देश है हमारा साझा आंगन: मौलाना शिब्ली अल क़ासमी

Story by  सेराज अनवर | Published by  onikamaheshwari | Date 20-07-2024
The whole country is like a courtyard for all of us: Maulana Shibli Al Qasmi
The whole country is like a courtyard for all of us: Maulana Shibli Al Qasmi

 

सेराज अनवर / पटना
 
इमारत ए शरिया बिहार,उड़ीसा,झारखंड तीन राज्यों के मुसलमानों का नुमाइंदा इदारा है.मानवता पर आधारित कार्यों,देश की साझी विरासत को बरक़रार रखने के लिए भी इस इदारा को जाना जाता है.इस इदारा द्वारा संचालित मौलाना सज्जाद मेमोरियल अस्पताल का दरवाज़ा हर धर्म-जाति के लिए खुला है.यहां मुसलमानों से अधिक हिन्दू मरीज़ अपने इलाज के लिए आते हैं.इमारत ए शरिया के कार्यकारी नाज़िम हैं मौलाना शिब्ली अल क़ासमी.मौलाना अंतरधार्मिक संवाद के पक्षधर हैं.
 

इस संवाद को आगे बढ़ाने के विभिन्न तौर-तरीक़ों को उन्होंने क़ायदे से रखा.मौलाना भारत देश को एक आंगन की तरह मानते हैं. जहां पूरा परिवार हंसी-ख़ुशी रहता है,कभी मनमुटाव भी हो जाता है लेकिन आपस में नफ़रत नहीं पालते,मोहब्बतों से मामला सुलझाते हैं.मौलाना शिब्ली का मानना है कि देश की बनावट ऐसी है कि हिन्दू हों या मुसलमान हर धर्म के लोग एक दूसरे के बेग़ैर नहीं रह सकते.उन्होंने आवाज़ द वायस की इस पहल  की सराहना की और कहा कि सकारात्मक चीजों को अधिक प्रचारित-प्रसारित करने की आज अधिक ज़रूरत है.
 
मुल्क की मज़बूती में सबका हाथ है
हमलोग दुनिया में रहते हैं और दुनिया में विभिन्न प्रकार के रीत-रस्म,सोच-फिक्र,धर्म के लोग रहते हैं.ख़ुद एक घर में एक मां-बाप के पेट से जन्म लेने वाला एक  बच्चा अलग रंग का होता है और उसी मां के कोख से जन्म लेने वाला दूसरा बच्चा दूसरे रंग का होता है.एक तरह की ग़ज़ा मां अपने सभी बच्चों को खिलाती है लेकिन हरेक की बोल-चाल,उठना-बैठना,रंग-रूप अलग होता है.कोई उनमें बिज़नेसमैन होता है,कोई काश्तकार बनता है,कोई पढ़-लिख कर शिक्षक,अफसर और सियासी रहनुमा बन जाता है.हरेक के कामों का नेचर अलग-अलग होता है.इसके बावजूद सभी आपस में भाई-भाई होते  हैं.सब मिलजुल कर रहते हैं.
 
 
एक बाउंड्री में रहने के बावजूद कभी-कभी आपस में किसी तरह का बिगाड़ भी होता है.मगर सब आपस में भाई-भाई हैं और इसी माहौल में सब कुछ होता है.इसी तरह पूरा देश हमसब के लिए एक आंगन की तरह है.विभिन्न विचारधारा और अलग-अलग धर्म में होने के बावजूद सब एक हैं.सभी ने मिल कर मुल्क को मज़बूत किया है.इस मामला में दुनिया में हमारे देश भारत को ख़ास इम्तियाज़ हासिल है.यहां के लोगों की गंगा-जमनी तहज़ीब पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर पेश की जाती है.इस तहज़ीब,मोहब्बत.अमन,सुकून,हमदर्दी,वफ़ा शआरी को बरक़रार रखने बल्कि इसे बढ़ावा देने की गर्ज़ से इस मुल्क में हर धर्म के मानने वालों में ऐसी संस्थाएं,तंज़ीम और लोग मौजूद हैं जो इस पर बज़ाब्ता काम करते हैं.बड़ी बात यह है कि इस मुल्क के अक्सर लोग नफ़रत,हर क़िस्म का पक्षपात और नाइंसाफ़ी को पसंद नहीं करते.
 
आपस में जोड़ कर रखना अहम काम
इमारत ए शरीया बिहार,उड़ीसा और झारखंड का सौ साला इदारा है. सौ साल से विभिन्न प्रकार के सामाजिक,कल्याणकारी,शैक्षणिक कारनामा अंजाम दे रहा है.इसमें एक बड़ा काम देश के तमाम  धर्म के मानने वालों को आपस में जोड़ कर रखना भी है.इस विषय पर निरंतर सेमिनार,सिम्पोजियम,गोष्ठी का आयोजन होता रहता है.
 
इस के अलावा साथ मिल कर अहम मुद्दों पर सिर जोड़ कर बैठने का सिलसिला चलता रहता है.इमारत ए शरिया के कल्याणकारी स्कीमों का फ़ायदा इंसानियत की बुनियाद पर हर मज़हब के मानने वालों को पहुंचता है.जब भी हालात बिगड़ते हैं और आपसी नफ़रत बढ़ने का ख़तरा महसूस होता है तो इमारत ए शरिया मुल्क में आबाद सभी मज़हब के धर्म गुरुओं के साथ मिल कर साम्प्रदायिक सद्भाव बरक़रार रखने की कोशिश करती है और अल्लाह के फ़ज़ल से कामयाबी भी मिलती है.मस्जिद के इमामों,वक्ताओं,क़लमकारों और समाज में असर रखने वाली शख़्सियतों का अमन वो अमान की बहाली में बड़ा रोल रहा है.इन हज़रात ने हर मुश्किल वक़्त में क़ौमी यकजहती को बरक़रार रखने और मुल्क को मुतहिद और मज़बूत रखने में महती भूमिका निभायी है.
 
