मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली
खेल के लिहाज से जब भी हैदराबाद का जिक्र आता है, मुस्लिम खिलाड़ियों के तौर पर सैयद किरनामी, अजहरूद्दीन, अरशद अय्यूब, सानिया मिर्जा, निखत जरीन का नाम अनायास ही जुबान पर आ जाता है.
मगर बहुत कम लोग यह याद रख पाते हैं कि बॉक्सर मोहम्मद हुसामुद्दीन भी इसी शहर के लाल हैं, जिन्होंने अपने वर्ग में हमेशा भारत को गौरवान्वित करने का प्रयास किया है. यहां एक बात और काबिल-ए-गौर है कि मोहम्मद हुसामुद्दीन के पिता ही निकहतजरीन के पहले कोच रहे हैं.
हुसामुद्दीन, अपने दो भाइयों एहतेशामुद्दीन और एहथेसामुद्दीन से मुक्केबाजी में आने के लिए प्रेरित हुए.कहते हैं कि वह अपने जीवन में उतार-चढ़ाव का सामना करने के आदीहो चुके हैं, लेकिन वह अपने करियर के सबसे महत्वपूर्ण वर्ष में वास्तव में कड़ी मेहनत करने के लिए दृढ़ हैं.हुसामुद्दीन ओलंपिक पदक की तलाश मेंहैं.
कहते हैं, “मैंने कभी भी हार को चुपचाप स्वीकार नहीं किया.प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद हमेशा लड़ने के लिए तैयार रहता हूं.कभी घबराहट महसूस नहीं हुई. इसलिए, मैं देश के लिए और अधिक गौरव हासिल करने और पेरिस ओलंपिक में अपने अंतिम लक्ष्य को हासिल करने को लेकर आश्वस्त हूं.''
भारतीय सेना में सूबेदार (बोलारम में स्थित), दो बार के ओलंपिक चैंपियन वासिल लोमाचेंको के फुटवर्क और शैली के प्रशंसक हैं, ने कहा कि उन्हें विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक के लिए नकद प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है.
व्यक्गित जानकारी
मुक्केबाजों के परिवार से आने वाले, मोहम्मद हुसामुद्दीन छह भाइयों में सबसे छोटे हैं, जिनमें से चार इस खेल में शामिल हैं.हुसामुद्दीन, जिनके आदर्श वासिल लोमाचेंको हैं, जो 2016 से डब्ल्यूबीओ सुपर फेदरवेट चैंपियन हैं, तब तक दस्ताने पहनने से डरते थे जब तक कि उनके पिता और कोच मोहम्मद शम्सुद्दीन ने उन्हें उस डर से छुटकारा नहीं दिलाया.
उन्हें निज़ामाबाद के कलेक्टरेट मैदान में कला सिखाई.
उपलब्धियाँ:
मोहम्मद हुसामुद्दीनने राष्ट्रीय परिदृश्य पर जाने से पहले राज्य-स्तरीय प्रतियोगिताओं में खुद को स्थापित किया. 2009में औरंगाबाद में जूनियर नेशनल में पदार्पण करते हुए कांस्य पदक जीता.उन्होंने सीनियर नेशनल में अपने पदार्पण में ही इसे स्वर्ण में बदल दिया.
मुक्केबाज की क्षमता को जल्दी ही पहचान लिया गया और 2011 में, उन्हें फ़िनलैंड में 2012 टैमर टूर्नामेंट और बाद में येरेवन, आर्मेनिया में यूथ वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लेने से पहले हवाना, क्यूबा में एक पखवाड़े के प्रशिक्षण और प्रतियोगिता के लिए भेजा गया.
अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में उनका प्रदर्शन 2015मिलिट्री वर्ल्ड गेम्स में कांस्य पदक के साथ समाप्त हुआ.तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.आज वह अपने भार वर्ग में देश के बेहतरीन मुक्केबाजों में से एक बन गए हैं.
कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में कांस्य और केमिस्ट्री कप में स्वर्ण के साथ, हुसामुद्दीन ने चमक जारी रखी और 2019 में जी बी बॉक्सिंग टूर्नामेंट में रजत पदक जीता.