बिहार के अपर महाधिवक्ता खुर्शीद आलम बनना चाहते थे डाॅक्टर बन गए वकील

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 18-06-2024
Additional Advocate General of Bihar said that today every house needs a lawyer
Additional Advocate General of Bihar said that today every house needs a lawyer

 

महफूज आलम / पटना
 
एक ऐसे वकील की कहानी जो डॉक्टर बनना चाहता था लेकिन वकील बन गया. वह भी एक नामचीन वकील. हम बात कर रहे हैं बिहार के अपर महाधिवक्ता खुर्शीद आलम की. खुर्शीद आलम जिन्होंने एक बार भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन सेशन के एक अधिकारी के खिलाफ मामला लड़ा और जीता और एक बार पटना मेयर की हाई प्रोफाइल हत्या का मामला लड़ा और सुर्खियां बटोरीं. इसलिए एक बार जब सभी वकील थक गए तो उन्होंने कटिहार मेडिकल कॉलेज के डायरेक्टर अहमद अशफाक करीम का केस लड़ा और उन्हें जेल से छुड़ाया.

 
खुर्शीद आलम कानूनी जागरूकता अभियान भी चलाते हैं . गरीबों और जरूरतमंदों को कानूनी सहायता प्रदान करते हैं. वह एकमात्र मुस्लिम वकील हैं जिन्होंने पटना एडवोकेट एसोसिएशन में दो बार उपाध्यक्ष का चुनाव जीता है. उनके बाद अब तक कोई भी मुस्लिम वकील पटना एडवोकेट एसोसिएशन का चुनाव नहीं जीत सका है. 
 
वकील होना और न्याय करना दो अलग-अलग बातें 

वकील होना और न्याय के लिए लड़ना दो अलग-अलग बातें हैं. खुर्शीद आलम पटना हाई कोर्ट के एक मुस्लिम वकील हैं जो न्याय और कमजोर वर्गों की मदद को सबसे महत्वपूर्ण काम के रूप में देखते हैं. उनका नाम तब सुर्खियों में आया जब उन्होंने भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन सेशन को हराया. टीएन ने आदेश दिया था कि लोगों को चुनाव के दौरान अपने हथियार जमा करने चाहिए. खुर्शीद आलम ने इस आदेश को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी और इसके खिलाफ बहस की. केस जीत लिया. यह फैसला उस समय दुनिया भर में सुर्खियां बना और कोर्ट ने 24 घंटे के भीतर हथियार वापस करने का आदेश दिया था. इसके बाद खुर्शीद आलम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
 
 
एक जमींदार और विद्वान परिवार में जन्म

मशहूर वकील खुर्शीद आलम का जन्म 22 अप्रैल 1956 को बिहारशरीफ के कागजी मोहल्ले में हुआ था. उनका जन्म एक जमींदार और विद्वान परिवार में हुआ था. भारत के विभाजन के समय उनका अधिकांश परिवार पाकिस्तान चला गया, लेकिन उनके पिता और नाना ने भारत में ही रहने का फैसला किया. खुर्शीद आलम के मुताबिक, उनका परिवार शुरू से ही विज्ञान, साहित्य और राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय रहा है. उन्होंने कहा कि उनके दादा नूर मोहम्मद ब्रिटिश शासन के दौरान बिहार से इत्तिहाद नाम से एक उर्दू अखबार निकालते थे.
 
उनका कहना है कि इस अखबार का जिक्र तकी रहीम साहब की किताब जंग आजादी (बिहार के मुसलमानों की भागीदारी) में भी मिलता है. खुर्शीद आलम कहते हैं कि मेरे पिता का नाम सदर आलम है. उनके दादा शेख अहमद अली ने 1912 में कौमी मसनवी नामक एक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी थी, जिसे हमने लखनऊ पुस्तकालय से प्राप्त किया है और इसे पुनः प्रकाशित किया है. खुर्शीद आलम कहते हैं कि इस तरह से यह स्पष्ट है कि परिवार के बुजुर्गों को ज्ञान और साहित्य से गहरा लगाव था.
 
