प्रज्ञा शिंदे
शिव के काल में सभी लोग सुखी थे.
इसीलिए छत्रपति शिवाजी मेरे ज्ञात राजा हैं...
ये पंक्तियाँ इस बात की गवाही देती हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज को ज्ञान का राजा क्यों कहा जाता है. छत्रपति शिवाजी महाराज की उस समय के अन्य राजाओं से भिन्नता और विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने राज्य में सभी जाति, जनजाति और धर्म के लोगों के साथ स्वराज्य की स्थापना की. शिव राय द्वारा अपने शासन में दिखाया गया यह सहिष्णु रवैया महाराष्ट्र की संस्कृति में भी परिलक्षित हुआ. और इसी का परिणाम है कि आगे चलकर महाराष्ट्र एक प्रगतिशील और आधुनिक राज्य के रूप में आकार लिया गया.
प्रगतिशील और सहिष्णु कहे जाने वाले महाराष्ट्र में समय-समय पर धार्मिक तनाव की स्थिति बनती रहती है. 14जुलाई को कोल्हापुर, जेवेल और गजापुर में ऐसी ही हिंसक घटना हुई और पूरा महाराष्ट्र हिल गया.
इस घटना के बाद कोल्हापुर और महाराष्ट्र में हिंदू-मुस्लिम रिश्ते खराब हो रहे हैं और आपसी रिश्ते खत्म हो रहे हैं. मद्रा कांड में घटित मुस्लिम महिला ग्रामीणों ने धर्मपालिकाडे जाने की कठिन परिस्थिति में एक साथ खड़े होकर धार्मिक उत्साह के समाज की ओस को दूर फेंक दिया.
कोल्हा पूजा के पास विशालगढ़ पर अमीर रेहान दरगाह के परिसर से सैंडविच हटाने का विचार पिछले कुछ समय से जोर पकड़ रहा है. इसके साथ ही एक बड़ा आंदोलन शुरू हो गया और इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिलने लगी. 200स्वयंभू शिव भक्तों का एक समूह 14जुलाई को विशालगढ़ा के लिए रवाना हुआ. लेकिन विशालगढ़ से तीन किमी दूर गजापुर के मुस्लिमवाड़ी गांव में इस भीड़ ने बड़े ही वैज्ञानिक तरीके से गांव वालों पर हमला कर दिया. उस समय गाँव में महिलाएँ और बच्चे अधिक थे. इस दौरान एक मुस्लिम मस्जिद को भी नुकसान पहुँचाया गया.
जैसे ही मुस्लिमवाड़ी पर हमले के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए, हमले की गंभीरता दुनिया को पता चल गई. इस घटना के बाद पूरे महाराष्ट्र का ध्यान गजपुर की इस छोटी सी मुस्लिम वाडी पर गया. वहां तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए पुलिस ने सुरक्षा कारणों से गांव की ओर जाने वाली सड़कों को भी बंद कर दिया है.
पत्रकारों को मुस्लिमवाड़ी जाने की इजाजत दी गई. आवाज़ मराठी टीम ने कुछ दिन पहले इस गांव का दौरा किया था और ग्रामीणों से बातचीत की थी. इस बातचीत से कई नई बातें निकलकर सामने आईं. पीड़ितों से बात करने पर पता चला कि गांव में मुस्लिम समुदाय पर हमला कितना भयानक था. लेकिन पीड़ितों से बातचीत से एक और खास बात का एहसास हुआ कि इस गांव में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की परंपरा कायम है.
यहां के मुस्लिम ग्रामीणों ने हमले की पीड़ा तो बताई, लेकिन साथ ही बार-बार कहा कि 'हमलावर स्थानीय नहीं थे.' उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि गांव में सैकड़ों वर्षों से हिंदू और मुसलमानों के बीच सद्भाव बना हुआ है और कभी कोई संघर्ष नहीं हुआ है.
मुस्लिमवाड़ी में सितारा होटल, जिस पर सबसे पहले हमला हुआ था, सड़क किनारे एक छोटा सा टपरीवाजा होटल था. यहां मालिक तैय्यबली नाइक अपने परिवार के साथ रहते थे. हमले के बारे में बात करते हुए वह भावुक हो गए.
उन्होंने गांव में हिंदू-मुस्लिम सहजीवन के बारे में भी खूब बातें कीं. उन्होंने कहा, "हम पीढ़ियों से इस वाडी में रह रहे हैं. लेकिन यहां कभी कोई हिंदू-मुस्लिम झगड़ा या विवाद नहीं हुआ. हमें एक-दूसरे से कोई परेशानी नहीं है. चाहे शिव जयंती हो, ईद हो या मुहर्रम, महा शिवरात्रि हो." ...हम सभी त्यौहार एक-दूसरे के साथ मनाते थे."
वह आगे कहते हैं, "हम रोजमर्रा की जिंदगी में भी हिंदू-मुस्लिम नहीं हैं, हम सभी ग्रामीणों की तरह रहते हैं. बाहरी लोगों के इस हमले के बाद, गजपुर के विभिन्न वाडियों से हिंदू ग्रामीण तुरंत हमारी सहायता के लिए आए."
तैय्यबली नाइक ने आवाज़ मराठी से बात करते हुए यह भी कहा कि "इस घटना के बाद मेरे मन में गांव छोड़ने का ख्याल आया. फिलहाल हम अपनी जान पर खेल रहे हैं. हमें बहुत बड़ा झटका लगा है. लेकिन हम अभी भी यहां मजबूत हैं गाँव की अन्य मंडलियों, विशेषकर हिंदुओं द्वारा दिए गए समर्थन के कारण.''
