‘ ऑपरेशन ब्लैक थंडर’, अजित डोभाल और एनएसजी की भूमिका

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 24-05-2024
Anti Terrorism Day: 'Operation Black Thunder', Ajit Doval and the role of NSG
Anti Terrorism Day: 'Operation Black Thunder', Ajit Doval and the role of NSG

 

मलिक असगर हाशमी

आतंकवाद  देश -दुनिया के लिए सबसे बड़ा मसला बना हुआ है. एक समय पड़ोसी पाकिस्तान की वजह से पंजाब प्रांत  में  खालिस्तानी आतंकवाद को हवा देकर ‘नासूर’ बनाने की कोशिश की गई. मगर ‘ऑपरेशन  ब्लैक थंडर’ जैसी पहली बड़ी आतंकवाद विरोधी कार्रवाई कर भारत ने जता दिया कि इस बीमारी का इलाज करना उसे भली-भांति आता है.

साथ ही समय-समय पर यह जताने का भी प्रयास होता रहा कि देश में आतंकवाद को आसानी से पैर पसारने नहीं दिया जाएगा.खालिस्तानी आतंकवाद को रोकने में तब के इंटेलिजेंस ब्यूरो के संयुक्त निदेशक अजित डोभाल और तेजी से मजबूत होते एनएसजी के ब्लैक कैट कमांडो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.



ऑपरेशन ब्लैक थंडर के बारे में 

इन बातों की याददिहानी के लिए ‘ऑपरेशन  ब्लैक थंडर’ नाम से पुलिस अधिकारी सरबजीत सिंह ने एक पुस्तक लिखी है. इसके परिचय में लेखक लिखते है-‘‘आतंकवाद ने भारत के कई राज्यों को अलग-अलग समय पर और अलग-अलग रूपों में प्रभावित किया है और यह राष्ट्रीय और तेजी से अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बना हुआ है.
 
आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक पंजाब भी है, जो 1980 के दशक के दौरान हिंसा के कृत्यों से पूरी तरह टूट गया था, जबकि इसके लोग आतंकवादियों की धमकियों और उनसे निपटने के भारत सरकार के प्रयासों के बीच गोलीबारी में फंस हुए थे.

लेखक आगे लिखते हैं-‘‘अमृतसर में स्वर्ण मंदिर इस दशक के दौरान दो महत्वपूर्ण आतंकवाद विरोधी अभियानों का स्थल रहा- 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके बाद 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर. तब सिखों के इस सबसे पवित्र पूजा स्थल पर कब्जा करने वाले आतंकवादियों को खदेड़ दिया गया था.

हालांकि, ‘ ब्लू स्टार’ के परिणामों में ऑपरेशन को मंजूरी देने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या भी शामिल है. दूसरी ओर, ‘ ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ की सफलता आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का एक महत्वपूर्ण मोड़ रहा.

इस पुस्तक में लेखक कहते हैं-पंजाब में आतंकवाद के उदय और वृद्धि के कारकों में भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की भूमिका शामिल है. लेखक अपनी पुस्तक में दिल्ली में तत्कालीन राजनेताओं और कांग्रेस सरकार की भूमिका, विशेष रूप से जरनैल सिंह जैसे नेताओं के उदय और अकाली दल जैसी क्षेत्रीय पार्टी के विकास, 1980 के दशक में राजीव-लोंगोवाल समझौते जैसे मुद्दे पर भी आलोचनात्मक दृष्टि रखे हैं.

पुस्तक की विषय सूची में स्वर्ण मंदिर,सिख विरासत और पंजाब समस्या,राजीव-लोंगोवाल समझौता,जसबीर सिंह रोडे की बर्खास्तगी,गलियारा योजना,जसबीर सिंह रोडे पुनर्जीवित,पंचायत चुनाव में चूक,उग्रवादी और पुलिस
के बीच राष्ट्रीय खेल,केंद्र में नई सरकार आदि शामिल हैं.



राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड ने पास की पहली बड़ी परीक्षा

ऑपरेशन  ब्लैक थंडर के दौरान पहली बार राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की काबलियत दुनिया के सामने आई. तब पंजाब पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो की मदद से एनएसजी ने सफलतापूर्वक एक बड़े  ऑपरेशन  को अंजाम दिया था.

जानकारी के अनुसार, 16 अक्टूबर 1984 को 10,000 सक्रिय कर्मियों के साथ गठित राष्ट्रीय सुरक्षा गार्डने यूं तो कई बड़े आतंकवादी रोधी  ऑपरेशन  में हिस्सा लिया है, पर इनमें ’ऑपरेशन  ब्लैक थंडर’ को उसकी बड़ी उपलब्धियों में गिना जाता है.

राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी), जिसे आमतौर पर ब्लैक कैट्स के नाम से जानते हैं, गृह मंत्रालय के तहत भारत की एक आतंकवाद विरोधी इकाई है. इसकी स्थापना 16 अक्टूबर 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद, आतंकवादी गतिविधियों से निपटने और आंतरिक गड़बड़ी से राज्यों की रक्षा के लिए की गई थी. यह भारत के सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में से एक है.

स्थापना के बाद एनएसजी के ब्लैक कैट को 1986 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया था.इस क्रम में 29 और 30 अप्रैल 1986 को लगभग 300 एनएसजी कमांडो ने 700 सीमा सुरक्षा बल के जवानों के साथ ‘ ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ के जरिए स्वर्ण मंदिर को खालिस्तानी आतंकवादियों से मुक्त कराया.

फिर 1 मई 1986 को मंदिर पूरी तरह खाली करा कर पंजाब पुलिस को सौंप दिया गया. इस ऑपरेशन  में 300 सिख आतंकवादी पकड़े गए थे.  ऑपरेशन  की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि इसमें किसी पक्ष के किसी भी शख्स की न मृत्यु हुई और न ही चोट आई.

इसके अलावा जनवरी 1988 में एनएसजी ने पंजाब के मंड इलाके में ऑपरेशन ब्लैक हॉक चलाकर दो आतंकवादी मार गिराया था और उनसे एक 7.62 मिमी राइफल बरामद की गई गई थी.‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ के दौरान एनएसजी स्नाइपर स्वर्ण मंदिर को घेर कर नाइट विजन कैमरे और पीएसजी-1 राइफलों से लैस होकर ऊंचे पानी के टावर सहित कई पोजीशन पर तैनात थे.



समय के साथ मजबूत होता एनएसजी

इसी तरह 24-25 अप्रैल 1993 को एनएसजी कमांडो ने ऑपरेशन अश्वमेध के तहत अमृतसर हवाई अड्डे पर 141 यात्रियों के साथ अपहृत इंडियन एयरलाइंस बोइंग 737 पर धावा बोल कर आतंकवादियों के नेता, मोहम्मद यूसुफ शाह सहित दो अपहर्ता को मार गिराया था. इस  ऑपरेशन  में सारे बंधक सकुषल छुड़ा लिए गए थे. एनएसजी ने गुजरात के अक्षरधाम मंदिर में भी आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाया है.

वक्त के साथ एनएसजी निरंतर मजबूत हुआ है. कंधार हवाई जहाज के अपहरण के बाद इसके गुरुग्राम के मानेसर स्थित हेडक्वार्टर में कमांडो को ‘एयर मार्शल’ की ट्रेनिंग देने की खास व्यवस्था की गई है.

‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर‘ और एनएसए अजीत डोभाल

‘ ऑपरेशन  ब्लैक थंडर’ की चर्चा हो और मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का जिक्र न आए यह संभव नहीं. तब अजित डोभाल खुफिया विभाग में संयुक्त निदेशक हुआ करते थे. इस ऑपरेशन में उनकी भूमिका को लेकर कई लेखकों-पत्रकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं में बहुत कुछ लिखा है.

