ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
याकूब मंसूरी शुक्रवार की रात दूसरों के बच्चों के लिए हीरो बन गए लेकिन उनकी अपनी नवजात जुड़वां बेटियाँ, कहां गईं वे कभी नहीं जान पाएँगे.
दरसअल याकूब मंसूरी कई सारे नवजात बच्चों और उनके परिजन के लिए देवदूत बनकर सामने आए. अपनी जान पर खेलकर उन्होंने कई शिशुओं की जान बचाई. सभी को याकूब पर फख्र है. लेकिन खुद याकूब की 2 जुड़वा बेटियां कभी भी यह बात नहीं जान पाएंगी क्योंकि उनके पिता काल के गाल में समाने से नहीं बचा पाए. यह घटना उत्तर प्रदेश के झांसी मेडिकल कॉलेज में लगी आग की है, जो तमाम लोगों को कभी ना भर पाने वाला गहरा जख्म दे गया.
हमीरपुर का यह युवा खाद्य विक्रेता एक सप्ताह से महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई के बाहर सो रहा था, जहाँ उसकी दो नवजात जुड़वां बेटियाँ भर्ती थीं. अपनी पत्नी नज़मा के साथ, याकूब बारी-बारी से जुड़वाँ बच्चों की देखभाल करता था.
याकूब की पत्नी बिस्तर पर गमगीन
हमीरपुर के निवासी याकूब ठेला लगाकर जीवनयापन करते हैं. वह उन बदकिस्मत लोगों में शामिल रहे, जिनके बच्चे झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज की NICU में लगी आग में बचाए नहीं जा सके. याकूब की पत्नी नजमा ने कुछ दिन पहले ही 2 जुड़वा बच्चियों को जन्म दिया था. दोनों वहां पर ऐडमिट थीं. शुक्रवार की रात याकूब वार्ड के बाहर ही सोए हुए थे.
अचानक से आग लगने और धुआं फैलने की घटना के बाद याकूब ने खिड़की तोड़ी और यूनिट में अंदर घुस गए. उन्होंने हिम्मत दिखाते हुए एक- एक कर कई बच्चों को सुरक्षित निकाला. लेकिन इनमें खुद की दोनों बेटियां शामिल नहीं थीं.
याकूब यूनिट के अंदर
जब शुक्रवार की रात आग लगी, तो याकूब खिड़की तोड़कर इकाई में घुस गया और जितने शिशुओं को बचा सकता था, उन्हें बचाया. लेकिन उनमें उसकी दो बेटियाँ नहीं थीं. जुड़वाँ लड़कियों के शवों की पहचान शनिवार को बाद में हुई.
याकूब और नजमा पूरा दिन अस्पताल के बाहर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर आंसू पोछते रहे. झांसी की घटना ने पूरे देश को झकझोर डाला. इस घटना ने सरकारी तंत्र की लापरवाही और मेडिकल संस्थानों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी को भी सामने ला दिया है. मेडिकल कॉलेज के नीकू वार्ड में 10 परिवारों के सपने परवान चढ़ने से पहले ही धराशायी हो गए. अस्पतालों के बाहर चीखते-चिल्लाते परिजनों के आंसू हालात को बयां कर रहे हैं.
नज़मा और याकूब का परिवार शोक में है
नज़मा और याकूब पूरे दिन अस्पताल के बाहर बैठे रहे, उनकी आँखें अविश्वास और दुःख से भरी हुई थीं.
वाकई यह मार्मिक घटना इस बात का सबूत है कि इंसानियत अभी जिंदा है और धर्म और जाति के भेदभाव से परे हटकर कुछ लोग आज भी मानवता को सर्वोपरि धर्म मानते हैं और अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं.