अंजुमन तरक्की उर्दू: उर्दू वर्तनी के मानकीकरण और तकनीकी चुनौतियों का मुकाबला !

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 21-04-2024
Anjuman Tarakki Urdu: Standardization of Urdu spelling and meeting the technical challenges!
Anjuman Tarakki Urdu: Standardization of Urdu spelling and meeting the technical challenges!

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

उर्दू वर्तनी के मानकीकरण का मतलब है कि उर्दू विद्वान शब्दों के रूपों पर सहमत हों, भाषा और नियमों और उर्दू भाषा पर अन्य भाषाओं के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, इन शब्दों की एक सूची संकलित की जानी चाहिए ताकि हर कोई उर्दू शब्दों का प्रयोग इसी प्रकार करें. एक शब्द के दो रूप नहीं होने चाहिए जो कि उर्दू वर्तनी में आम है.

दुनिया की किसी भी भाषा में एक शब्द बिना किसी कारण के दो तरह से नहीं लिखा जाता. उक्त बातें अंजुमन तरक्की उर्दू (हिंद) के हेड ऑफिस उर्दू घर में उर्दू स्कॉलरों ने अंजुमन की त्रैमासिक पत्रिका 'उर्दू अदब' के उर्दू वर्तनी पर विशेषांक के विमोचन के अवसर पर व्यक्त किये. 'उर्दू अदब' का यह 103वां वर्ष है और यह संभवतः एकमात्र उर्दू मैगजीन है जो इतने लंबे समय के बाद भी पाबंदी से निकल रहा है.
 
अंजुमन तरक्की उदू (हिंद) के महासचिव डॉ. अतहर फारूकी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उर्दू वर्तनी की समस्या शुरू से ही रही है. एक संस्था के रूप में, उर्दू वर्तनी को मानकीकृत करने का पहला प्रयास अंजुमन तरक्की उर्दू (हिंद) द्वारा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अब्दुल सत्तार सिद्दीकी के नेतृत्व में एक सलाहकार समिति बनाकर किया गया था, जिसकी रिपोर्ट 1944 में 'उर्दू अदब' में प्रकाशित हुई थी. 
 
इसे पुनः प्रकाशित किया गया है. इस काम को राशिद हसन खान ने आगे बढ़ाया और इस विषय पर पहली और सबसे व्यापक पुस्तक 'उर्दू इमला' के विषय से लिखी जो अंजुमन तरक्की उर्दू हिंद से मई 1974 प्रकाशित हुई थीं.
 
उन्होंने आगे कहा कि उर्दू लिपि, विशेषकर नागरी लिपि को बदलने का बहुत दबाव है, इस तर्क के साथ कि उर्दू लिपि अवैज्ञानिक है. ऐसे में उर्दू लोगों को उर्दू वर्तनी को पहले से कहीं अधिक मानकीकृत करने के प्रयास करने होंगे. फ़ारूक़ी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उर्दू लिपि को बदलने का कोई सवाल ही नहीं है और उर्दू लोग ऐसे सभी सुझावों को नहीं मानते हैं.
 
प्रोफेसर सिद्दीकी रहमान क़िदवई ने अपने भाषण में कहा कि अंजुमन उर्दू वर्तनी में कोई आधारहीन क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं चाहता है और मूल रूप से उन्हीं सिफ़ारिशों का समर्थन करता है जो अंजुमन की उर्दू वर्तनी समिति ने 1944 में की थी. इस अंक में अंजुमन द्वारा पेश की गई सिफ़ारिशें मूलतः 1944 की ही सिफ़ारिशें हैं जिन्हें पुनर्व्यवस्थित किया गया है.
 
उन्होंने आगे कहा कि इस नम्बर (मैंगजीन) को चर्चा और अनुशंसा के खाने में विभाजित किया गया है. प्रथम भाग में अंजुमन ने वे सिफ़ारिशें प्रस्तुत की हैं जिनमें सुधार की सख्त आवश्यकता थी तथा दूसरे भाग में वह बातें हैं जिनमें विद्वानों ने इस महत्वपूर्ण विषय पर अपनी बातें रखी.