समान नागरिक संहिता अरब में सबके लिए एक कानून है, तो भारत में अलग-अलग क्यों ?

Story by  फिदौस खान | Published by  onikamaheshwari | Date 06-07-2023
समान नागरिक संहिता अरब में सबके लिए एक कानून है, तो भारत में अलग-अलग क्यों ?
समान नागरिक संहिता अरब में सबके लिए एक कानून है, तो भारत में अलग-अलग क्यों ?

 

फ़िरदौस ख़ान 

दुनिया के बहुत से देशों में समान नागरिक संहिता लागू है. वहां देश में सबके लिए एक ही कानून चलता है. इनमें अमेरिका, आयरलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, मिस्र, तुर्की, पाकिस्तान, बांग्लादेश और सूडान आदि देश शामिल हैं. अगर हम इस्लाम के सिरमौर सऊदी अरब की बात करें, तो वहां भी समान नागरिक संहिता ही लागू है.

जगजाहिर है कि सऊदी अरब में इस्लामी कानून चलता है और यह कानून सबके लिए बराबर है, यानी अरब में गैर मुस्लिमों के लिए भी वही कानून है, जो मुसलमानों के लिए है. इस तरह इसे समान नागरिक संहिता कहना कतई गलत न होगा. वहां के गैर मुस्लिम ये नहीं कहते कि हमारे मामले हमारे धर्म ग्रंथों के आधार पर ही हल किए जाने चाहिए, बल्कि वे लोग सऊदी अरब के कानून का सम्मान करते हैं. अब सवाल यह है कि जब सऊदी अरब में सभी मजहबों के लोगों के लिए एक कानून है, तो फिर भारत में सबके लिए एक कानून क्यों नहीं हो सकता है?    

देश में समान नागरिक संहिता का मामला एक बार फिर से सुर्खियों में है. हालांकि चुनावों के मौसम में देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने का मुद्दा उठता रहता है और चुनावी मौसम बीत जाने के बाद इसके जिन्न को बोतल में बंद कर दिया जाता है. लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान के बाद यह मामला चर्चा में आया है, जिसमें उन्होंने समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए कहा है कि ‘‘समान नागरिक संहिता के नाम पर लोगों को भड़काने का काम हो रहा है. एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, दूसरे के लिए दूसरा, तो क्या वह परिवार चल पाएगा. फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? हमें याद रखना है कि भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है. सुप्रीम कोर्ट भी कह चुकी है कि यूसीसी लाओ.''

हालांकि ज्यादातर विपक्षी दल प्रधानमंत्री के इस बयान की आलोचना करते हुए कह रहे हैं कि यह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए छेड़ा गया महज़ एक शिगूफ़ा है. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी, राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी इसका सख़्त विरोध कर रही हैं, जबकि आम आदमी पार्टी ने इसका समर्थन किया है. 

भारतीय जनता पार्टी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आती है, तो देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी. इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ ने देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग की थी. संघ का यह स्थायी मुद्दा है. साल 1998 में भी भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने का वादा किया था, जिसे अब वह पूरा करना चाहती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह व अन्य भाजपा नेताओं के बयान से तो ऐसा ही ज़ाहिर होता है कि इस मामले में भाजपा सरकार बेहद संजीदा है.

गौरतलब है कि देश के 22 वें विधि आयोग ने 14 जून को समान नागरिक संहिता को लागू करने के मामले में सभी मजहबी पक्षों से आगामी 14 जुलाई तक राय मांगी है. बताया जा रहा है कि आयोग को साढ़े आठ लाख से ज़्यादा जवाब मिल चुके हैं. मजहबी संगठनों में इस मामले को लेकर बहुत ही आक्रोश है. वे बैठकें करके इस मुद्दे पर सलाह-मशविरा कर रहे हैं, ताकि अपने पक्ष को मज़बूती से रखा जा सके.  

समान नागरिक संहिता क्या है

समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है, जो देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान होता है. इसके लागू होने पर देश में विभिन्न समुदायों के अपने निजी कानून मान्य नहीं होते, यानी मजहब के आधार पर किसी भी मजहब को कोई खास लाभ हासिल नहीं हो सकेगा. मसलन मुस्लिम पर्सनल लॉ, ईसाई पर्सनल लॉ, पारसी पर्सनल लॉ और हिन्दू सिविल लॉ वग़ैरह. 

फिलहाल देश में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है. यहां विभिन्न समुदायों के अपने-अपने निजी क़ानून हैं, जो उनके धार्मिक ग्रंथों पर आधारित हैं. मुसलमानों का क़ानून शरीअत पर आधारित है.

