पुष्कर के गुलाबों से सजती है अजमेर की दरगाह, सूफियत और आस्था का संगम

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 09-09-2024
Garib Nawaz's dargah smells of Pushkar roses
Garib Nawaz's dargah smells of Pushkar roses

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 
 
नाराज हुई पत्नी के श्राप के कारण ही देशभर में ब्रह्माजी का इकलौता मंदिर पुष्कर में है. पुष्कर नगरी सर्व-धर्म समभाव की नगरी भी है. ब्रह्माजी के कमल पुष्प से ही पुष्कर नगरी का निर्माण हुआ. इस खास मंदिर के दर्शन करने का सौभाग्य मुझे 2024 के अगस्त महीने में प्राप्त हुआ, तो मुझे ज्ञात हुआ कि पुष्कर नगरी भी गंगा-जमनी तहजीब का नायाब उदाहरण हैपुष्कर में स्थित ब्रह्माजी के इकलौते मंदिर पर ख्वाजा गरीब नवाज ने भी दस्तक दी और उनसे केवल दो चीजें मांगी एक पानी और दूसरा गुलाब. यही कारण है कि गरीब नवाज की दरगाह वर्षों से पुष्कर के गुलाब से महक रही है. दुनिया को सूफियत का संदेश देने वाली ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अकीदतमंद से आबाद है. 

दरगाह में ख्वाजा साहब की मजार शरीफ पर बीते कई सालों से गुलाब चढ़ाया जा रहा है. मजार शरीफ पर गैंदा, गैंदी, मोगरा भी चढ़ते हैं, लेकिन इनमें गुलाब की बात ही निराली है. यहां चढऩे वाला गुलाब मुख्यत: पुष्कर में पनपता है. 
 
 
दरगाह में साल भर चढ़ता है पुष्कर का गुलाब 

सहस्रों बरसों पुराने तीर्थराज पुष्कर में पनपे गुलाब हजारों साल से ख्वाजा साहब की मजार शरीफ पर चढ़ रहा है. पुष्कर के गुलाब की अद्भुत महक भारत एवं दुनिया के किसी मुल्क में नहीं मिलती. गुलाब के फूल और इनकी सुगंध आशिकाने ख्वाजा और लोगों को रूहानी सुकून पहुंचाते हैं.
 
पुष्कर, गनाहेड़ा, बांसेली, होकरा, बैजनाथ धाम रोड और आसपास के इलाकों में बड़े पैमाने पर गुलाब की खेती होती है. गरीब नवाज के सालाना उर्स में गुलाब की खपत यकायक बढ़ जाती है.
 
 
पुष्कर के गुलाब की मुरीद है दुनिया 

उर्स में मुख्य रूप से लाल गुलाब की मांग जबरदस्त बढ़ी हुई है. उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश और अन्य प्रांतों के अलावा पाकिस्तान के जायरीन भी पुष्कर के गुलाब के मुरीद हैं.
 
पुष्कर के गुलाब अपनी गुणवत्ता और सुगंध के लिए प्रसिद्ध हैं, और अजमेर शरीफ दरगाह की परंपराओं में उनका एक विशेष स्थान है. अजमेर में गरीब नवाज (ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती) की दरगाह भारत में एक प्रमुख इबादत स्थल है. यहां लोग अक्सर अपनी प्रार्थनाओं और प्रसाद के रूप में पुष्कर के गुलाब चढ़ाते हैं.
 
पुष्कर के गुलाब, अपनी विशिष्ट सुगंध और जीवंत रंगों के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें ऐसे पवित्र अनुष्ठानों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त माना जाता है. इन गुलाबों का उपयोग करने की परंपरा पुष्कर और दरगाह दोनों के लंबे समय से चले आ रहे सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को उजागर करती है. 
 
गंगा-जमनी तहजीब का नायाब उदाहरण

पुष्कर के गुलाब को लोग बेहद पसंद करते हैं. दरगाह आने वाले लोग और अन्य लोग उर्स एवं अन्य मौकों पर यहां से गुलाब के फूल, केवड़ा और इत्र साथ लेकर जाते हैं. यह गंगा-जमनी तहजीब का नायाब उदाहरण भी है.
 

दरगाह में आम दिनों में कई किलो गुलाब चढ़ता है 

ख्वाजा साहब की दरगाह में आम दिनों में 1100 से 1500 किलो गुलाब चढ़ता है. सालाना उर्स में इसकी खपत जबरदस्त बढ़ गई है. श्रद्धालु की बढ़ती आवक के अनुसार गुलाब के फूल पुष्कर और आसपास के क्षेत्रों से सुबह से शाम तक अजमेर पहुंचाए जा रहे हैं.
 
लाल गुलाब की मांग ज्यादा

गुलाबी गुलाब की खपत मुख्यत: गुलकंद बनाने में होती है. ख्वाजा साहब की दरगाह में उर्स में लाल गुलाब की मांग ज्यादा हो जाती है.
 
