किश्वर अंजुम
किसी भी समाज में उनके समय के रीति रिवाज, उस समाज की आर्थिक, भौगोलिक स्थिति के अनुसार निर्धारित तो होते ही हैं परंतु इसमें उनकी पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं की भी भूमिका होती है. धर्म बदल दिए जाते हैं परंतु रिवाज एक से दूसरे समयकाल को ज्यों के त्यों हस्तांतरित होते रहते हैं, हां, कभी कभी इनमें कुछ संशोधन या कुछ अतिरिक्त रिवाज अवश्य जोड़ दिए जाते हैं.
ये माना जाता है कि भारत में इस्लाम का आगमन सन् 629 ईस्वी में हो गया था. भारतीय समाज के हर वर्ग से इस्लाम को अपनाया गया है. जातियों में बंटे समाज ने धर्म तो परिवर्तित किया परंतु बहुत से रीति रिवाज ऐसे रहे जो उनके परिवारों में इस्लाम धर्म स्वीकार करने पहले से ही थे. जातिगत आधार पर बने रीति रिवाज, इस्लाम धर्म अपनाने के बाद भी कभी अपने मूल रूप में तो कभी कुछ परिवर्तित रूप में बने रहे.
भारतीय मुस्लिम अपने धार्मिक विश्वासों को मानते हुए भी स्थानीय परंपराओं को निभाना जारी रखे हुए हैं. बहुत से रीति रिवाज जो इस्लाम में प्रचलित नहीं हैं उन्हें भी भारतीय मुस्लिमों ने अपनाया हुआ है. सबसे पहले बात करें विवाह के आयोजन की तो इस्लाम में निकाह एक अनुबंध है और इस हेतु लड़के के परिवार के चंद सदस्य लड़की के घर जाकर इस हेतु आवश्यक नियमों को पूर्ण करते हैं.
भारत में मुस्लिम शादियों में बारात निकालने का नियम स्थानीय रीति रिवाजों से प्रेरित रहता है. भारत में लाल रंग का वधु के श्रृंगार में बहुत महत्त्व है. दूसरे देशों में दुल्हन के कपड़ों का रंग, निकाह के समय सफ़ेद भी हो सकता है परंतु भारत में हिंदी भाषी क्षेत्रों में अधिकतर मुस्लिम वधुएं लाल रंग के शेड ही निकाह के जोड़े के तौर पर पहनती हैं.
इस्लाम में निकाह के समय वधु पक्ष के द्वारा वर पक्ष और अन्य रिश्तेदारों को दावत देना आवश्यक नहीं है. निकाह की रस्म के बाद दुल्हन की विदाई हो जाती है और वर पक्ष वलीमे की दावत आयोजित करता है. लेकिन, भारत में अधिकांश मुस्लिम परिवारों में निकाह के समय वधु पक्ष भी आवश्यक रूप से दावत आयोजित करता है, साथ ही वर के लिए बहुत से तोहफों का भी चलन यहां पर स्थानीय रीति के अनुसार परंपरा में है.
भारतीय मुस्लिम वधुएं यूं तो सिंदूर नहीं लगातीं परंतु बिहार के कुछ हिस्सों में इनकी मांग भरी हुई देखी जा सकती है. कभी सिंदूर और कभी अभ्रक से ये मांग भरती हैं. ये परंपरा विश्व के किसी मुस्लिम देश में महिलाओं द्वारा नहीं निभाई जाती. दूल्हे के सर पर फूलों का सेहरा हो, शादी में वधु पक्ष की ओर से भोज का आयोजन हो या पग फेरे की रस्म, भारतीय परंपराओं के अनुसार भारतीय मुस्लिम निभाते हैं.
इस संदर्भ में में कायमखानी मुसलमानों का उल्लेख करना आवश्यक है. कायमखानी मुसलमान मुख्यतः राजस्थान और हरियाणा के धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बने राजपूतों को कहा जाता है. इन्होंने छटवी शताब्दी में धर्म परिवर्तन कर लिया था परंतु इनके रीति रिवाज आज भी अपने राजपूत पुरखों के समय के ही हैं.
इस्लाम में शादी के अवसर पर संगीत की कोई रस्म नहीं होती परंतु कायमखानी मुसलमानों में संगीत उनकी परंपरा का हिस्सा है. कटार रखना, भात लेना, टीका करना, शगुन के रूप में नारियल रखना, नामकरण संस्कार करना, भाइयों का तिलक घी चावल से करना, बहनों को चुनरी ओढ़ना आदि सारे रीति रिवाज अभी भी राजपूताने के अनुसार मनाए जाते हैं.
