श्रीलता मेनन
पूरा देश महान संगीतज्ञ उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन पर शोक मना रहा है, जिनके जीवन और कार्य को किसी धार्मिक बंधन में नहीं बांधा जा सकता, क्योंकि कई मुस्लिम कलाकार कला के प्रति अपने प्रेम के कारण शास्त्रीय कला रूपों को अपना रहे हैं. केरल के मंजेरी के भरतनाट्यम नर्तक अजीश मंजेरी इसका एक उदाहरण हैं. मुस्लिम परिवार से होने के बावजूद उन्होंने केरल के कई बच्चों की तरह बहुत कम उम्र से ही भरतनाट्यम सीखना शुरू कर दिया था.
केरल के स्कूलों में हर साल युवा उत्सव आयोजित किए जाते हैं और सभी छात्र उनमें भाग लेने और पुरस्कार जीतने के लिए आगे आते हैं. इसने राज्य में सभी कला रूपों के लिए एक तरह का सकारात्मक माहौल बनाया है. अजीश को इसका फायदा हुआ.
इसलिए मंजेरी जैसे मुस्लिम बहुल शहर में पले-बढ़े होने के बावजूद उनकी दादी ने उन्हें इलाके की एकमात्र नृत्य शिक्षिका के पास भेजने के बारे में दोबारा नहीं सोचा. वह उनकी करीबी दोस्त की बेटी थीं. नृत्य के क्षेत्र में अपने पहले कदम के बारे में बताते हुए अजीश कहते हैं, ‘‘इससे भी मदद मिली.’’ दसवीं कक्षा के बाद, सवाल यह उठा कि क्या उसे जाकर वह करना चाहिए, जो हर कोई करता है या कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे उसे अपनी आजीविका कमाने में मदद मिले.
वह याद करते हैं, “मैं जल्दी से जल्दी कमाई करना चाहता था और दसवीं कक्षा के स्तर पर भी मेरा नृत्य मेरी सबसे बड़ी ताकत थी.” उन्होंने पेशे के रूप में नृत्य सिखाने का विचार किया. अजीश कहते हैं, “मेरे शिक्षक ने मुझे सलाह दी कि योग्यता प्राप्त करने के लिए मुझे कला क्षेत्र में जाना होगा. मेरे माता-पिता को कोई समस्या नहीं थी और मुझे नहीं पता कि समुदाय में किसी और को कोई समस्या होती या नहीं. मैंने अपनी योजनाओं के बारे में बात नहीं की और बस चेन्नई चला गया और कलाक्षेत्र में डिग्री प्रोग्राम में शामिल हो गया.” जब उन्होंने वहां अपना सात साल का कार्यक्रम पूरा किया, तो वे रुक्मिणी देवी अरुंडेल द्वारा शुरू की गई संस्था में एक अस्थायी कर्मचारी के रूप में शामिल हो गए और 12 साल तक पढ़ाते रहे.
बाद में उन्होंने एक मुस्लिम से शादी की और किसी से कोई विरोध नहीं हुआ... वे निष्कर्ष निकालते हैं, “नृत्य किसी भी अन्य पेशे की तरह ही एक पेशा है. यह अभिव्यक्ति का एक रूप है, एक भाषा है और कोई भी इसका उपयोग कर सकता है. यह किसी को बाहर नहीं करता है. इसलिए यह किसी धर्म का एकमात्र एकाधिकार नहीं है. यह नर्तक का अधिकार है.श्श् भरतनाट्यम के लिए रचित गीतों की विषय-वस्तु पारंपरिक रूप से भागवतम या रामायण या अन्य हिंदू ग्रंथों से ली गई है. लेकिन इससे अजीश हतोत्साहित नहीं होते. वे कहते हैं, ‘‘यह मेरे काम का हिस्सा है. मैं इसे व्यक्तिगत बोझ के रूप में नहीं रखता. जब मुझे मंदिरों के अंदर प्रदर्शन करना होता है, तो मैं वहां नहीं जाता, क्योंकि मैं किसी को नाराज नहीं करना चाहता. लेकिन अगर यह मंदिरों के बाहर होता है तो मैं प्रदर्शन करता हूं.’’
