प्रसिद्ध रेडियो पत्रकार और बीबीसी का लंबे समय तक कमान संभालने वाले सर मार्क टुली ( Sir Mark Tully )वास्तव में भारत के विचार से प्रेरित हैं. उन्होंने भारत में छह दशक से अधिक समय बिताया है. आवाज द वाॅयस से एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कहते हैं, भारत में विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं और अपनी मान्यताओं का पालन करते हैं.
लगभग तीस वर्षों तक बीबीसी के दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख रहे सर टुली ने मध्य दिल्ली के निजामुद्दीन पश्चिम स्थित अपने घर पर आवाज द वॉयस की रोविंग संपादक तृप्ति नाथ को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि भारत तेजी से प्रगति कर रहा है, लेकिन और अधिक प्रयास की जरूरत है. इससे भारतीय कृषि में आमूल-चूल परिवर्तन लाने और उसे समृद्धि और अधिक व्यापक बनाने में मदद मिलेगी.
The BBC's Sir Mark Tully speaking to awaz The Voice
सर टुली को भारत के दो सर्वोच्च नागरिक सम्मानों, विशिष्ट सेवा के लिए पद्म श्री और उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा के लिए पद्म भूषण से अलंकृत किया गया है. 1935 में कोलकाता में जन्मे मार्क टुली को 2002 में नाइटहुड से सम्मानित किया गया था.
ब्रिटेन और भारत के बीच शाश्वत संबंध रखने वाले सर टुली ने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें:अमृतसरः मिसेज गांधी लास्ट बैटल’, ‘राज टू राजीव’, फोर्टी इयर्स ऑफ इंडियाज इंडिपेंडेंस, ‘नो फुल स्टॉप इन इंडिया’ और ‘इंडिया इन’ प्रमुख रूप से शामिल हैं.
सवालः आजादी के बाद भारत की 75 साल की लंबी यात्रा को आप कैसे देखते हैं ?
टुलीः ये तो तीन या चार किताबों का विषय है.खैर, मुझे लगता है, भारत ने जो हासिल किया है उसे वास्तव में उचित मान्यता नहीं मिली है. मुझे लगता है, भारत ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है. गरीबी से बाहर निकले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है.
भारत अब वास्तव में काफी तेजी से प्रगति कर रहा है, लेकिन विदेशियों के बीच अब भी इसकी छवि एक ऐसे देश की है जो बेहद गरीब है और उससे उबरने में असमर्थ है. मुझे लगता है कि समाजवाद अपने शुरुआती दिनों में भारत के लिए ठीक था.
मुझे लगता है कि औद्योगीकरण पर इतना अधिक ध्यान केंद्रित करने में नेहरू एक तरह से गलत थे. मेरा मानना है कि भारतीय कृषि में आमूल-चूल परिवर्तन लाने और समृद्धि को अधिक व्यापक रूप से फैलाने के लिए और अधिक प्रयास किए जाने चाहिए.
1991 के आर्थिक परिवर्तनों ने एक प्रक्रिया शुरू की, लेकिन फिर भी, वे बहुत अधिक औद्योगीकृत थे. मेरा मानना है कि इस समय भी पूंजीवाद पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित है. अर्थव्यवस्था को अधिक समावेशी बनाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.
सवालः आपने भारत में लगभग छह दशक बिताए हैं, न केवल दैनिक घटनाओं को कवर किया, बल्कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष, भोपाल गैस त्रासदी, ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या और राजीव गांधी की हत्या जैसी कुछ सबसे बड़ी घटनाओं को भी कवर किया है. आपके लिए समाचार कवरेज के सबसे अविस्मरणीय क्षण कौन से रहे ?
टुली: एक बात जिसने मुझे सचमुच में प्रभावित किया वह है भोपाल गैस त्रासदी की भयावहता. मुझे लगता है, वह एक दुखद दिन था, जिसके लिए कांग्रेस पार्टी को दोषी ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने उन घरों को वहां बनने दिया जहां बसावट की अनुमति नहीं थी.
भारत में बड़ी खबरों को कवर करने का मौका मिलता है, मैंने भी राजनीति,आर्थिक मानवाधिकार विषयों आदि पर कहानियां कवर की हैं.