निकाह की रस्म के अलावा अन्य सभी विधियों में अपने पुरखों की परंपरा का ये पालन करते हैं. कायमखानी महिलाओं की वेशभूषा आज भी राजपूताना महिलाओं के ही जैसी है. इनके अधिकांश मांगलिक कार्य अब भी, राजपूताना परंपराओं के अनुसार ही किए जाते हैं जो विश्व के किसी इस्लामिक भूभाग में प्रचलन में नहीं है.
भारत में मुसलमानों का पहनावा भी उनके क्षेत्र के अनुसार होता है. कई भारतीय महिलाएं साड़ी पहनती हैं और पुरुष भी स्थानीय परम्परों के अनुसार कपड़े पहनते हैं. बहुत से प्रदेशों की भारतीय मुस्लिम वधुएं विवाह के बाद गले में मंगलसूत्र, पांवों में बिछिया और कमर में करधन धारण करती हैं. चांदी की हंसली कई जगह मुस्लिम महिलाओं का पसंदीदा आभूषण है जो स्थानीय परंपराओं से प्रेरित है.
इस्लाम में एक ईश्वरवाद की धारणा है. ईश्वर के अलावा किसी और के आगे सजदा नहीं किया जाता, परंतु भारत में किसी सूफ़ी संत की दरगाह पर मुस्लिमों को सर झुकाते देखा जा सकता है. तीज त्योहारों में भी भारत के मुस्लिम स्थानीय परंपराओं को अपनाते हैं. ईद और अन्य खुशी के त्योहारों में घरों में रोशनी करना कुछ कुछ उसी तरह का है जैसे दीपावली में दिए जलाए जाते हैं.
दीपावली में घरों की साफ सफाई और पुराना सामान बाहर करना भी अनेक मुस्लिम घरों में हिंदुओं के समान होता है. धनतेरस पर कोई धातु की वस्तु खरीदने का रिवाज भी अनेक मुस्लिम घरों में देखा जाता है. मोहर्रम का त्योहार, इस्लाम में गम का होता है. इस्लाम मुख्य रूप से दो शाखाओं में बंटा है, शिया और सुन्नी. हालांकि मोहर्रम का यह त्योहार दोनो ही पंथों द्वारा मनाया जाता है परंतु हज़रत हुसैन की शहादत के गम में मनाए जाने वाले इस त्योहार को शिया पंथ बहुत शिद्दत से मनाता है.
भारत में ताजिये जुलूस के रूप में निकाले जाते हैं जिसके नीचे से गुज़र कर लोग मुरादें मांगते हैं. ताजियों की शुरआत भारत में बादशाह तैमूरलंग के द्वारा की गई. इसमें ईमाम हुसैन की याद में उनके रोज़े (मकबरा) की अनुकृति बनाई जाती है और इस प्रतिकृति को ही ताजिया कहा जाता है. इस प्रिवाज के द्वारा 1400साल पहले करबला के मैदान में हुए युद्ध की शहादत को याद किया जाता है.
विश्व के किसी हिस्से में ताजिए नहीं निकाले जाते हैं, भारत और भारत से टूटकर अलग हुए देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा. इस्लाम में तलाक को आसान बनाया गया है ताकि अगर पति पत्नी साथ में नहीं रह पा रहे हों तो आसानी से अलग हो सकें परंतु भारत के मुसलमानों के बीच एक साथ ट्रिपल डाइवोर्स का चलन एक रिवाज का रूप लेता जा रहा था, जबकि इस्लाम के प्रवर्तक देश सऊदी अरेबिया में भी यह प्रतिबंधित है.
भारत में नए कानून के अमल में आने के बाद से इस प्रथा पर रोक लगी है. संक्षेप में कहें तो भारत देश के मुस्लिम, अपने रीति रिवाजों में सदा से ही अपने क्षेत्र में प्रचलित परंपराओं का निर्वहन करते आए हैं. इस्लामिक देशों में उनके रिवाजों को मान्यता नहीं है परंतु ये रिवाज, भारतीय मुसलमानों के जीवन का अभिन्न अंग हैं.
(लेखिका साहित्यकार हैं रायपुर की रहने वालीं हैं)