सूफी संतों के कारण भारत में एकता की डोर हुई मजबूत

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 11-01-2025
The doors of unity in India were strengthened due to Sufi saints
The doors of unity in India were strengthened due to Sufi saints

 

फजल पठान 

ऑल इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मराठी साहित्य सम्मेलन हाल ही में सोलापुर के हजरत गुलाम रसूल उर्दू स्कूल में शाहा छप्पर बंद एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी और स्पंदन के सहयोग से आयोजित किया गया था. इस साहित्य सम्मेलन में मुख्य रूप से शहर के मुस्लिम बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया.

मराठी भाषा की तरह हिंदी और उर्दू साहित्य की भी एक लंबी परंपरा रही है. अब तक कई लेखकों ने हिंदी और उर्दू भाषा के विकास में योगदान दिया है. इस सम्मेलन के अवसर पर मराठी और हिंदी साहित्य में योगदान देने वाले कुछ मुस्लिम लेखकों को जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस लेख से सोलापुर में मुस्लिम मराठी साहित्य सम्मेलन कैसे आयोजित हुआ? इस बैठक की क्या जरूरत है? आइए जानें इस मुलाकात से दिग्गजों ने क्या संदेश दिया.    
 
हाल ही में सोलापुर में आयोजित मुस्लिम मराठी साहित्य समलेना में विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर चर्चा की गई. बैठक की अध्यक्षता डॉ. सलीम सिकंदर शेख द्वारा निभाई गई भूमिका। साहित्य सम्मेलन को संबोधित करते हुए वे कहते हैं, ''हाल ही में सभी क्षेत्रों में क्रांति हो रही है. हमने अधिकतम आधुनिकता पर बल दिया है.
 
हम भी सोशल मीडिया के आदी हैं. इससे समाज में अस्थिरता पैदा हो गयी है. नफ़रत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. आज साहित्य पढ़कर बौद्धिक रूप से सशक्त होने वाले युवाओं की संख्या पहले की तुलना में कम है.” 
 
वे आगे कहते हैं, “साहित्य ने सदैव सामाजिक प्रबोधन का कार्य किया है
लेकिन मेरे हिसाब से अब साहित्यकारों की सामाजिक जिम्मेदारी बढ़ गयी है. उन्हें और अधिक मेहनत करनी चाहिए. सच्चाई को लेखन के माध्यम से लोगों के सामने लाना चाहिए. प्रत्येक लेखक और कवि के लिए यह समय की मांग है कि वे समाज में व्याप्त और फैल रही गलतफहमियों के बारे में जागरूकता पैदा करें.''   
 
मुस्लिम मराठी साहित्य सम्मेलन के प्राचार्य ई. जा तंबोली भी शामिल हुईं. इस बैठक में उन्होंने सूफ-संतों द्वारा साहित्य के लिए किये गये कार्यों पर प्रकाश डाला. वह कहते हैं, ''हमारे राज्य और देश की भूमि एक पवित्र भूमि है. सूफी-संतों ने इस पवित्र भूमि पर राष्ट्रीय एकता का महान कार्य किया है. मराठी, हिन्दी और उर्दू साहित्य बहुत अच्छा रचा गया है.
 
संतों की भूमिका थी कि समाज में कोई भेदभाव न हो. दोनों धर्मों के मन को जोड़ने का काम संतों की लेखनी और वाणी से हुआ. आज इसी की जरूरत है. जो युवा साहित्य के क्षेत्र में जाना चाहते हैं उन्हें संतों का उदाहरण लेकर साहित्य रचना करनी चाहिए.” 
 
कविता से सामाजिक शिक्षा का पाठ
 
हालाँकि सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता है, सामाजिक जागरूकता के कई तरीके हैं. उन्हीं माध्यमों में से एक है कविता. कविता के माध्यम से सामाजिक प्रबोधन पर बोलते हुए वरिष्ठ कवि ए. के. शेख कहते हैं, ''लोग कविताओं के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं.
 
साथ ही कई कवि कविता के माध्यम से सामाजिक स्थिति पर टिप्पणी करते हैं. कविता के माध्यम से कवि सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करने का साहस करता है. कविता में शब्द समाज को एक साथ लाने, एकता का संदेश देने और सामाजिक परिवर्तन लाने में भी काम आ सकते हैं.'' 
 
उन्हें जीवन गौरव पुरस्कार मिला
 
मुस्लिम मराठी साहित्य सम्मेलन में साहित्यिक क्षेत्र के विकास में योगदान देने वाले कुछ मुस्लिम लेखकों को सम्मानित किया गया. इसमें शायर ग़ज़लकार ए. के. शेख, अरशद एम. इशाक खान, सोलापुर के डाॅ. शकील शेख, अरमान जागीरदार और शफी बाला शेख को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.
 
मुस्लिम मराठी साहित्य सभा की क्या आवश्यकता है
 
इंतेखाब फराश ने सोलापुर में आयोजित मुस्लिम मराठी साहित्य सम्मेलन के आयोजक के रूप में जिम्मेदारी निभाई. मराठी मुस्लिम साहित्य सम्मेलन की आवश्यकता बताते हुए वे कहते हैं, ''मुस्लिम मराठी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय के विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर चर्चा की जा सकती है.
 
इस चर्चा के बाद सामाजिक एकजुटता को मजबूत किया जा सकेगा. हमारे देश में सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक विविधता है. यह समागम विविधता में एकता पैदा कर सकता है.”
 
वह आगे कहते हैं, ''मराठी राज्य की पहली भाषा है. इस कारण मराठी भाषा में प्रचुर साहित्य उपलब्ध है. मराठी भाषा के प्रचार-प्रसार की तरह हिन्दी और उर्दू साहित्य को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इस संरक्षण के लिए एक साहित्य सम्मेलन की आवश्यकता है.
 
यदि मुस्लिम मराठी लेखकों और कवियों की रचनाओं को प्रोत्साहित किया जाए तो साहित्यिक पीढ़ी को प्रेरणा मिलेगी और साहित्य की गुणवत्ता बढ़ेगी. इन सभाओं के माध्यम से मुस्लिम समुदाय की सांस्कृतिक परंपराओं, ऐतिहासिक विरासतों और धार्मिक स्थलों के बारे में खुली चर्चा की जा सकती है. इसका फ़ायदा यह है कि समुदाय के बाकी लोगों को मुस्लिम समुदाय के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन की बेहतर समझ मिल सकेगी.” 
 
इंतेखाम्ब फराश, जो कार्य के मुख्य आयोजक हैं, ने सम्मेलन की अध्यक्षता की. सलीम शेख को पुणेरी पगड़ी और शॉल से सम्मानित किया गया. वहीं वरिष्ठ लेखिका फातिमा और प्रो. स्पंदन बहुभाषी स्मारिका का विमोचन अनीसा सिकंदर ने किया.