पुष्कर के गुलाब से मुगल बादशाह जहांगीर की पत्नी नूरजहां ने बनवाया था इत्र 

पुष्कर के लाल और गुलाबी गुलाब की महक पूरे देश-दुनिया में मशहूर है. क्या आप जानते हैं कि मुगल बादशाह जहांगीर की पत्नी नूरजहां ने पुष्कर के गुलाब से ही गुलाब का इत्र बनवाया था. इसके बाद ही दुनिया गुलाब के इत्र से रूबरू हुई. 
 
 
साथ ले जाते हैं गुलाब, केवड़ा और इत्र

पुष्कर की माटी में पनपने वाले लाल और गुलाबी गुलाब की महक लोगों को बहुत पसंद आती है. कई लोग पुष्कर से गुलाब के पौधे भी खरीदते हैं.
 
अजमेर में गुलाब के फूलों की दुकानें

ख्वाजा साहब की दरगाह, दरगाह बाजार और अजमेर में मदार गेट और अन्य इलाकों में  गुलाब के फूलों की दुकानें भी हैं.
 
 
पुष्कर के गुलाब विश्व-प्रसिद्ध

ब्रह्माजी के हाथ से भले ही कमल पुष्प यहां गिरा हो, लेकिन वर्तमान में पुष्कर के गुलाब विश्व प्रसिद्ध हैं. यहां बड़ी मात्रा में गुलाब की खेती होती है. अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की पवित्र मजार पर चढ़ाने के लिए रोजाना कई क्विंटल गुलाब यहां से भेजा जाते हैं. इन गुलाब-पुष्पों से बनी गुलकंद, गुलाब जल इत्यादि का निर्यात भी किया जाता है.
 
 
पुष्कर: सर्व-धर्म समभाव की नगरी

पुष्कर का महत्व सर्व-धर्म समभाव नगर के रूप में भी है. यहां कई धर्मो के देवी-देवताओं के आस्था स्थल हैं. जगतगुरु रामचन्द्राचार्य का श्रीरणछोड़ मंदिर, निम्बार्क सम्प्रदाय का परशुराम मंदिर, गायत्री शक्तिपीठ, महाप्रभु की बैठक, जोधपुर के बाईजी का बिहारी मंदिर, तुलसी मानस व नवखंडीय मंदिर, गुरुद्वारा और जैन मंदिर आदि दर्शनीय स्थल हैं. जैन धर्म की मातेश्वरी पद्मावती के जमींदोज हो चुके मंदिर के अवशेष आज भी हैं. नए और पुराने रंगजी का मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है.
 
ब्रह्माजी के कमल पुष्प से बना था पुष्कर सरोवर

पद्मपुराण के अनुसार ब्रह्माजी को यज्ञ करना था. उसके लिए उपयुक्त स्थान का चयन करने के लिए उन्होंने धरा पर अपने हाथ से एक कमल पुष्प गिराया. वह पुष्प अरावली पहाड़ियों के मध्य गिरा और लुढ़कते हुए दो स्थानों को स्पर्श करने के बाद तीसरे स्थान पर ठहर गया. जिन तीन स्थानों को पुष्प ने धरा को स्पर्श किया, वहां जलधारा फूट पड़ी और पवित्र सरोवर बन गए. सरोवरों की रचना एक पुष्प से हुई, इसलिए इन्हें पुष्कर कहा गया. प्रथम सरोवर कनिष्ठ पुष्कर, द्वितीय सरोवर मध्यम पुष्कर कहलाया. जहां पुष्प ने विराम लिया वहां एक सरोवर बना, जिसे ज्येष्ठ पुष्कर कहा गया. ज्येष्ठ पुष्कर ही आज पुष्कर के नाम से विख्यात है.
 
 
तीर्थराज' के नाम से प्रसिद्ध पुष्कर सरोवर

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की यज्ञस्थली और ऋषि-मुनियों की तपस्थली तीर्थगुरु पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है. रूष्ट हुई पत्नी के श्राप के कारण ही देशभर में ब्रह्माजी का इकलौता मंदिर पुष्कर में है. पुष्कर सरोवर की उत्पत्ति भी स्वयं ब्रह्माजी ने की. जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को पुष्कर राज कहा जाता है.
 
तीर्थराज' के नाम से प्रसिद्ध पुष्कर सरोवर, सभी तीर्थस्थलों का राजा कहलाता हैं. इस सरोवर में डुबकी लगाने पर तीर्थयात्रा सम्पन्न मानी जाती है, ऐसी मान्यता है. अर्द्ध गोलाकार रूप में लगभग 9-10 मीटर गहरी यह झील 500 से अधिक मंदिरों और 52 घाटों से घिरी हुई है.
 
 
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti in Hindi) फ़ारसी मूल के सुन्नी मुस्लिम दार्शनिक और धार्मिक विद्वान थे. उन्हें गरीब नवाज़ के नाम से भी जाना जाता था. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti in Hindi) 13वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप में आये और राजस्थान के अजमेर में बस गये. उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में सुन्नी इस्लाम के चिश्ती आदेश की स्थापना की और उसका प्रसार किया. यह एक रहस्यमय सूफी सिलसिला था. उनका विश्राम स्थल अजमेर में है, जो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह (Khwaja Moinuddin Chishti Dargah in Hindi) के नाम से प्रसिद्ध है. इस दरगाह की वास्तुकला इंडो-इस्लामिक है.