समान नागरिक संहिता का विरोध  

भारतीय जनता पार्टी देश में समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है, लेकिन मुस्लिम संगठन इसका सख़्त विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि समान नागरिक संहिता शरीअत में सीधा दख़ल है, जिसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.  

इस मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सबसे आगे है. बोर्ड के महासचिव मुहम्म द फ़ज़ल-उर-रहीम मुजद्दिदी का कहना है कि देश में मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा और इसे प्रभावित करने वाले किसी भी क़ानून को रोकना बोर्ड के मुख्य उद्देश्यों में से है. इसलिए बोर्ड अपनी स्थापना से ही समान नागरिक संहिता का विरोध करता रहा है. 

दुर्भाग्यवश सरकार और सरकारी संगठन इस मुद्दे को बार-बार उठाते हैं. भारत के विधि आयोग ने 2018 में भी इस विषय पर राय मांगी थी. बोर्ड ने एक विस्तृत और तर्कसंगत जवाब दाख़िल किया था, जिसका सारांश यह था कि समान नागरिक संहिता संविधान की भावना के विरुद्ध है और देशहित में भी नहीं है, बल्कि इससे नुक़सान होने का डर है.

बोर्ड के एक प्रतिनिधिमंडल ने विधि आयोग के समक्ष अपनी दलीलें भी रखीं और काफ़ी हद तक आयोग ने इसे स्वीकार कर लिया और घोषणा कर दी कि फ़िलहाल समान नागरिक संहिता की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन दुर्भाग्य से विधि आयोग ने 14 जून 2023 को पुनः जनता को एक नोटिस जारी कर समान नागरिक संहिता के संबंध में राय मांगी है और जवाब दाख़िल करने के लिए 14 जुलाई 2023 तक का समय निर्धारित किया है. बोर्ड इस संबंध में शुरू से ही सक्रिय है.

बोर्ड ने आयोग को पत्र लिखकर इस बात पर नाराज़गी जताई है कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे के लिए केवल एक माह की अवधि निर्धारित की गई है. इसलिए इस अवधि को कम से कम 6 महीने तक बढ़ाया जाना चाहिए.

इसके साथ ही बोर्ड ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए देश के प्रसिद्ध और विशेषज्ञ न्यायविदों से परामर्श करके एक विस्तृत जवाब भी तैयार किया है, जो लगभग एक सौ पेज का है जिसमें समान नागरिक संहिता के सभी पहलुओं को स्पष्ट किया गया है और देश की एकता और लोकतांत्रिक ढांचे को होने वाले संभावित नुकसान को प्रस्तुत किया गया है.

इसके साथ ही विधि आयोग की वेबसाइट पर जवाब दाखिल करने और समान नागरिक संहिता के विरुद्ध अपना दृष्टिकोण दिखाने के लिए एक संक्षिप्त नोट भी तैयार किया गया है.

उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही विधि आयोग के अध्यक्ष से व्यक्तिगत रूप से मुलाक़ात करेगा और स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास करेगा. इसमें सभी धार्मिक और मिल्ली संगठनों के प्रमुख शामिल होंगे. 

बोर्ड के जिम्मेदार विभिन्न अल्पसंख्यक प्रतिनिधियों, आदिवासी नेताओं, विपक्षी नेताओं, धर्मनिरपेक्ष विचारधारा वाले बहुसंख्यक संप्रदाय के राजनीतिक और सामाजिक नेताओं के साथ बैठकें भी कर रहे हैं और ये बैठकें सार्थक भी साबित हो रही हैं. 

बोर्ड ने मुस्लिम संगठनों और संस्थानों के साथ-साथ लोगों से अनुरोध किया है कि वे भारत के विधि आयोग के आधिकारिक ई-मेल पते पर अपनी आपत्तियां दर्ज करें और इसकी एक प्रति ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भेजें. 

असल में समान नागरिक संहिता का मामला समाज से जुड़ा हुआ है. इस क़ानून से बहु पत्नी प्रथा का ख़ात्मा होगा. पुरुष अपनी पत्नी के जीवित रहते दूसरी, तीसरी और चौथी शादी नहीं कर पाएंगे. जायदाद में भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर हिस्सा मिल सकेगा. यह कानून महिलाओं को सम्मान से जीने का हक देगा.     

ये अलग बात है कि राजनीतिक दलों और मज़हबी संगठनों ने इसे सियासी रंग दे दिया है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि समान नागरिक संहिता देश और इसकी जनता से वाबस्ता एक जरूरी मामला है. इसे जितनी जल्दी हल कर लिया जाए उतना ही सबके हक में बेहतर है. क्योंकि देश में इसके अलावा भी बहुत से मुद्दे ऐसे हैं, जिनके हल तलाशे जाने बाक़ी हैं.   

(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)