हिंसक भीड़ ने सितारा होटल के पीछे के घरों पर भी हमला किया और वहां मौजूद गाड़ियों में तोड़फोड़ की. इतना ही नहीं घर के सदस्यों खासकर बच्चों और महिलाओं पर भी हमला किया गया. यहां रहने वाले महलदार परिवार की महिलाओं ने हमले के बारे में विस्तार से जानकारी दी. हर किसी की आंखों में डर और दर्द था. लेकिन इन सबका ज़ोर गांव में सालों से कायम हिंदू-मुस्लिम सौहार्द पर था.
लड़ाई के बाद गाँव के लगभग सभी हिंदू भाई हमारी सहायता के लिए आये. उन्होंने प्रश्न पूछकर हमारा भरपूर समर्थन किया. 'तुम डरो मत; ग्रामीणों ने भी हमें भरोसा दिलाया कि हम आपके साथ हैं.', ऐसी भावनाएं महलदार परिवार की महिलाओं ने व्यक्त कीं.
पीड़ितों में से एक मुखर छोटी लड़की ने कहा, "हमलावरों ने मेरी सभी पाठ्यपुस्तकें जला दी थीं, मेरे पास स्कूल जाने के लिए कुछ नहीं बचा था और मैं स्कूल जाने से डरती थी."
वह आगे कहती हैं, ''मुझे डर था कि मेरे दोस्त मुझसे बात करेंगे. लेकिन मेरे सभी दोस्त मुझसे मिलने घर आये. उसने मुझसे प्यार से पूछा. मेरे सभी शिक्षक भी घर आ गये. आपको अपनी सभी किताबें और नोटबुक मिल जाएंगी. "चिंता मत करो, हम तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई को नुकसान नहीं होने देंगे," उन्होंने मुझे आश्वासन दिया, जिससे मुझे सहारा मिला.
पीड़ितों के लिए दौड़ते गजपुर के पूर्व सरपंच संजय पाटिल
संजय पाटिल गांव के पूर्व सरपंच हैं. जब महलदार परिवार की महिलाएं बात करतीं तो अक्सर संजय पाटिल द्वारा की गई मदद का जिक्र करतीं. वह उसकी मदद के लिए बार-बार उसका शुक्रिया अदा कर रही थी.
ये कहते हुए वो भावुक हो गईं. अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए, एक महिला ने कहा, "संजय पाटिल मेरे बेटे को एक भाई की तरह मानते हैं. संजू पिता ने इन सभी कठिन समय में हमारी बहुत मदद की है.
'आवाज़' से बात करते हुए वह आगे कहती हैं, "जब हम पर हमला हुआ तो हमने संजू दादा को फोन किया. हमले के बारे में सुनने के बाद दादा तुरंत यहां आने लगे. लेकिन हमले के बाद पुलिस ने एहतियात के तौर पर सड़क बंद कर दी,
इसलिए वह यहां आ गए." दो घंटे बाद यहां पहुंचें. थोड़ी देर बाद वह चले गए और अपनी पत्नी के साथ यहां वापस आ गए. वह रात बारह बजे तक हमारे साथ थे, इसलिए उन्होंने हमें अपने घर आने के लिए कहा.'' वह आगे कहते हैं, "अभी सुबह हुई नहीं कि संजूदादा पूछने वापस आ गए. उन्होंने हमारे लिए जो किया, कोई हमारे लिए नहीं करता."
संजय पाटिल कहते हैं, "गांव में हिंदू-मुस्लिम एकता की जड़ें गहरी हैं. मैंने अपना खुद का होटल इन मुस्लिम भाइयों को चलाने के लिए दिया है. एक आदमी के रूप में यह मेरा कर्तव्य था कि मैं इस अवधि के दौरान ग्रामीणों को मानसिक और भावनात्मक सहायता प्रदान करूं और उन्हें वह सहायता प्रदान करें जिसकी उन्हें आवश्यकता है."
मुस्लिमवाड़ी के पास भंडारेपानी गांव के हिंदू ग्रामीणों ने भी हिंसक हमले पर आक्रोश व्यक्त किया और घटना की निंदा की. कोल्हापुर की असली पहचान हिंदू-मुस्लिम सौहार्द ही कोल्हापुर की पहचान रही है. उन्हें साहू विचार विरासत में मिले.
गजपुर हमले के बाद सभी को डर था कि हिंदू-मुस्लिम सौहार्द का ये मेल ख़त्म हो जाएगा. हालाँकि, इस तरह के हमले इस बंधन को तोड़ेंगे नहीं बल्कि इसे और मजबूत करेंगे, जैसा कि गजपुर और आसपास के इलाकों के ग्रामीणों द्वारा पीड़ित मुसलमानों को प्रदान की गई मदद से पता चलता है.
मुस्लिमवाड़ी में हुआ यह हमला महाराष्ट्र में अब तक हुए सबसे भीषण हमलों में से एक है. हालाँकि, गाँव और आसपास के हिंदू भाइयों द्वारा इस गाँव के मुसलमानों को की गई मदद और मानसिक समर्थन ने हिंदू-मुस्लिम रिश्ते को और अधिक मजबूत बना दिया. लेकिन यह सच है कि इन ग्रामीणों ने हिंदू और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करने की समुदाय की कोशिश को नाकाम कर दिया है! .