कलाक्षेत्र में उनके साथी रूस और कजाकिस्तान से नृत्य सीखने आए हैं. वे पूछते हैं, ‘‘तो अगर वे कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं कर सकता?’’ वे कहते हैं कि मुस्लिम पूर्व छात्रों में से एक साजना शमसुद्दीन अब वहां पढ़ा रही हैं. मेरी एक सहपाठी शबाना केरल की एक प्रसिद्ध मुस्लिम भरतनाट्यम नर्तकी उस्ना बानू की बेटी थीं और अब उनके पति शफीक केरल के त्रिपुनिथुरा में आरएलवी कॉलेज में भरतनाट्यम पढ़ा रहे हैं. अजीश के पास अपने इस विश्वास के लिए एक तार्किक व्याख्या है कि शास्त्रीय कला रूप अनन्य नहीं हैं. वे कहते हैं, ‘‘नृत्य शैली किसी भी समुदाय को अलग नहीं करती है. वास्तव में अगर यह मुसलमानों को अलग करती है, तो यह ब्राह्मणों को भी अलग कर देगी.’’
अजीश कहते हैं, ‘‘अतीत में यह नृत्य देवदासियों द्वारा किया जाता था और इसलिए यह उच्च जातियों को भी स्वीकार्य नहीं हो सकता. लेकिन आज हम पाते हैं कि ब्राह्मण भी इस शैली को करते हैं. इसलिए नृत्य सिर्फ एक भाषा है और इसका इस्तेमाल कोई भी व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति के लिए कर सकता है.’’
वे कहते हैं, ‘‘वास्तव में नृत्य में इस्तेमाल की जाने वाली थीम बदल सकती है. कला क्षेत्र में ही शेक्सपियर के नाटकों को भरतनाट्यम का इस्तेमाल करके प्रस्तुत किया गया है.’’ एक ईसाई पिता हैं, जो ईसा मसीह के जीवन पर आधारित रचनाओं पर नृत्य करते हैं. इसलिए कला रूपों की बात करें, तो कोई बाधा नहीं है. अजीश खुद एक कोरियोग्राफर हैं. वे कहते हैं कि केरल में समुदाय या लिंग इतनी बड़ी बाधा नहीं है. लेकिन तमिलनाडु में जहां अजीश अपनी खुद की नृत्य अकादमी चलाते हैं, जिसका नाम ओंकारा आर्ट फाउंडेशन सेंटर फॉर भरतनाट्यम है, वहां शास्त्रीय नृत्य सीखने में लिंग और धर्म दोनों ही बाधा हैं. इसलिए उनकी अकादमी में जहां उनके लगभग 100 छात्र हैं, केवल दो लड़कों ने ही अपना नामांकन कराया है. उन्होंने बताया कि पहले दो मुस्लिम लड़कियों ने दाखिला लिया था, लेकिन रिश्तेदारों और समुदाय के दबाव में उन्हें बाहर निकाल दिया गया.
जहां तक उनकी अकादमी की बात है, तो यह फल-फूल रही है. नृत्य कक्षाओं की मांग बहुत अधिक है, क्योंकि नृत्य को अब सभी स्कूलों में इंटरमीडिएट स्तर पर एक अकादमिक विषय के रूप में शामिल किया गया है. अजीश कहते हैं, ‘‘इसलिए वैकल्पिक छात्र हमारे जैसे शिक्षकों के पास आते हैं.’’
अजीश को रजनीकांत की प्रसिद्ध फिल्म एंथिरन में उनके योगदान के लिए भी जाना जाता है, जिसमें उनके नृत्य आंदोलनों को मोशन कैप्चर तकनीक का उपयोग करके कैप्चर और मॉर्फ किया गया था.
अजीश कहते हैं कि वे अपने चयन से खुश हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे कोई पछतावा नहीं है. मुझे लगता है कि मैंने अपने जीवन को अच्छी तरह से प्रबंधित किया, क्योंकि मैं अनावश्यक ध्यान आकर्षित करने से थोड़ा सावधान था.’’