यहां देवी की पूजा के साथ प्रसाद भी वितरित किया जाता है. मेले में तरह-तरह की दुकानें लगती हैं. खाने-पीने की दुकानें भी हैं. लोग मेले से सामान खरीदकर अपने घर ले जाते हैं. कई तरह की दुकानें भी हैं.
बंगाल में ऐसी कई जगहें हैं जहां हिंदू और मुस्लिम इसी तरह मिलकर त्योहारों का आनंद लेते हैं. मध्य कोलकाता में कई क्लब और संगठन हैं जहां हिंदू और मुस्लिम दोनों सदस्य हैं और सब कुछ एक साथ करते हैं.
इनमें कोलकाता की मशहूर संस्था कोलकाता एहसास फाउंडेशन भी शामिल है, जिसका अध्यक्ष हिंदू है तो सचिव मुस्लिम है. ये सभी लोग एक-दूसरे के त्योहारों में हिस्सा लेते हैं. लेकिन हम यहां जिस जगह की बात कर रहे हैं वह भारत-बांग्लादेश सीमा के पास स्थित है. उसका नाम हरि पोखर है. यह दक्षिण दिनाजपुर जिले में स्थित है जो बांग्लादेश सीमा के काफी करीब है.
दक्षिण दिनाजपुर जिला भारत और बांग्लादेश के बीच की सीमा पर स्थित है, जो यमुना नदी के तट पर एक प्राचीन गांव पर केंद्रित है. यह लंबे समय से सभी समुदायों के लोगों के लिए एक सभा स्थल रहा है.
इसे यहां के लोग सांप्रदायिक सौहार्द के रूप में देखते हैं. काली पूजा के दिन यहां मेला लगता है. काफी भीड़ है. इसमें दूर-दूर से लोग भाग लेने आते हैं. यहां अब भी हिंदू समुदाय के लोग रहते हैं और मुस्लिम समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में हिस्सा लेते हैं.
यह इलाका दक्षिण दिनाजपुर में भारत-बांग्लादेश सीमा के पास है. यहां कई गांव स्थित हैं, इनमें हरिपोखर, तेलियापाड़ा, गोबिंदपुर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं. सभी गांवों में काली पूजा का आयोजन किया जाता है, लेकिन उनमें हरिपोखर की काली पूजा काफी प्रसिद्ध है.
इस पूजा में सैनिक भी शामिल होते हैं
इस पूजा की एक और विशेषता यह है कि इस पूजा में बीएसएफ के जवान भी शामिल होते हैं. यहां हमेशा बीएसएफ का पहरा रहता है. वैसे इस क्षेत्र में प्रवेश करते ही आपको काफी सुकून महसूस होगा.
दोनों तरफ सीमा पर खंभे खड़े हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह दो देशों की सीमा है. अगर ये खंभे न होते तो पता ही नहीं चलता कि यह सीमा क्षेत्र है. यह गांव कंटीले तारों के बीच बसा है। लेकिन यहां के लोग इसमें पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लेते हैं.
ईद और मुहर्रम जैसे मुस्लिम त्योहारों में हिंदू भी भाग लेते हैं
ऐसा नहीं है कि काली पूजा में सिर्फ मुसलमान ही शामिल होते हैं. इस गांव के हिंदू भी मुस्लिम त्योहारों ईद और मुहर्रम में खुलकर हिस्सा लेते हैं. यह एक पुरानी परंपरा रही है. यह काफी समय से चला आ रहा है.गांव के लोगों का कहना है कि हम एक-दूसरे के त्योहारों में मिलजुलकर हिस्सा लेते हैं.
गांव में रहने वाले और इस पर्व में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले बब्लू सरकार, बिमल सरकार, इश्तियाक अली, रबीउल इस्लाम आदि कहते हैं कि हम लोग खुद काली पूजा का आयोजन करते हैं.
वहां मुसलमानों और हिंदुओं के कितने परिवार हैं?
हरिपोखर गांव में हिंदू और मुसलमानों के 30 परिवार रहते हैं. इन भारतीय लोगों के साथ बांग्लादेशी लोगों का मुक्त संपर्क होता है. ये लोग एक-दूसरे के दुख-सुख में शामिल होते हैं. यहां हरिपोखर गांव में काली मंडप की देखभाल मुस्लिम करते हैं. इस काली पूजा में पड़ोसी देश बांग्लादेश के लोग भी शामिल होते हैं.
यहां यह त्योहार तीन दिनों तक चलता है. यहां काली की पूजा धूमधाम से की जाती है भक्ति। यहां हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है. स्थानीय परंपराओं के अनुसार, यहां सदियों से इस पूजा का आयोजन किया जाता रहा है.