गुलाम कादिर /श्रीनगर
श्रीनगर में एक साधारण सी सड़क पर चाय बेचने वाला अपनी बीमार मां के प्रति अटूट स्नेह, प्यार और समर्थन से दूसरों को अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करने के लिए प्रेरित कर रहा है. चार साल से चाय बेचने वाला यह शख्स अपनी बीमार मां को व्हीलचेयर में सड़क किनारे अपनी चाय की दुकान पर ला रहा है, जहां वह दुकानदारी के अलावा उसकी देखभाल करता है.
लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने चाय विक्रेता फारूक अहमद शहर के केंद्र लाल चैक के कोर्ट रोड इलाके में सड़क किनारे अपनी छोटी सी चाय की टपरी चलाते हैं. पिछले 17 साल से इलाके में चाय बेच रहे फारूक ने जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे हंै.
कुछ साल पहले उन्होंने अपने छोटे भाई की शादी कर दी, जिसने अलग रहने का फैसला किया. फारूक की खुद भी कुछ साल पहले शादी हुई थी, लेकिन यह ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई. अब, उनके परिवार में केवल दो सदस्य बचे हैं. एक वह और दूसरी उनकी बीमार और बुजुर्ग मां.
माता-पिता बच्चों के जीवन में प्रकाश की तरह होते हैं. जब वे स्वस्थ और लायक होते हैं तो अपने जीवन को आराम न देकर बच्चों पर लगा देते हैं. मगर बुढ़ापे में वो अकेले पड़ जाते हैं. फारूक की मां के साथ ऐसा न हो, इसके लिए वह पूरी कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह अपनी मां को अकेला और बेबस न छोड़ें.
फारूक कहते हैं, “मेरी मां को पीठ में दर्द रहता है. हृदय सहित कई अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हैं. घर में मेरे अलावा उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं.फारूक ने कहा, मैं दिए गए संसाधनों के साथ उनका सर्वोत्तम देखभाल कर रहा हूं.
इसके लिए मुझे कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है. घर में अपनी वृद्ध मां की देखभाल करने वाला कोई नहीं होने से फारूक हर सुबह 7 बजे बुजुर्ग महिला को व्हीलचेयर पर अपनी चाय की दुकान पर ले आते हैं. वह पूरे दिन उसके साथ रहती हैं. जब तक कि वह अपना काम खत्म नहीं कर लेते और घर के लिए नहीं निकलते.
फारूक के अनुसार,मेरी मो घर पर अकेली नहीं रह सकती. उनकी देखभाल के लिए किसी को वहां रहना होगा. पिछले पांच वर्षों से मैं उनकी देखभाल के लिए हर मौसम में अपनी चाय की दुकान पर ले आता हूं. दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सर्दियों के दौरान बारिश या बर्फबारी होने पर भी मुझे उन्हें अपनी चाय की दुकान पर लाना पड़ता है. ”
सर्दियों में, फारूक को अपनी मां को गर्म रखने के लिए अतिरिक्त ऊनी कपड़े और कांगड़ी (स्थानीय अग्निपात्र) ले जाना पड़ता है. वह कहते हैं, मां को रोजाना अपनी चाय की दुकान पर लाकर मैं यह सुनिश्चित करने की कोशिश करता हूं कि वह मेरे करीब है.
ग्राहकों की देखभाल के अलावा मैं उसे बातों में उलझाए रखने की कोशिश करता हूं, ताकि उसे अकेलापन महसूस न हो. फारूक ने कहा, मैं चाय की दुकान पर उसे हर संभव तरीके से सांत्वना देने की कोशिश करता हूं.
फारूक की मेहनत शाम को चाय की दुकान बंद करने से खत्म नहीं होती. घर पर, उसे अपने और अपनी मां के लिए भोजन तैयार करना पड़ता है. इसके अलावा उसे रोजमर्रा के अन्य काम भी निपटाने पड़ते हैं.
उनकी मां अपने बेटे की खूब तारीफ करती हैं. कहती हैं, “मैं प्रार्थना करती हूं कि अल्लाह हर किसी को उसके जैसा बेटा दे. वह एक बच्चे की तरह मेरी सेवा और देखभाल करता है. वह मुझे नहलाता भी है. वह मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ता. मैं दुआ करती हूं कि वह जीवन में समृद्धि हो और उसके बाद उसे जीवन में बेहतर इनाम मिले.
फारूक का अपनी मां के प्रति अटूट स्नेह और प्यार कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गया है. उनकी छोटी सी चाय की दुकान पर आने वाले सभी लोग प्यार और समर्पण देखकर अपने स्थानों पर वापस लौट आते हैं जो हर बच्चे को अपने माता-पिता को देना चाहिए, उतना ही जितना उनके माता-पिता ने उन्हें दिया.