का मूल मंत्र वसुधैव कुटुंबकम् भी यही तो सिखाता है. 

अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
 
यानी यह मेरा बन्धु है और यह नहीं है. इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं. उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार है. कहने का मतलब यह है कि विशाल हृदय वाले लोगों के लिए मानवता सर्वोपरि है. उनके लिए सब अपने ही हैं कोई ग़ैर नहीं है. इसमें धरती पर बसने वाले सभी प्राणी शामिल हैं.
 
बीकानेर में राजस्थान वन सेवा में उप वन संरक्षक, आयोजना एवं प्रबंधन के पद पर कार्यरत अहमद हारून क़ादरी का भी यही कहना है कि पूरी दुनिया एक परिवार है, तो इसमें रहने वाले भी इसी परिवार के सदस्य हैं. इसलिए सबको मिलजुल कर रहना चाहिए. परिवार में नफ़रत के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए.
 
अहमद हारून क़ादरी को गायन का शौक़ है. वे साल 1998 में स्टार प्लस चैनल के रियलिटी शो ‘मेरी आवाज़ सुनो’ में शिरकत कर चुके हैं. इसमें अनू कपूर एंकर और सुप्रसिद्ध गायक शंकर महादेवन जज थे.
 
फ़िलहाल वे संगीत समारोहों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेर रहे हैं. इसके साथ-साथ वे एक उम्दा शायर भी हैं. अपनी शायरी के ज़रिये वे लोगों को मानवता का संदेश दे रहे हैं और समाज को बेहतर बनाने की क़वायद में जुटे हैं. वे कहते हैं-

इंसां ही इंसां को अब खटकने लगा है
मज़हब के नाम पे क्यों भटकने लगा है
इंसानियत दिखाता है हर मज़हब का आईना
क्यों ये शीशा आजकल चटकने लगा है
 
वे अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहते हैं- “निश्चित रूप से पिछले कुछ वर्षों में देश के कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए समाज में नफ़रत फैलाई है और आज भी फैला रहे हैं. इसमें ख़बरिया चैनलों का भी हाथ है.
 
वे रोज़-रोज़ हिन्दू-मुसलमान को लेकर बहस के माध्यम से लोगों में नफ़रत फैलाने का काम कर रहे हैं. इसलिए सबसे पहले इन पर रोक लगनी चाहिए यानी ऐसी बहसों और बयानों पर रोक लगनी चाहिए, जिससे माहौल ख़राब होता है. पिछले कुछ सालों में देश और समाज में जो नफ़रत फैलाई गई है, उसे दूर करने की बेहद ज़रूरत है. इसमें वक़्त लगेगा, लेकिन माहौल बदलेगा ज़रूर. ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए.”  
 
वे कहते हैं- “सामाजिक सौहार्द भारत की आत्मा है और ये नफ़रती लोग उसी पर प्रहार करते हैं. इससे देश को बचाना होगा, वरना देश तरक्क़ी नहीं कर पाएगा. जहां शान्ति और सौहार्द न हो, वहां उन्नति भी नहीं हो सकती. हमें अपने देश को विकसित राष्ट्र बनाना है. इसलिए सबका कर्तव्य है कि वे नफ़रत के इस माहौल को बढ़ने न दें और आपसी सद्भाव, प्रेम और भाईचारे को बनाए रखें. 
 
         
अंतर धार्मिक संवाद ज़रूरी  
 
समाज में साम्प्रदायिक सद्भाव क़ायम करने के बारे में अहमद हारून क़ादरी कहते हैं- “देश में कहीं सम्प्रदाय को लेकर ज़हर बोया जा रहा है, तो कहीं लोगों को जाति-पांत में बांटा जा रहा है. ऐसे में धर्म गुरुओं और विभिन्न जातियों के क़द्दावर लोगों की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे आगे आएं. इसके साथ-साथ इस नफ़रत को मिटाने के लिए हर नागरिक को जागरूक होना पड़ेगा.
 
हर शहर और क़स्बे के जागरूक लोगों की सभा बुलाकर और उसमें सकारात्मक बातें करते हुए लोगों को समझाया जाए कि मानवता ही ज़िन्दगी को बेहतर बना सकती है. ऐसा करके नफ़रती लोगों के ज़हर से लड़ा जा सकता है.
 
इन सभाओं में सभी धर्मों के धर्म गुरुओं को भी शामिल किया जाना चाहिए. वे अपने सम्प्रदाय के लोगों को समझाएंगे, तो इसका ज़्यादा असर पड़ेगा. सबको धर्म और जाति से ऊपर उठकर निष्काम भाव से एक-दूसरे का सम्मान करना होगा, तभी इन असामाजिक तत्वों द्वारा लोगों के दिमाग़ में ठूंसे जा रहे ‘बौद्धिक आतंकवाद’ से मुक़ाबला किया जा सकता है. इसके लिए लोगों को उत्तेजित होने की बजाय धैर्य से काम लेना होगा, उन्हें सहनशील होना होगा.
 
वे आगे कहते हैं- “इस नफ़रत के माहौल को मिटाने के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं को भी आगे बढ़कर काम करना होगा. कोई ये न सोचे कि मेरे अकेले से क्या होगा? इस दुनिया में ऐसे कई महान लोग हुए हैं, जिन्होंने शुरुआत अकेले की और फिर लोग उनसे जुड़ते गए.
 
हमें भाईचारे के पैग़ाम को फैलाना होगा. ये लड़ाई आसान नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी तो नहीं है. सबको अपना कर्तव्य समझना ही होगा. जिस देश के लोग मिलजुल कर रहते हैं, वह देश दिन दूनी और रात चौगुनी उन्नति करता है.
 
देश में साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ाने के लिए सेलेब्रिटीज़ को भी आगे आना चाहिए. उनके लाखों- करोड़ों प्रशंसक होते हैं. उन्हें खुलकर इस बारे में बात करनी चाहिए, क्योंकि जनमानस पर उनकी बातों का प्रभाव पड़ता है. वे कहते हैं:
 
चार दिन की ज़िन्दगी है, मुहब्बत में ही गुज़ारेंगे
कह दे कोई उनसे, नफ़रतों के लिए हमें वक़्त नहीं
 
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)


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