 
पारिवारिक दृश्य

खुर्शीद आलम की मां पश्चिम बंगाल की रहने वाली थीं. उनकी माँ बंगाल के कवि क़ाज़ी नज़र इस्लाम की भतीजी थीं. खुर्शीद आलम 10 भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं. उनके पांच भाई और पांच बहनें हैं. एक बहन, फ़रज़ाना आलम, कोलकाता की डिप्टी मेयर थीं, जिनकी 2011 में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई. बाकी बहनें अमेरिका और कनाडा में रहती हैं. दो भाई विदेश में हैं. एक गोवा में और एक बिहारशरीफ में है. 1991 में उनके पिता की मृत्यु हो गई और कोरोना के बाद उनकी मां की भी मृत्यु हो गई. खुर्शीद आलम ने 1993 में निकहत जहां से शादी की. उनके तीन बेटे हैं. एक बेटा बॉम्बे हाई कोर्ट में वकील है. बाकी दोनों बेटे पढ़ाई कर रहे हैं. खुर्शीद आलम बिहार राज्य स्केटिंग एसोसिएशन के उपाध्यक्ष, बिहार सोशल क्लब के उपाध्यक्ष और कटिहार मेडिकल कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के सदस्य हैं.
 
परिवार पाकिस्तान चला गया

खुर्शीद आलम कहते हैं कि भारत विभाजन का जख्म हमारे परिवार पर बहुत गहरा था. देश के विभाजन में एक प्रसिद्ध एवं विद्वान परिवार बिखर गया. उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग पाकिस्तान चले गए, लेकिन पिताजी ने भारत को चुना और किसी भी कीमत पर अपनी मातृभूमि नहीं छोड़ी. खुर्शीद आलम के अनुसार, चूंकि उनके परिवार के सभी सदस्य पाकिस्तान चले गए थे, इसलिए परिवार के जो कुछ सदस्य भारत में रह गए, उन्होंने अपनी मातृभूमि के निर्माण और सौंदर्यीकरण के लिए पूरी कोशिश की और शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का रास्ता अपनाया.
 
 
प्रारंभिक शिक्षा से एलए तक का सफर

खुर्शीद आलम के अनुसार, उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा एक मदरसे में शुरू की. फिर छठी कक्षा से सुगरा हाई स्कूल बिहार शरीफ में पढ़ाई की. वहीं से मैट्रिक की परीक्षा पास की. उन्होंने कहा कि मेरी आगे की शिक्षा नालंदा कॉलेज बिहारशरीफ से हुई. खुर्शीद आलम के मुताबिक, उस वक्त जेपी मोमेंट शबाब पर था. मैं पूरी शिद्दत से इस आंदोलन में शामिल हुआ. दो बार जेल भी गया.
 
उन्होंने कहा कि इस बीच मेरी पढ़ाई भी प्रभावित हुई. जेल से छूटने के बाद मैंने अपनी शिक्षा शुरू की. खुर्शीद आलम का कहना है कि वह कभी वकील नहीं बनना चाहते थे. वह डॉक्टर बनना चाहते थे. डॉक्टर के पेशे से काफी प्रभावित थे, लेकिन एक बड़े बुजुर्ग की सलाह पर मैंने पटना के कॉमर्स कॉलेज में कानून में प्रवेश ले लिया. ये 1982 की बात है. उन्होंने कहा कि वकालत के बाद मैं नियमित रूप से पटना हाई कोर्ट में वकील के तौर पर प्रैक्टिस करने लगा.
 
हाई कोर्ट में वकील के रूप में शुरुआत 

खुर्शीद आलम कहते हैं कि मैंने 1989 में पटना हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की. तत्कालीन प्रमुख वकील और पूर्व मंत्री शकील अहमद खान के साथ वकालत शुरू की. करीब दो साल तक उनके साथ काम किया. फिर 1992 से स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू कर दी. इस बीच उन्होंने कई बड़े केस लड़े और जीते. लेकिन 1995 मेरे जीवन का एक बड़ा मोड़ था, जब मैंने भारत के चुनाव आयोग के खिलाफ केस जीता और अदालत का फैसला पूरी दुनिया में मशहूर हुआ और मामले का फैसला सुर्खियां बना और तब से मेरा नाम और काम बन गया.
 
