हफीज जालंधरी की कविताओं में हिंदू देवी-देवताओं का महिमामंडन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 29-06-2024
Hafeez Jalandhari
Hafeez Jalandhari

 

साकिब सलीम

“जल है तेरा पवित्र, मिट्टी भी तेरी प्यारी, पाकीजगी की तू देवी, पाकीजा है तू सारी, तुझको तेरे पुजारी, करते हैं प्यार गंगा, ऐ शानदार गंगा, ऐ पूर-बहार गंगा” (तेरा पानी पवित्र है और मिट्टी सुखद है. पवित्रता की देवी, तू पूरी तरह से पवित्र है. हे गंगा, तेरे उपासक तुझसे प्यार करते हैं. हे राजसी गंगा, हे जीवंत गंगा.)

गंगा नदी के लिए यह स्तुति एक हिंदू भक्त द्वारा गाया गया भक्ति गीत लगता है, जो गंगा को देवी के रूप में पूजता है. यह धारणा काफी भ्रामक है. मगर यह गीत एक कट्टर मुसलमान, शाहनामा-ए-इस्लाम (इस्लाम का इतिहास) के लेखक, पाकिस्तान के राष्ट्रगान के लेखक और हाफिज-ए-कुरान (कुरान को कंठस्थ करने वाला व्यक्ति) द्वारा लिखा गया था.

उपर्युक्त गीत के लेखक हफीज जालंधरी ने, आम धारणा के विपरीत, न केवल अपनी कविताओं में हिंदू कल्पना का इस्तेमाल किया है, बल्कि कई बार हिंदू देवी-देवताओं और शिक्षाओं की प्रशंसा भी की है.

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हफीज ने यह विचार प्रचारित किया कि सभी धर्म मनुष्यों को एक समान लक्ष्य की ओर ले जाते हैं. अपनी एक नज्म में उन्होंने लिखा है, ‘‘नमाज और हज - यात्रा और पूजा, इबादत का हर एक तरीका है अच्छा... ग्रंथ और इंजील - वेद और कुरान, हैं नेकी के फरमान सबमें यकसां, हो सिख या मसीह - के हिंदू मुसलमान, है लाजिम हो इंसान का हमदर्द इंसान, यही है खुदा की इबादत यही है.’’

(नमाज हज यात्रा और पूजा, प्रार्थना के ये सभी तरीके अच्छे हैं... गुरु ग्रंथ साहिब, बाइबिल, वेद और कुरान में धर्मपरायणता का एक ही संदेश है, चाहे कोई सिख हो या ईसाई, हिंदू हो या मुसलमान, यह जरूरी है कि एक इंसान दूसरे इंसान के साथ सहानुभूति रखे. यही भगवान से की जाने वाली वास्तविक प्रार्थना है). हफीज ने अपनी बात पर अमल किया और वास्तव में कृष्ण भक्ति की कविताएं लिखीं.

उनकी कविता कृष्ण कन्हैया किसी भी हिन्दू लेखक को कड़ी टक्कर दे सकती हैं. यह कविता कोई साधारण स्तुति नहीं थी. यह हिंदू मान्यता पर आधारित है कि जब भी दुनिया अत्याचार से ग्रस्त होती है, कृष्ण उद्धारकर्ता के रूप में आते हैं. कविता कृष्ण के वर्णन से शुरू होती है.

वह कहते हैं, ‘‘ऐ देखने वालों इस हुस्न को देखो इस राज को समझो (ओ तुम जो देख रहे हो, इस सुंदरता को देखो. इस रहस्य को समझने की कोशिश करो). वह आगे लिखते हैं, ये पैकर-ए-तनवीर ये कृष्ण की तस्वीर (यह प्रकाश की अभिव्यक्ति कृष्ण का यह चित्र).