 
अंतरधार्मिक संवाद पर काम करने की ज़रूरत 
इस वक़्त कई ओर से साम्प्रदायिक सद्भाव को कमज़ोर करने का प्रयास जारी है.इन हालात में हमारी ज़िम्मेदारियां बढ़ जाती हैं और अंतरधार्मिक संवाद पर काम करने की ज़रूरत ज़्यादा नज़र आती है.स्कूल,कॉलेज,मदरसे और तमाम शैक्षणिक संस्थाओं के ज़िम्मेवार को चाहिए देश की पुरानी रिवायत और देश को विकास के इस पथ तक पहुंचाने वाली आपसी इत्तिहाद व इत्तिफ़ाक़ के जज़्बा को गाहे-बगाहे छात्र-छात्राओं के दरमियान बयान करें और उनके अंदर इस काम केलिए दिलचस्पी पैदा करें,उन्हें प्रेरित करें और सभी धर्मों के संयुक्त एहतराम ए इंसानियत के संदेश को उनके बीच रखा जाता रहे.तमाम धर्म के मानने वाले ज़िम्मेवार शख़्स को बार-बार आपसी संवाद स्थापित करने के लिए बैठना चाहिए.
 
साथ ही,ज़िले से लेकर प्रखंड स्तर तक अंतरधार्मिक संवाद के तहत व्यक्तियों का चुनाव करके उन्हें इस काम की ज़िम्मेदारी देनी चाहिए.ख़ास तौर से धर्म से जुड़े हुए लोगों को इस काम में बज़ाब्ता लगना चाहिये और इसको इलेक्ट्रॉनिक,प्रिंट,सोशल मीडिया के द्वारा आम करना चाहिए. हर रोज़ आपसी मोहब्बत,मेलजोल और इंसानी हमदर्दी की मिसालें समाज में आती रहती हैं  जिसे देख और सुन कर तबियत ख़ुश होती है.ऐसे वाक़यात को भी ख़ूब उजागर करने की ज़रूरत है.हम देख रहे हैं कि अब भी मज़हब और धर्म से जुड़े लोग नफ़रत की बातों से दूरी बनाते हैं,परहेज़ करते हैं और आम आवाम इसे सियासतदानों की उपज बताते हैं.यह बड़ी अच्छी बात है.इसकी भी चर्चा समाज में होते रहना चाहिए.
 
नफ़रत पर आधारित ख़बर को हरगिज़ न चलायें
जो लोग अख़बारों,टीवी चैनल और दूसरे मीडिया के ज़िम्मेदार हैं उन्हें चाहिए नफ़रत पर आधारित किसी मवाद को हरगिज़ प्रसारित,प्रकाशित नहीं होने दें.मीडिया के लोगों को उन तस्वीरों को उजागर करनी चाहिए जहां एक मुस्लिम अपने ग़ैरमुस्लिम भाई के साथ मुस्कुराते,खाते-पीते,लेन-देन करते नज़र आते हैं या दूसरे धर्म के स्थापित कल्याणकारी संस्थाओं से लाभ उठाने वाले दूसरे धर्म के लोगों का प्रमुखता से  प्रचार होना चाहिए.इधर देखने में यह आ रहा है कि कई कम्पनी के लोग,दुकान या मकान मालिक मज़हब देख कर एग्रिमेंट करते हैं.समाज को बर्बाद  करने वाली इस सोच के ख़िलाफ़ अपनी चीजों को सामने लाना चाहिए.जिससे पता चलता हो कि सभी कम्यूनिटी या मज़हब के लोग एक जगह रह रहे हैं या एक  साथ काम कर रहे हैं.
 
 
हम तमाम भाईयों,ख़ास कर मुसलमानों से हमारी गुज़ारिश है कि एक दूसरे की ख़ुशी और ग़म में विशेष तौर से बीमारी ,मौत और परेशानी के वक़्त में उनके काम आयें,ख़ुशी के वक़्त उनके घर जा कर उन्हें मुबारकबाद दें ,किसी भी परीक्षा या मरहला में बेहतर करने वाले नौजवानों की उनके पास जाकर हौसलाअफजाई की जाये,उन्हें मुबारकबाद दी जाये.चाहे वह किसी धर्म के हो.अगर हमारे समाज का कोई ग़ैरमुस्लिम बड़ी सफलता हासिल करता है तो उसका सम्मान और स्वागत मुस्लिम गांव को एहतेमाम के साथ करना चाहिए ताकि वह किसी ओहदे पर पहुंचे तो अफसर बन कर हर अस्बियत का इनकार करता रहे और आपकी मुहब्बतों की ख़ुशबू उनको मिलती रहे.
 
आवाज़ द वायस की टीम को दुआ और मुबारकबाद
मुझे ख़ुशी हो रही है कि आवाज़ द वायस के ज़रिया इस काम को बज़ाब्ता और सुविचारित तौर पर अंजाम देने का अमली अक़दाम किये जा रहे हैं.इससे समाज के साथ मुल्क मुस्तहकम होगा और सुकून के साथ अपनी ज़िंदगी गुज़ार सकेगा.इस मुल्क की नेकनामी में इज़ाफ़ा होते रहे.इमारत ए शरिया इस बेहतर काम के लिए आवाज़ द वायस की पूरी टीम को मुबारकबाद पेश करती है और दुआ देती है.