ग़ालिब इंस्टीट्यूट में रतननाथ सरशार की साहित्यिक विरासत पर हुई गहन चर्चा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-09-2024
An in-depth discussion on Ratan Nath Sarshar's literary legacy took place at Ghalib Institute
An in-depth discussion on Ratan Nath Sarshar's literary legacy took place at Ghalib Institute

 

आवाज द वाॅयस / नई दिल्ली

ग़ालिब इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार 'पंडित रतननाथ सरशार: व्यक्ति, ज़माना और रचनात्मक आयाम' सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. सेमिनार के दूसरे सत्र में, जामिया मिलिया इस्लामिया के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर खालिद महमूद ने कहा कि पंडित रतननाथ सरशार के उपन्यास उर्दू साहित्य की ऐसी अमूल्य धरोहर हैं, जिनसे भाषा की नजाकत और तहज़ीब का महत्व स्पष्ट होता है. उन्होंने कहा कि उर्दू के हर बड़े लेखक पर सरशार का प्रभाव रहा है.

सेमिनार के पहले सत्र में, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर याकूब यावर ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि आज के दौर में, जब किताबों के प्रति रुचि कम हो रही है, यह बैठक बहुत महत्वपूर्ण रही, क्योंकि इसमें आलोचनात्मक दृष्टिकोण से विचार-विमर्श हुआ. 

उन्होंने सरशार को एक ऐसा लेखक बताया जो अपने समय और भविष्य में उर्दू और हिंदी साहित्य में विशेष सम्मान से देखे जाते रहेंगे.तीसरा सत्र ऑनलाइन आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (ए.एम.यू) के सोशल साइंस फैकल्टी के डीन प्रोफेसर शफी किदवई ने की.

इस दौरान वक्ताओं ने सरशार की साहित्यिक विशेषताओं और उनके योगदान पर गहन चर्चा की.अंतिम सत्र की अध्यक्षता डॉ. खालिद अल्वी ने की, जिन्होंने अपने भाषण में रतननाथ सरशार की भाषा शैली पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने न सिर्फ रचनात्मक भाषा का उपयोग किया, बल्कि कई नए मुहावरे और शब्द गढ़े। सरशार के कई शब्द अंग्रेजी शैली से प्रेरित हैं और उनके अर्थ लखनवी शब्दकोशों में भी नहीं मिलते, जिन्हें उनके सन्दर्भ से समझा जाता है.

सेमिनार के समापन पर ग़ालिब इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. इदरीस अहमद ने सभी का धन्यवाद करते हुए कहा कि ग़ालिब इंस्टीट्यूट की हमेशा यह कोशिश रही है कि नई पीढ़ी को उर्दू साहित्य के महान उपन्यासकारों की ज़िन्दगी, संघर्ष और सेवाओं से अवगत कराया जाए.