गौरतलब है कि मुसलमान पैगंबर मुहम्मद को प्रकाश की अभिव्यक्ति मानते हैं. हफीज कृष्ण के लिए उसी रूपक का उपयोग करते हैं, इस प्रकार कुछ इस्लामी विद्वानों की सदियों पुरानी मान्यता को दोहराते हैं, कि कृष्ण उपमहाद्वीप के लोगों के लिए भेजे गए एक पैगंबर थेः

ये नर है या नूर (क्या वह इंसान है या रोशनी)

उपमहाद्वीप में आम मुसलमान मानते हैं कि पैगम्बर मुहम्मद शरीर नहीं, बल्कि ईश्वर की महिमा थे. यहाँ कृष्ण का वर्णन करने के लिए उसी विचार का उपयोग किया गया है. हफीज भारत के राजा कृष्ण से देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने का आग्रह करते हैंः

सब अहल-ए-खुसुमत हैं, दर पै इज्जत, ये राज दुलारे, बुजदिल हुए सारे (मुकदमे के सभी लोग सम्मान के द्वार की ओर जा रहे हैं. राज के ये प्यारे कायर हो गए हैं) आ जा मेरे काले, भारत के उजाले, दामन में छुपा ले (आओ मेरे श्याम वर्ण, भारत के प्रकाश, हमें अपने कपड़ों में ढक लो).

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जहां एक ओर हफीज उन भारतीयों को दोषी ठहराते हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के साथ सहयोग किया, वहीं दूसरी ओर वे कृष्ण (यहाँ वे उन्हें ‘भारत के काले’ के रूप में संबोधित करते हैं) से आग्रह करते हैं कि वे आएं और भारतीयों को विदेशी शासन के अपमान से बचाएं.

कविता में, वह अपने अर्जुन को कृष्ण से सलाह की आवश्यकता पर बल देते हैं, ताकि वह दुर्योधन को हरा सके. बेशक, इस कविता में उनके लिए दुर्योधन ब्रिटिश सरकार है. यह गीता की शिक्षाओं में उनके असीम विश्वास को दर्शाता है कि केवल आवश्यकता पड़ने पर हिंसा का उपयोग करके बुराई से लड़ना चाहिए. एक अन्य कविता, कृष्ण बांसुरी में, हफीज प्रेम फैलाने और दुखों को ठीक करने के गुण के लिए कृष्ण की बांसुरी की प्रशंसा करते हैं. कविता कहती है, ‘‘बांसुरी बजाए जा, कहीं मुरली वाले नंद के लाल... बृज बासियों के झोपड़े सजाए जा... बांसुरी की लय नहीं ये आग है... प्रेम की ये आग चार सू लगाए जा.’’ (बांसुरी बजाते रहो, हे बांसुरीधारी कान्हा, नंद के बेटे... बृजवासियों में खुशियाँ लाते रहो... ये बांसुरी के संगीत के स्वर नहीं बल्कि एक आग हैं... हर जगह प्रेम की इस आग को जलाते रहो.)

दशहरा बच्चों के लिए एक कविता है. हफीज अपने पाठकों को राम और रावण के बारे में बताते हैं. कविता कहती है, ‘वो जिसके तन पे दस सर हैं, उसी का नाम रावण था, ये था लंका का राजा, रामचंद्र जी का दुश्मन था.’’ राम के साथ सम्मानसूचक शब्द के रूप में जी का प्रयोग हफीज के लेखन में हिंदू देवताओं के प्रति सम्मान के पहलू को दर्शाता है.

कविता में आगे लिखा है, “अगर कुछ अक्ल होती, रामचंद्र जी से लड़ता क्यूं? ये जालिम अपनी हिम्मत देखता, इतना अकड़ते क्यूं?” “जमाना आज तक इस फतह की ख़ुशी मनाता है, लड़ाई का तमाशा हर बरस सबको दिखाता है”.

कहीं और हफीज अपनी भावनाओं को भड़काने के लिए काम-देवता (हिंदू प्रेम के देवता) का आह्वान करते हैं. इसी कविता में उन्होंने अपनी बात को समझाने के लिए शेषनाग का भी इस्तेमाल किया है.

इसके अलावा उनकी कविताएं दिवाली, बसंत पंचमी आदि में हिंदू धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल किया गया है. हिंदू प्रतीकों और छवियों का रूपकों और मुहावरों के रूप में इस्तेमाल यह दर्शाता है कि सामान्य रूप से साहित्य और विशेष रूप से कविता धार्मिक और भौगोलिक सीमाओं से परे है.एक कट्टर मुस्लिम होने के बावजूद हफीज  ने इन प्रतीकों का इस्तेमाल रूपकों के रूप में और एक संस्कृति को उजागर करने के लिए भी किया.