महात्मा गांधी पर बात करते गंभीर हो गए बीबीसी के सर मार्क टुली
सवाल: इंदिरा गांधी की हत्या की खबर दुनिया को बताने के बारे में आपकी क्या यादें हैं?
टुली: मैंने यह खबर दुनिया को नहीं दी थी. सबसे पहले मेरे सहकर्मी सतीश जैकब ने दुनिया को यह कहानी बताई. उस दिन मैं दरअसल, मसूरी में था. मैं एक तिब्बती स्कूल की पहाड़ी पर चढ़ रहा था. जब मैं पहाड़ी पर चढ़ रहा था, मैंने दो पुलिसकर्मियों को यह कहते हुए सुना कि उन्होंने सुना है कि इंदिरा गांधी को गोली मार दी गई है.
इसलिए, मैं दिल्ली वापस जाने के लिए जितनी तेजी से घूम सकता था, घूमा. जब मैं दिल्ली वापस आया तो मैंने पाया कि सतीश ने कहानी की रिपोर्टिंग में अद्भुत काम किया है. हम इस कहानी की रिपोर्ट करने वाले पहले व्यक्ति थे.
सवालः मुझे याद है कि जब आपको अपनी नाइटहुड उपाधि के बारे में खबर मिली थी, तो आपने कहा था कि आप पूरी तरह आश्चर्यचकित हैं. आपने कहा, मुझे लगा कि आप कल के आदमी हैं. क्या आप 2002 के उस पल को दोबारा जी सकते हैं?
टुली : मैं उन दिनों निजामुद्दीन ईस्ट में रहता था. मैंने बीबीसी छोड़ दिया था. मुझे ब्रिटिश उच्चायुक्त का फोन आया. उन्होंने कहा, “मार्क, हम आपको केबीई की पेशकश करना चाहते हैं. क्या आप स्वीकार करोगे? मैंने कहा, मुझे नहीं पता कि केबीई क्या है.
उन्होंने कहा कि यह नाइटहुड है. वे चाहेंगे कि मैं इसे स्वीकार कर लूं. मैंने मन में सोचा कि यह बहुत ही कृतघ्न बात है. जब कोई आपको इस तरह की पेशकश करता है और कहता है कि वह एक पत्रकार है और नाइटहुड पाने के लिए बहुत स्वतंत्र विचारों वाला है.
मैंने फैसला किया कि मैं इसे स्वीकार करूंगा. मेरी मां तब लगभग 92 वर्ष की थीं. जाहिर तौर पर, उन्होंने इसके बारे में बीबीसी रेडियो पर सुना जब वह सुबह-सुबह स्नान कर रही थीं और मेरे कुछ अन्य भाइयों और बहनों को सूचित करने के लिए बाथरूम से तुरंत बाहर निकल गईं.
सवालः भारत में कई दशकों रहने के बाद आपको किस चीज़ ने सबसे अधिक प्रेरित किया ?
टुली : भारत के बारे में जिस चीज ने मुझे सबसे अधिक प्रेरित किया, वह भारतीय विचार है, जैसा कि मैं सोचता हूँ. तथ्य यह है कि भारतीय विचार का मतलब है कि आपको यहां सभी धर्मों के लोग कपल्स समझ से एक साथ रहने में सक्षम होते हैं- जैसे ईसाई कुछ चीजें करते हैं, लेकिन अन्य चीजें नहीं करते., मुसलमान कुछ करते हैं लेकिन अन्य चीजें नहीं करते. यही बात हिंदुओं और बौद्धों पर भी लागू होती है. इसी चीज ने मुझे सबसे अधिक प्रेरित किया.
सवालः महात्मा गांधी के बारे में क्या ख्याल है?
टुलीः मैं महात्मा का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं. मैंने कभी महात्मा की तरह जीने की कोशिश नहीं की. उदाहरण के लिए, मुझे पेय का आनंद लेना पसंद है जो महात्मा ने नहीं किया. फिर भी, कोई भी व्यक्ति विभिन्न तरीकों से उनकी सोच और कार्यों का अनुकरण करने का प्रयास कर सकता है.
सवाल: आप नए भारत की कल्पना कैसे करते हैं?
टुली: वैसे, मुझे नए भारत के बारे में बात करना पसंद नहीं. मुझे लगता है, भारत एक निरंतरता है. इसका एक लंबा इतिहास है और यह लगातार इतिहास बना रहा है. जब लोग भारत के एक महान शक्ति बनने या ऐसा कुछ होने की बात करते हैं, तो मैं तुरंत उस तरह के विचार का विरोध करता हूं.
