आवाज द वाॅयस / फतेहगढ़ साहिब
गुरु गोविंद सिंह जी और माता गुजरी जी के छोटे साहिबजादों, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह, की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल फतेहगढ़ साहिब में तीन दिवसीय शहीदी सभा का आयोजन किया जाता है. इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब पहुंचते हैं. सभा के दौरान विभिन्न स्थानों पर सेवादारों द्वारा लंगर आयोजित किए जाते हैं, लेकिन इस बार का एक लंगर अपनी अनूठी परंपरा और आपसी भाईचारे के संदेश के कारण चर्चा का केंद्र बन गया.
माता गुजरी कॉलेज के पास मुस्लिम समुदाय द्वारा आयोजित यह लंगर सिख-मुस्लिम एकता का प्रतीक बन गया. यह आयोजन मलेरकोटला से आए मुसलमानों ने किया, जो हर साल ‘सिख मुस्लिम सांझ और पीस एड एसोसिएशन’ के बैनर तले इस परंपरा को जीवित रखते हैं. लंगर में मीठे चावल (ज़र्दा) परोसे गए, जो इस आयोजन का मुख्य आकर्षण रहे.
नवाब शेर मोहम्मद खान की विरासत का सम्मान
इस परंपरा की शुरुआत नवाब शेर मोहम्मद खान की याद में हुई, जिन्होंने साहिबजादों की शहादत के समय सरहिंद के फौजदार वजीर खान के अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई थी. नवाब शेर मोहम्मद खान ने साहिबजादों के बलिदान को न केवल सराहा, बल्कि उस समय की क्रूरता के खिलाफ अपनी असहमति भी व्यक्त की.उनके इसी साहस और न्यायप्रियता की विरासत आज भी फतेहगढ़ साहिब में मुसलमानों और सिखों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बनकर जीवित है.
लंगर में भाईचारे का संदेश
सिख मुस्लिम सांझ और पीस एड एसोसिएशन के प्रमुख डॉ. नसीर अख्तर ने इस अवसर पर कहा, "हम मीठे चावल के माध्यम से आपसी मिठास फैलाने का संदेश लेकर आए हैं. धर्म हमें जोड़ने का पाठ पढ़ाता है, न कि तोड़ने का." लंगर में उपस्थित सेवादारों ने बड़े-बड़े बर्तनों में चावल तैयार करते हुए इस आयोजन को मानवता की सेवा का प्रतीक बताया.
लाल मसीत: सांप्रदायिक सौहार्द्र की झलक
सांप्रदायिक एकता के एक अन्य प्रदर्शन में, खमनोन तहसील के नजदीकी गांवों, बथान और रानवान के निवासियों ने लाल मसीत पर लंगर का आयोजन किया. सदियों पुरानी यह मजार गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब के पास स्थित है और यह न केवल स्थानीय मुस्लिम समुदाय, बल्कि सिखों के लिए भी एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है. हर साल, मजार के मुस्लिम संरक्षक सिख समुदाय को इसकी चाबी सौंपते हैं, जिससे वे शहीदी सभा के दौरान लंगर और अन्य व्यवस्थाओं का प्रबंधन कर सकें.
'मेरी दस्तार मेरी शान' अभियान
शहीदी सभा के अवसर पर युवा अकाली दल द्वारा ‘मेरी दस्तार मेरी शान’ अभियान के तहत ‘दस्तारन दे लंगर’ का आयोजन भी किया गया. इस लंगर में श्रद्धालुओं को मुफ्त पगड़ी बांधने का शिविर लगाया गया, जो सिख गौरव और परंपरा का प्रतीक है.
अभियान के बारे में बात करते हुए, युवा अकाली दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरबजीत सिंह झींजर ने कहा, "यह आयोजन न केवल सिख इतिहास और गौरव को संरक्षित करने का प्रयास है, बल्कि युवाओं में सिख परंपराओं और विरासत के प्रति गर्व को बढ़ाने का एक माध्यम भी है."
भाईचारे का प्रतीक बनता आयोजन
70 वर्षीय सिख स्वयंसेवक बलविंदर सिंह, जो 60 वर्षों से इस आयोजन का हिस्सा रहे हैं, ने कहा, "हमारे बुजुर्गों ने हमें सिखाया है कि समुदायों के बीच सम्मान और एकता सिर्फ परंपरा नहीं है, बल्कि यह हमारी जिम्मेदारी भी है."
फतेहगढ़ साहिब में हर साल आयोजित यह सभा, सिख और मुस्लिम समुदाय के बीच सांप्रदायिक सौहार्द्र और साझी विरासत का प्रतीक बन गई है. यह आयोजन केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रदर्शन नहीं, बल्कि सहिष्णुता, प्रेम, और एकता का संदेश भी है.
आशा की किरण
नवाब शेर मोहम्मद खान की विरासत और फतेहगढ़ साहिब में सिख-मुस्लिम एकता की झलक भविष्य की पीढ़ियों के लिए आशा की किरण है. यह आयोजन इस बात का प्रतीक है कि धर्म और संस्कृति हमें विभाजित करने के बजाय जोड़ने की शक्ति रखते हैं.
श्री फतेहगढ़ साहिब की पवित्र धरती पर सिख और मुस्लिम समुदायों का यह आपसी सहयोग दुनिया को यह संदेश देता है कि धार्मिक और सांप्रदायिक मतभेदों के बावजूद, मानवता सबसे बड़ा धर्म है.