उन्होंने कहा कि कोर्ट का यह फैसला इतना महत्वपूर्ण था कि इसे साल के सर्वश्रेष्ठ फैसलों में शामिल किया गया. उन्होंने कहा कि खुर्शीद आलम बनाम भारत निर्वाचन आयोग के नाम से यह फैसला नेट पर भी उपलब्ध है. वह कहते हैं कि इस फैसले के बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
 
उसके बाद मेरे सामने कई महत्वपूर्ण और वीवीआईपी मामले आये जिनमें मैं लगातार सफल होता गया. इनमें से एक हाई-प्रोफाइल मामला था. पटना के मेयर किशन मुरारी का. वह एक हत्या के मामले में शामिल था. यह एक जटिल मामला था. मैंने इसे जीत लिया.
 
कटिहार मेडिकल कॉलेज के निदेशक अहमद अशफाक करीम को 2014 में गिरफ्तार किया गया था. उनकी जमानत कई बार खारिज कर दी गई थी. आख़िरकार मैंने केस ले लिया. उनका केस पहले भी कई वकील लड़ चुके थे लेकिन जब मैंने ये केस लिया तो उसमें भी मुझे बड़ी सफलता मिली और वो जेल से बाहर आ गये. उन्होंने कहा कि ऐसे दर्जनों मामले सुलझाए गए हैं और जीत हासिल की है, मुझे बहुत खुशी है कि मैंने ऐसे लोगों की भी मदद की है जो किसी न किसी मामले में फंसकर परेशान और परेशान होकर कोर्ट आते हैं.
 
अपर महाधिवक्ता वकील नहीं बनना चाहते थे

खुर्शीद आलम 2016 से पटना उच्च न्यायालय में बिहार सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता हैं. वह पटना एडवोकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष के रूप में दो बार चुने जाने वाले एकमात्र मुस्लिम हैं. उनके बाद कोई भी मुस्लिम वकील पटना एडवोकेट एसोसिएशन का चुनाव नहीं जीत सका है. उन्होंने कहा कि अब मैं एक वकील हूं . मुझे लगता है कि वकालत अपने आप में एक अच्छा पेशा है.
 
यह लोगों की गरिमा की रक्षा करता है और उन्हें उनके दुखों से बाहर निकालने का काम करता है. उन्होंने कहा कि आज के दौर में मुझे लगता है कि हर घर में एक वकील होना चाहिए. खुर्शीद आलम कहते हैं कि मैंने खुद अपने दो बेटों को वकील बनाया है, जिनमें से मेरा बड़ा बेटा बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहा है. उनका कहना है कि दरअसल कानूनी जानकारी के अभाव में कई समस्याएं पैदा होती हैं और लोग समस्याओं में फंस जाते हैं. आज जरूरत इस बात की है कि हर परिवार में एक बच्चे को वकील बनाया जाये.
 
 
गरीबों को कानूनी सहायता

खुर्शीद आलम गरीबों और जरूरतमंदों का केस भी लड़ते हैं. मुस्लिम समाज में कानूनी जागरूकता लाने के लिए भी अभियान चला रहे हैं. उन्हें मुस्लिम संगठनों के विभिन्न कार्यक्रमों में बुलाया जाता है. वे न केवल कानूनी और कानूनी ज्ञान देने के कार्यक्रम में भाग लेते हैं, नियमित लोगों के बीच कानूनी जागरूकता कार्यक्रम भी चलाते हैं.
 
 खुर्शीद आलम का कहना है कि वह ऑल इंडिया लॉयर्स काउंसिल की केंद्रीय समिति के सदस्य भी हैं, जिसका काम गरीबों को कानूनी सहायता देना, उन्हें जेल से बाहर निकालना और उनके मामले लड़ना है. उन्होंने कहा कि हम कई लोगों की मदद करने में सफल हुए हैं और कई लोगों को जेल से रिहा कराया है. उन्होंने कहा कि गरीब लोगों को कानून की जानकारी नहीं होती और पैसे के अभाव में वे मुकदमेबाजी में पिछड़ जाते हैं. इसलिए हम उन लोगों की मदद करते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और किसी तरह की मुसीबत में फंसे हुए हैं.
 
