फरहान इसराइली/ उदयपुर.
देश भर में धूमधाम से मकर संक्रांति का पर्व मनाया गया.ऐसे में आसमान में भी रंग-बिरंगी पतंग के साथ दान-पुण्य का दौर देखने को मिला.राजस्थान के उदयपुर के रहने वाला एक परिवार पतंगबाजी में महारत हासिल किए हुए हैं, जिसे पतंगबाजी का उस्ताद कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
एक डोर से 1000 से ज्यादा पतंग उड़ा कर लोगों को अचरज में डाल देने वाला यह परिवार लगातार सामाजिक सौहार्द के साथ पतंगबाजी करने का संदेश देता है.
पतंगबाजी के लिए प्रसिद्ध परिवार
उदयपुर के अब्दुल कादिर ने पतंगबाजी में खास मुकाम हासिल किया है.अंतरराष्ट्रीय पतंगबाज अब्दुल कादिर ने एक डोर से 1000से अधिक पतंगें उड़ाने के साथ कई रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं.
हाल में गुजरात के अहमदाबाद में काइट फेस्टिवल में अब्दुल ने जब एक डोर से हजार पतंगें उड़ाई तो वहां मौजूद लोग इसे देख दंग रह गए.इससे पहले कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने पतंगों के माध्यम से जन जागरूकता का संदेश दिया था.
पिछले 20 सालों से पतंगबाजी में अब्दुल कादिर ने कई रिकॉर्ड बनाए हैं.कादिर के परिवार में उनकी तीन पीढ़ियां पतंगबाजी के इस अद्भुत हुनर में पारंगत है.इनकी अनोखी पतंगबाजी देखने के लिए लोगों की भीड़ जुटती है.
कादिर ने इससे पहले 15 फीट के भालू की आकृति की पतंग, 45 फीट की छिपकली, तिरंगा, फाइटर प्लेन और तितली की आकृति की पतंगें भी उड़ाई है.उनके इस हुनर का हर कोई कायल है.अब्दुल ने बताया कि वे 2001 से पतंगबाजी कर रहे हैं.
देश के कई राज्यों में हुई प्रतियोगिताओं में उन्होंने भाग लिया.अब तक उन्होंने हैदराबाद, केरल, गोवा, चंडीगढ़ और पंजाब में पतंगबाजी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय पतंगबाज का खिताब अपने नाम किया है.इस दौरान उन्होंने कई पुरस्कार भी जीते हैं.
अब्दुल कादिर की तीन पीढ़ियां कर रहीं पतंगबाजी
कादिर ने बताया कि उनके दादा और पिता को भी पतंगबाजी में महारत हासिल थी.अब अब्दुल तीसरी पीढ़ी है जो इस कला में पारंगत है. उनके दादा नूर सां का पतंगबाजी में काफी नाम था.उन्होंने करीब 50 साल तक पतंगबाजी प्रतियोगिताओं में भाग लिया.अब्दुल कादिर ने बताया कि उनके पिता अब्दुल रशीद ने भी पतंगबाजी में देशभर में नाम कमाया है.
इसके बाद अब्दुल परिवार की इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं.अब्दुल ने बताया कि पतंगबाजी का जुनून उनके दादा को था. फिर उन्हें देखकर पिता ने सीखा.अब यह उनके अंदर आ गया है.पूरा परिवार 50सालों से पतंगबाजी की कला से जुड़ा है.
इस तरह बनाते हैं पतंगें
अब्दुल ने बताया कि इन पतंगों को बनाने के लिए लकड़ी की कमान और कपड़े की सिलाई कर उसे बैलेंस बनाया जाता है.एक डोर पर इतनी सारी पतंगें उड़ने के पीछे खास तकनीक है.ऐसे में पतंग को उड़ाने के लिए ऊपर वाली लकड़ी पतली होनी चाहिए, ताकि हवा में ऊंचाई मिल सके.सीधी लगने वाली लकड़ी मोटी होनी चाहिए जिससे हवा में संतुलन बना रहे.
इसके बाद रेशम की मजबूत डोर पर पतंगों को एक-एक फीट की दूरी पर बांधते हैं.साथ ही इन्हें उड़ाने के लिए मध्यम गति की हवा चलना भी जरूरी है.पतंगों को अलग-अलग डिजाइन भी दी जाती है.उन पर आंख, मुंह की आकृति बनाकर आकर्षक बनाया जाता है.इसे बनाने में करीब 15दिन का समय लगता है.
पतंगबाजी से दे चुके हैं कई संदेश
उदयपुर के फतेहसागर झील के किनारे मकर सक्रांति व निर्जला एकादशी के अवसर पर पतंगबाजी की जाती है.अब्दुल कादिर ने पतंगबाजी के माध्यम से समाज को अलग-अलग संदेश भी दिए हैं.अब तक उन्होंने पतंगों के माध्यम से बेटी बचाओ, पर्यावरण बचाओ, पानी और झीलों को बचाने, कोरोना जन-जागरूकता के साथ ही हिंदू-मुस्लिम एकता का भी संदेश दिया गया.