88 वर्षीय विनोद कुमार शुक्ल बोले – अभी भी बहुत कुछ लिखना बाकी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 24-03-2025
Vinod Kumar Shukla awarded the prestigious Jnanpith Award, said- the feeling of responsibility has increased
Vinod Kumar Shukla awarded the prestigious Jnanpith Award, said- the feeling of responsibility has increased

 

आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली

2024 के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए अपने नाम की घोषणा के बाद, रायपुर के प्रसिद्ध कवि और लेखक विनोद कुमार शुक्ल ने इस सम्मान को एक बड़ी जिम्मेदारी बताया. 88 वर्षीय साहित्यकार ने अपनी साहित्यिक यात्रा को याद करते हुए कहा, "मुझे बहुत कुछ लिखना था, लेकिन मैं बहुत कम लिख पाया. मैंने बहुत कुछ देखा, सुना और महसूस किया, लेकिन उसका एक अंश ही लिख पाया."

शनिवार को 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए उनके नाम की घोषणा की गई. यह सम्मान प्राप्त करने वाले वे छत्तीसगढ़ के पहले साहित्यकार हैं. साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का लेखन सरलता और गहराई का अनूठा संगम है.

साहित्यिक यात्रा की शुरुआत

1937 में छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल ने लेखन की शुरुआत 1971 में अपने पहले कविता संग्रह लगभग जयहिंद से की.इसके बाद उन्होंने कई उल्लेखनीय कविता संग्रह और उपन्यास लिखे. दीवार में एक खिड़की रहती थी और नौकर की कमीज उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। नौकर की कमीज पर मणि कौल द्वारा एक फिल्म भी बनाई गई थी, जो काफी सराही गई.

ज्ञानपीठ पुरस्कार पर प्रतिक्रिया

पुरस्कार की घोषणा के बाद अपनी प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा, "यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है. यह पुरस्कार मुझे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास कराता है. मैंने जितना लिखा है, उससे कहीं अधिक लिखने की चाह थी. लेकिन अब उम्र के इस पड़ाव पर लिखने की गति बनाए रखना कठिन होता जा रहा है."

महत्वपूर्ण कृतियाँ और उपलब्धियाँ

विनोद कुमार शुक्ल की कुछ महत्वपूर्ण कृतियाँ इस प्रकार हैं:

  • दीवार में एक खिड़की रहती थी (1999) – साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित

  • नौकर की कमीज (1979) – इस पर मणि कौल ने फिल्म बनाई

  • सब कुछ होना बचा रहेगा (1992) – प्रसिद्ध कविता संग्रह

ज्ञानपीठ पुरस्कार की स्थापना 1961 में हुई थी और इसे पहली बार 1965 में मलयालम कवि जी. शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था. यह पुरस्कार भारतीय लेखकों के लिए सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान माना जाता है.

युवा लेखकों को संदेश

नए और युवा लेखकों के लिए उन्होंने कहा, "अपने ऊपर भरोसा रखें और लगातार लिखते रहें. लेखन कोई साधारण चीज़ नहीं है, इसे गंभीरता से लें. पाठकों की प्रतिक्रिया को महत्व दें और अपनी रचनात्मकता को खुलकर व्यक्त करें."

साहित्यिक जीवन और प्रेरणा स्रोत

शुक्ल का अधिकांश जीवन छत्तीसगढ़ में बीता, जहाँ उन्होंने साधारण लोगों के जीवन, उनकी उम्मीदों और संघर्षों को अपने लेखन का केंद्र बनाया। दिलचस्प बात यह है कि उनका हिंदी साहित्य की ओर रुझान 12वीं कक्षा में हिंदी विषय में फेल होने के बाद शुरू हुआ. 2020 के एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, "अगर मैं हिंदी में फेल नहीं होता, तो शायद डॉक्टर या इंजीनियर बन जाता."

उनकी माँ घर पर बंगाली साहित्य पढ़ती थीं, जिससे उनका साहित्यिक दृष्टिकोण विकसित हुआ. जब वे 20 की उम्र में थे, तब हिंदी के प्रतिष्ठित लेखक गजानन माधव मुक्तिबोध से उनकी मुलाकात हुई, जिन्होंने उनकी कविताएँ पढ़ीं और उन्हें प्रोत्साहित किया. इसके बाद उन्होंने प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में लेखन शुरू किया और कृषि में मास्टर डिग्री के लिए जबलपुर चले गए.

लेखन प्रक्रिया और दृष्टिकोण

2015 में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, "जब मुझे अवसर मिलता है, मैं लिखता हूँ. पहला पैराग्राफ अगले पैराग्राफ को तय करता है, और इसी तरह लेखन आगे बढ़ता है. कोई न कोई प्रेरणा जरूर होती है, लेकिन मैं कभी भी अपने लेखन के उद्देश्य को पूरी तरह नहीं समझ पाया. शायद यह जानना जरूरी भी नहीं कि कोई आखिर क्यों लिखता है."

साहित्य पर प्रभाव

उनके लेखन की विशेषता इसकी सहजता और गहराई है. प्रकाशक शैलेश भारतवासी के अनुसार, दीवार में एक खिड़की रहती थी युवा प्रेम की एक अनूठी कहानी है, जिसे पढ़कर वे स्वयं भी साहित्य से गहराई से जुड़ गए.

लेखक अविनाश मिश्रा के अनुसार, "विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं ने आधुनिक हिंदी साहित्य की पूरी दिशा बदल दी. पहले लेखक अपने राजनीतिक और सामाजिक विचारों से पहचाने जाते थे, लेकिन शुक्ल के लेखन ने भाषा की सुंदरता और सहजता की ओर ध्यान आकर्षित किया." उनकी कविता सब कुछ होना बचा रहेगा को आशा और संभावनाओं की कविता माना जाता है.

विनोद कुमार शुक्ल का लेखन आम लोगों के जीवन की सरलता और उनके संघर्षों को खूबसूरती से दर्शाता है. उनकी साहित्यिक यात्रा प्रेरणादायक है, और ज्ञानपीठ पुरस्कार ने उनके योगदान को एक नई ऊँचाई दी है.

वे मानते हैं कि उनका अभी बहुत कुछ लिखना बाकी है, लेकिन जीवन की गति को देखते हुए वे इसे पूरा कर पाएँगे या नहीं, यह एक सवाल बना हुआ है. फिर भी, उनके लेखन की गहराई और भाषा की सादगी उन्हें हिंदी साहित्य में अमर बना देती है.