हर घर में एक बच्चे को वकील बनाएं

खुर्शीद आलम कहते हैं कि छात्र जीवन के दौरान उन्हें आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन इतना जरूर था कि उन्होंने अपनी पढ़ाई को कभी नजरअंदाज नहीं किया और हमेशा अपने काम में लगे रहे. लगातार मेहनत की और आज इस मुकाम तक पहुंचने में कामयाब रहे. उनका कहना है कि बिना कड़ी मेहनत और लगातार मेहनत के कोई भी सफल नहीं हो सकता.
 
खासकर कानूनी पेशे में तो ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि जब मैं वकील बना तो मैंने पूरा ध्यान वकालत पर लगाया. शुरुआत में मैंने आपराधिक कानून के मामले लड़े, फिर मैंने दीवानी और अन्य मामले लड़ना शुरू किया. वह कहते हैं कि आज मैं हर तरह के केस लड़ता हूं. उन्होंने कहा कि समय हमेशा बदलता रहता है, आज समय की मांग है कि हर घर में एक अधिवक्ता अवश्य होना चाहिए.
 
खुर्शीद आलम ने मुस्लिम समुदाय से भी अपील की है कि वे अपनी शिक्षा पर ध्यान दें और बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पर विशेष ध्यान दें. साथ ही घर में एक बच्चे को वकील बनाना चाहिए ताकि वह वर्तमान और भविष्य की समस्या से निपटने के लिए खुद को तैयार कर सके और समाज को कानूनी तौर पर जागृत किया जा सके.
 
राजनीति में रुचि 
 
खुर्शीद आलम का राजनीतिक करियर भी रहा है. जेपी मोमेंट से जुड़ने और जेल जाने के बाद उन्होंने राजनीति में भी किस्मत आजमाई. उन्होंने उस समय के कई प्रमुख राजनीतिक नेताओं के साथ अंतरंग बैठकें कीं. खुर्शीद आलम कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी से उनके अच्छे संबंध थे. कांग्रेस पार्टी में रहे और बाद में लेफ्ट पार्टी में शामिल हो गये. 2000 में उन्होंने माले के टिकट पर इस्लामपुर से बिहार विधानसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. बाद में उन्होंने राजनीति छोड़ दी. खुद को पूरी तरह से अपने कानूनी पेशे के लिए समर्पित कर दिया.
 
 
सामाजिक कार्यों से लगाव

खुर्शीद आलम की पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी रही है कि उनकी शुरू से ही सामाजिक एवं कल्याणकारी कार्यों में रुचि रही है. खुर्शीद आलम का कहना है कि वह कानूनी जागरूकता लाने के लिए विभिन्न मुस्लिम संगठनों के साथ काम कर रहे हैं. वे धर्म और राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना सभी को कानूनी सहायता प्रदान करते हैं. उनका कहना है कि उनका परिवार 10 पीढ़ियों से संयुक्त परिवार है. खुर्शीद आलम बिहारशरीफ में कई स्कूल भी चलाते हैं जिनकी देखभाल उनके छोटे भाई करते हैं. यह विद्यालय अनाथ बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करता है.
 
उन्होंने कहा कि मेरे पिता के नाम पर सदर आलम मेमोरियल स्कूल की स्थापना की गई है, जहां बच्चों की सर्वोत्तम शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है. कई बीएड कॉलेज भी चल रहे हैं. उनका कहना है कि शिक्षण संस्थान की अच्छी सेवाओं के कारण हाल ही में बिहार के राज्यपाल ने उन्हें सम्मानित किया है. खुर्शीद आलम का मानना है कि आज समाज को शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत है, उनका कहना है कि शिक्षा को सामाजिक स्तर पर लोकप्रिय बनाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए.