मुन्नी बेगम
असम के दक्षिण सलमारा जिले का एक गांव हर साल बाढ़ से तबाह हो जाता है. लेकिन इस मुस्लिम बहुल गांव के निवासियों ने इस वार्षिक प्राकृतिक आपदा को अवसर में बदल दिया है. बाढ़ के दौरान ग्रामीण भारी मात्रा में विभिन्न प्रकार की मछलियां पकड़ते हैं, बाढ़ के मौसम के तुरंत बाद उन्हें धूप में सुखाते हैं और आजीविका कमाने के लिए सूखी मछलियों को बाजारों में बेचते हैं. अब दक्षिण सलमारा जिले के बेपारीपारा गांव के ज्यादातर ग्रामीणों के लिए सूखी मछलियाँ ही आजीविका का एकमात्र स्रोत बन गई हैं. इस गांव में प्रवेश करते ही सूखी मछली की गंध आपको मछली प्रेमी बना सकती है.
हाल ही में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा आयोजित ‘असमिया सरोस मेला’ में भाग लेकर नूरानी बेगम को असम और देश के अन्य हिस्सों में लोगों के बीच प्राकृतिक रूप से सूखी मछली को बढ़ावा देने का अवसर मिला.
आवाज-द वॉयस से बात करते हुए नूरानी बेगम ने कहा, ‘‘मैं बचपन से ही सूखी मछली के कारोबार से जुड़ी हुई हूँ. पूरे साल हम सूखी मछली को ग्राहकों को सप्लाई करने के लिए तैयार रखने के लिए उचित व्यवस्था करते हैं. बरसात के मौसम में हम विभिन्न व्यापारियों से बड़ी मात्रा में ताजी मछलियाँ खरीदते हैं और नहरों, समुद्र तटों, नदियों आदि से खुद भी मछलियाँ पकड़ते और सुखाते हैं.’’
मछलियों को सुखाना और संरक्षित करना बहुत पुरानी प्रथा है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि पुराने दिनों में रेफ्रिजरेटर जैसे अन्य परिरक्षक नहीं थे, इसलिए ताजी मछलियों को लंबे समय तक सुरक्षित रखना संभव नहीं था. इसलिए, मछलियों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए उन्हें सुखाया जाता था. यह प्रथा अब बेपारीपारा गाँव के लोगों की आजीविका का एकमात्र स्रोत बन गई है. वे असम और पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में सूखी मछली की आपूर्ति करते रहे हैं.
नूरानी बेगम ने कहा, ‘‘हमारे पास बरसात और सूखे मौसम में हर समय सूखी मछलियाँ उपलब्ध रहती हैं. हम विभिन्न व्यापारियों से एकत्र की गई ताजी मछलियों के पेट को निकालते हैं और उन्हें अच्छी तरह से धोते हैं. मछलियों को अच्छी तरह से सुखाने के बाद, 100 ग्राम से 1 किलोग्राम वजन के पैकेट तैयार करके बाजार में बेचे जाते हैं. हम प्रतिदिन लगभग 20-40 किलो मछलियाँ सुखाते हैं और मेरे परिवार के सभी लोग मिलकर काम करते हैं.’’
सोनाली स्वयं सहायता समूह की सदस्य नूरानी बेगम बामला मछली, सूरी मछली, नकटुरी, मीसा मछली, केस्की मछली, चेलेकनी मछली, मोआमास आदि जैसे स्थानीय नामों वाली मछलियों को सुखाकर संरक्षित करती हैं.
वह बताती हैं, “मैं मछलियों को आग के बजाय केवल धूप में सुखाती हूँ. क्योंकि जब आप मछलियों को आग में ठीक से सुखाते हैं, तो वे गुलाबी हो जाती हैं और उनमें से धुएँ जैसी गंध आती है. इससे मछली का स्वाद थोड़ा बदल जाता है. मछलियों को धूप में सुखाने का एक और कारण यह है कि एक साथ बड़ी मात्रा में मछलियाँ सुखाई जा सकती हैं.”
50,000 से 1 लाख रुपये तक कमाने वाली नूरानी बेगम सूखी हुई मछलियों को बेचने के लिए दक्षिण सलमारा में असम-मेघालय सीमा पर हर साप्ताहिक बाजार में ले जाती हैं. उन्होंने बताया कि बाजार में ग्राहक उनसे 30 से 40 किलो मछली खरीदते हैं, जिससे उन्हें 15,000/20,000 रुपये की कमाई होती है. वह अपने बेटे अख्तर हुसैन के साथ असम के विभिन्न हिस्सों में आयोजित होने वाले मेलों में भी सूखी मछलियां बेचने के लिए ले जाती हैं. उनके पास 50 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक की मछलियां हैं.
सूखी मछली का कारोबार बहुत अच्छा है. उन्होंने बताया, ‘‘हमारे गांव के ज्यादातर लोग इसी कारोबार से अपनी आजीविका चलाते हैं. हम साल भर में 10-20 क्विंटल मछलियां इकट्ठा करते हैं. मैं शेड के नीचे ब्लीचिंग पाउडर का इस्तेमाल करती हूं, ताकि कीड़े मछलियों को न पकड़ें. पूरा परिवार इस कारोबार से जुड़ा है. मैं घर पर ही मछलियों को साफ करती हूं, धोती हूं, सुखाती हूं और पैक करती हूं.’’
दक्षिण सलमारा के बेपारीपारा गांव के 400 परिवार सूखी मछली के कारोबार में आत्मनिर्भर हैं. वे सूखी मछली के कारोबार से अपनी आजीविका चला रहे हैं.