एक रिपोर्ट के अनुसार,1980 के दशक के अंत में, डोभाल खालिस्तानी विद्रोह से निपटने के लिए भारतीय पंजाब में सीमा पार से वापस आए थे.तब पंजाब भारत की घरेलू सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ था.

उनके जीवनी कारों का कहना है कि 1988 में, जब खालिस्तानी आतंकवादियों ने स्वर्ण मंदिर परिसर पर कब्जा कर लिया था, तब अजित डोभाल अमृतसर के इस गुरूद्वारे में आतंकवादियों से संपर्क बनाने में सफल रहे थे. कहते हैं कि 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के दौरान जब बड़ी कीमत चुका कर आतंकवादियों को स्वर्ण मंदिर से निकाला गया, तब त्तकालीन सरकार ने इससे बचने की कोशिश की.

ऑपरेशन ब्लैक थंडर के तहत खास तरह की ब्लू प्रिंट तैयार का ’फुल प्रूफ’ नीति अपनाई गई. इस  ऑपरेशन  के तहत नाकेबंदी कर जब बिजली काट दी गई तो खालिस्तानी आतंकवादी टूट गए और आत्मसमर्पण करने को राजी हो गए.


मलय कृष्ण धर, जो उस समय पंजाब में आईबी ऑपरेशन का हिस्सा थे और बाद में संगठन के संयुक्त निदेशक बने, ने 2005 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘ ओपन सीक्रेट्स’ में घेराबंदी का वर्णन किया है. उन्होंने लिखा-‘‘ घेराबंदी से पहले, परिक्रमा में मौजूद खुफिया ठिकानों से प्राप्त कुछ रिपोर्टों से नए हथियारों और विस्फोटक उपकरणों के आने का संकेत मिले थे.

पत्रकार शेखर गुप्ता और विपुल मुद्गल ने तब इंडिया टुडे में लिखा था, अधिकारी धरनास्थल पर हर गतिविधि पर नजर रखे हुए थे. बंदूकें सिर गिन रही थीं और चेहरों की पहचान कर रही थीं .

कई लेखों-पुस्तकों में डोभाल की चर्चा

2002 में अपनी किताब ‘ ऑपरेशन ब्लैक थंडर: एन आईविटनेस अकाउंट ऑफ टेररिज्म इन पंजाब’ में 1988 में अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर सरबजीत सिंह लिखते हैं, “13 मई को आईबी के असिस्टेंट डायरेक्टर नेहचल संधू ने एक प्रेस रिपोर्टर बनकर स्वर्ण मंदिर के अंदर आतंकवादियों को टेलीफोन किया था.

उनके अनुसार, उग्रवादी हताश थे, इसलिए, उन्होंने उन्हें सुझाव दिया कि कोई रास्ता निकालने के लिए उपायुक्त से फोन पर बात करें.’’ सिंह कहते हैं अगले दिन उग्रवादियों ने गिल सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों से बात की.
‘ रिटर्न ऑफ द सुपरस्पाई’ में पत्रकार यतीश यादव ने लिखा, ‘‘ 1988 में स्वर्ण मंदिर के आसपास अमृतसर के निवासियों और खालिस्तानी आतंकवादियों ने एक रिक्शा चालक को देखा था. उस रिक्शा चालक ने उग्रवादियों को आश्वस्त किया था कि वह एक आईएसआई ऑपरेटिव है, जिसे उसके पाकिस्तानी आकाओं ने खालिस्तानियों की मदद के लिए भेजा है.

ऑपरेशन ब्लैक थंडर से दो दिन पहले, रिक्शा चालक ने स्वर्ण मंदिर में प्रवेश किया और मंदिर के अंदर आतंकवादियों की वास्तविक ताकत और स्थिति सहित महत्वपूर्ण जानकारी लेकर लौटा. वह कोई और नहीं बल्कि अंडरकवर अजीत डोभाल थे. जब अंतिम हमला हुआ, तब वो हरमिंदर साहिब के अंदर थे. उन्होंने ही सुरक्षा बलों को खोज-और-फ्लश अभियान चलाने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी दी थी.



भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने बाद में श्री डोभाल को चांदी का डिस्क और कीर्ति चक्र देकर सम्मानित किया था.स्वामी ने 2006 में प्रकाशित पुस्तक ‘ इंडिया, पाकिस्तान एंड द सीक्रेट जिहाद’ में डोभाल का उल्लेख किया है.


डोभाल ने इस किताब की समीक्षा लिखी है. साथ ही पत्रकार के साथ अपने लंबे जुड़ाव का जिक्र करते हुए लिखा- कई साल पहले मैंने स्वामी के पत्रकारिता स्वरूप में एक शोधकर्ता की हठधर्मिता और एक बुद्धिजीवी की जिज्ञासा देखी थी, जो एक खुफिया पेशेवर आमतौर पर नापसंद करते हैं!

एक सेवानिवृत्त कर्नल, जिन्होंने घेराबंदी के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के स्क्वाड्रन की कमान संभाली थी ने जून 2014 में प्रकाशित एक लेख में लिखा, ‘‘ घेराबंदी के दौरान जब अजित डोभाल वहां पहुंचे तो उन्हें हर कोई नहीं जानता था.

हममें से केवल कुछ चुनिंदा लोग ही ऑपरेशन में इस सुपर कॉप की अविश्वसनीय भूमिका के बारे में जानते थे. उन्होंने हमें स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर जो कुछ भी चल रहा था, उसका प्रत्यक्ष विवरण दिया. व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह किए बिना, वह पूरे परिसर में इधर-उधर घूमते रहे, जबकि सभी दिशाओं से गोलियां बरस रही थीं.

काफी दिनों बाद हमें पता चला कि खालिस्तानियों के बीच उन्होंने खुद को आईएसआई का एजेंट बता रखा था.’’अपने लेख में वह लिखते हैं-‘‘ जब हम गोलीबारी कर रहे थे, तब भी वह अंदर-बाहर आते जाते दिखे.

घेराबंदी के गवाह रहे बीबीसी के पत्रकार सतीश जैकब के अनुसार, “मैंने ऑपरेशन ब्लैक थंडर के दौरान स्वर्ण मंदिर में पवित्र सरोवर की ओर देखने वाले एक होटल की छत पर बैठे शार्प शूटिंग एनएसजी कमांडो के साथ तीन दिन बिताए. जैकब के अनुसार, प्रवीण स्वामी की डोभाल के कारनामों की कहानी सच हो सकती है.

डोभाल पंजाब में गुप्त अभियानों के समग्र प्रभारी थे. 2011 में, डोभाल ने ‘द पॉलिटिक्स ऑफ काउंटर टेररिज्म इन इंडिया’ नामक पुस्तक की प्रस्तावना लिखी थी, सिजमें उन्होंने आईबी के लिए श्रेय की हिस्सेदारी का दावा करते हुए लिखा था कि यह काम आम तौर पर प्रचलित दृष्टिकोण को सफलतापूर्वक ध्वस्त कर देता है कि खालिस्तानी उग्रवाद को अकेले बल द्वारा पराजित किया गया और भारत के खुफिया ब्यूरो द्वारा गुप्त युद्धाभ्यास की मौलिक भूमिका को रेखांकित किया गया, जिसने चतुराई से रणनीतिक गलतियों का आईएसआई द्वारा फायदा उठाया.

” शेखर गुप्ता ने 2016 में लिखा था, “मैंने अक्सर कहा है ऑपरेशन ब्लैक थंडर के लिए डोभाल को विशेष तौर से चिह्नित किया जाना चाहिए. अंतिम चरण में, डोभाल देश भर में खालिस्तान आतंकवादियों पर नजर रखने में अधिक शामिल थे.