आवाज द वाॅयस / मराठी
पुणे में एक ऐसी कहानी बनी जो दिल को छू गई. एक तरफ मुल्क में मजहबी तनाव की बातें हो रही हैं, वहीँ दूसरी तरफ पुणे की गलियों में इंसानियत की मिसाल कायम हुई. वाकिया उन लोगों के मुँह पर तमाचा है जो नफरत फैलाते हैं. पुणे की रास्ता पेठ में रहने वाली हिंदू बहन जयश्री किंकले और उनके भाई सुधीर किंकले एक-दूसरे का सहारा थे.
उनके पास दूर-दराज का कोई रिश्तेदार नहीं था.लेकिन एक दिन सुधीर का अचानक इंतकाल हो गया और जयश्री अकेली रह गईं. भाई का आखिरी रस्म कैसे पूरा हो, ये सोचकर वो परेशान थीं.
ऐसे मुश्किल वक्त में जावेद खान और माइकल साठे नाम के दो दोस्त उनकी मदद को आए. रमजान की पवित्र रात और ईसाईयों के लेंट के मुकद्दस वक्त में इन दोनों ने मिलकर जयश्री के भाई का हिंदू रिवाज से अंतिम संस्कार किया. ये देखकर लगता है कि मजहब की दीवारें इंसानियत के आगे कुछ भी नहीं.
क्या हुआ था?
जावेद खान, जो उम्मत सोशल ऑर्गनाइजेशन के सरबराह हैं, उन्हें 27 मार्च को उनके दोस्त माइकल साठे का फोन आया.माइकल ने बताया कि उनकी बिल्डिंग के पास रहने वाले 70 साल के सुधीर किंकले का घर में ही इंतकाल हो गया.
सुधीर की सिर्फ एक बहन जयश्री है, और उनका कोई और सहारा नहीं. माइकल ने जावेद को ये बात बताई और जावेद सारे काम छोड़कर सीधे मदद के लिए निकल पड़े.
जावेद पुणे के ससून हॉस्पिटल के डेड हाउस पहुँचे. वहाँ जयश्री और पुलिस हवलदार होलकर से मुलाकात हुई. पंचनामा चल रहा था. शाम हो चुकी थी. पता चला कि मृतदेह रात को मिलेगा. जावेद ने जयश्री से पूछा कि अंतिम रस्म कब करनी है. जयश्री ने कहा, "हम ब्राह्मण हैं. सूरज डूबने के बाद रस्म नहीं करते. सुबह करना पड़ेगा."
अगला दिन यानी 28 मार्च रमजान की सबसे खास रात लैलतुल कद्र का था. ये रात मुस्लिमों के लिए बहुत मुकद्दस होती है. जब नमाज और कुरान की तिलावत की जाती है.
जावेद के सामने मजहबी फर्ज और इंसानियत का सवाल था. जावेद ने सोचा, "रमजान में ये रात इबादत की है, लेकिन शायद अल्लाह ने मुझे इस काम के लिए चुना है." उधर माइकल के लिए भी लेंट का पवित्र वक्त था, जब ईसाई उपवास और नेक काम करते हैं.
इंसानियत की जीत
रमजान और लेंट के इस मुकद्दस वक्त में जावेद और माइकल ने अपने मजहबी फर्ज निभाते हुए एक हिंदू भाई का हिंदू रिवाज से अंतिम संस्कार किया. जयश्री के आँसू देखकर दोनों ने उन्हें हिम्मत दी.
भावनात्मक सहारा दिया. जावेद ने इस वाकिए का वीडियो फेसबुक पर डाला और लिखा, "हम सब सुधीर काका के रिश्तेदार बन गए..उनकी आखिरी रस्म पूरी की. रमजान में ये नेक काम हुआ."
पठानी और टोपी पहने जावेद खान जयश्री के साथ शमशान भूमि में सुधीरजी पर हिन्दू रीतिरिवाज के साथ अंत्यसंस्कार किया. जावेद पंडित जी के सामने बैठकर जयश्रीजी को विधि में सिर्फ मदत ही नही कर रहे, बल्कि खुद भी आगे बढ़कर कुछ विधि करते दिखाई दिए. इसका वीडियो सोशल मिडिया तेज़ीसे वायरल हुआ.
पत्रकार राहुल कुलकर्णी ने लिखा, "रमजान और गुढीपाडवा की चहल-पहल में जावेद की इंसानियत देखकर लगा - माणसाने माणसाशी माणसासम वागणे, यही असली प्रार्थना है." लेखक कामिल पारखे ने कहा, "जावेद और माइकल को उनकी इस नेकी के लिए दुआएँ मिलेंगी. ऐसे लोग बढ़ें..
जयश्री का शुक्रिया
अंतिम रस्म के बाद जयश्री ने जावेद और माइकल का दिल से शुक्रिया अदा किया. वो बोलीं, "ये लोग दूसरे मजहब के हैं. फिर भी मेरे हिंदू भाई की रस्म पूरी की. जो लोग हिंदू-मुस्लिम में नफरत फैलाते हैं, उन्हें मैं कहना चाहती हूँ कि हम सब एक खुदा की बनाई चीज हैं. मेरे पास कोई नहीं था, फिर भी ये मुस्लिम-ईसाई भाई मेरी मदद को आए..
पुणे का पैगाम
पुणे हमेशा से मजहबी इत्तेहाद के लिए मशहूर रहा है..यहाँ हिंदू, मुस्लिम, ईसाई सब मिलकर भाईचारे का मिसाल कायम करते हैं. जावेद और माइकल ने अपनी इस हरकत से पुणे की इस रिवायत को और मजबूत किया. इन दोनों ने साबित कर दिया कि असली इबादत इंसानियत की खिदमत है..मजहब की सरहदें पार करके इंसान का इंसान से रिश्ता ही सच्चा धर्म है.