मेरा मानना है कि भारत को अधिक समावेशी होना चाहिए, ताकि जो आर्थिक विकास हो उसका प्रभाव सभी भारतीयों पर पड़े. यह एक बहुत बड़ा कार्य और सार्थक महत्वाकांक्षा है. बाकी दुनिया को वही करने दें जो वे चाहते हैं. उस अर्थ में भारत को भारत ही रहने दें.
भारतीय संस्कृति की बात आई तो मुस्करा उठे बीबीसी के मार्क टुली
सवालः महत्वाकांक्षी प्रसारकों और पत्रकारों को आपकी क्या सलाह होगी, आप पत्रकारों की वर्तमान पीढ़ी को कैसे देखते हैं?
टुलीः मुझे लगता है कि पत्रकारों की वर्तमान पीढ़ी ठीक है. वे बहुत सी समस्याओं से जूझ रहे हैं. मुझे लगता है, उन पर अनुचित संपादकीय दबाव होता है. कभी-कभी अनुचित सरकारी दबाव होता है. मैं जानता हूं, क्योंकि मैं उनसे अक्सर बात करता हूं. वे अनुबंध पर हैं. उनके पास नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है. यदि वे प्रबंधन को परेशान करते हैं, तो उन्हें बहुत आसानी से बाहर किया जा सकता है.
सवाल: आपने 60 के दशक के मध्य में एक प्रसारक के रूप में शुरुआत की थी,तब रेडियो सर्वोच्च था. इसकी काफी विश्वसनीयता थी. आप नए युग के मीडिया के साथ समाचार पत्रों के भविष्य को कैसे देखते हैं?
टुलीः आज सुबह जब आप मेरे घर में आईं तो मैं अखबार पढ़ रहा था. मुझे निश्चित रूप से उम्मीद है कि समाचार पत्रों का भविष्य उज्जवल होगा. मुझे लगता है, हमने संचार के व्यवसाय पर ठीक से काम नहीं किया. मुझे लगता है कि आजकल टेलीविजन पर जो बहुत ज्यादा हो रहा है,
वह वास्तव में खराब है. यदि आप एक टेलीविजन समाचार बुलेटिन में दो-तरफा साक्षात्कारों की संख्या की गणना करते हैं और यह बीबीसी, अल-जजीरा, दूरदर्शन और भारतीय समाचार चैनलों के लिए भी समान है, तो मेरे विचार में यह स्टोरी करने का एक आलसी तरीका है.
सवालः क्या आपको सर मार्क टुली कहलाने की आदत हो गई है? मैंने पढ़ा कि आपने कहा था कि आप अपने आपको मिलने वाले सम्मानों से झेप जाते हैं ?
टुली : हाँ, मैं थोड़ा झेप जाता हूँ, इसके साथ ही जब लोग मेरे बारे में बहुत विनम्र भाव प्रकट करते हैं तब मुझे थोड़ी से उलझन होती हैं. एक नौकरीपेशा पत्रकार होने के अलावा मेरे पास किसी भी चीज के बारे में कोई बड़ा दावा नहीं है. मैं मुख्य रूप से एक रेडियो पत्रकार हूं. बीबीसी छोड़ने के बाद, मैंने बीबीसी और अन्य रेडियो स्टेशनों के लिए रेडियो कार्यक्रम किए. मैंने हमेशा यह कहा है कि रेडियो ही वह माध्यम है जो लोगों के दिमाग में सबसे ज्यादा देर के लिए टिकता है.
सवालः इन दिनों आपकी पेशेवर दिनचर्या कैसी है?
टुली मेरा दैनिक पेशेवर कामकाजी जीवन बिल्कुल भी पेशेवर नहीं है. मैं बस सुबह जागता हूं और अपनी किताब पर काम करता हूं जो मैं इस समय लिख रहा हूं. मैं प्रेस कॉन्फ्रेंस और सामान्य पत्रकार संबंधी काम बिल्कुल नहीं करता.
अनुवाद: मलिक असगर हाशमी. इस इंटरव्यू को अंग्रेजीऔर उर्दूमें पढ़ने केलिए यहां क्लिक करें.