मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली
पूर्व नौकरशाह सैयद जफर महमूद आम तौर से सच्चर कमेटी की रिपोर्ट तैयार करने और जकात फाउंडेशन के चेयरमैन के तौर पर जाने जाते हैं, मगर बहुत कम लोगों को पता है कि देश के इमामों और ‘खुतबे’ को लेकर एक बड़ा अभियान भी चला रहे हैं.
सैयद जफर महमूद की समझ है कि खुतबा दरअसल, एक तरह की ‘इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी’ है, जिसके माध्यम से हजरत पैगंबर मोहम्मद साहब 14,00साल पहले सामाजिक, धार्मिक तथा अन्य समस्याओं और मुद्दों पर विचारों का आदान प्रदान किया करते थे.
आम तौर से अब इमामों द्वारा जुम्मे, ईद और बकरीद की नमाज में पढ़े जाने वाले ‘खुतबे’ के रूप में ‘सूरह नहल’ पढ़ा जाता है. चूंकि यह अरबी भाषा में होता है, इसलिए इमाम जब ‘सूरह नहल’ पढ़ते हैं तो आम नमाजी इसे समझ नहीं पाता.
इसी बात से सैयद जफर महमूद को अपने अभियान का आइडिया आया. पिछले सात-आठ वर्षों से वह ‘असहाबा सुफ्फा इंस्टीट्यूट फॉर इमाम एंड खतीब’ के बैनर तले देश की मस्जिदों के इमामों को प्रशिक्षित एवं जागरूक करने और चौदह सौ साल पुराने ‘इस्लामिक इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी’ को जिंदा करने की कोशिश में हैं.
आवाज द वॉयस से बातचीत में सैयद जफर महमूद कहते हैं, “वक्त के बदलने के साथ हमारी समस्याएं और जरूरतें बदली हैं, इससे इसकी अहमियत भी कई गुना बढ़ी है. इसे देखते हुए इमामों को समयानुसार प्रशिक्षित किया जा रहा है.”
वह बताते हैं कि इंस्टीट्यूट के बैनर तले छोटे-बड़े सम्मेलन और वर्कशॉप आयोजित कर इमामों को बताया जाता है कि वे नमाजियों को वोटर आईडी कॉर्ड, आधार कार्ड बनाने की जानकारी दें.
इसे कैसे और कहां लिंक किया जाता है, यह भी बताएं. चुनाव के समय मतदान करने के लिए प्रेरित करें. इसके अलावा नौकरियों की नियुक्तियों एवं प्रतियोगिता परीक्षाओं के बारे में भी जानकारियों का आदान-प्रदान करें.
सैयद जफर महमूद बताते हैं, “पंजाब, हरियाणा, हिमाचल आदि के करीब 800इमाम अब तक प्रशिक्षित किए जा चुके हैं. इसके अलावा इमामों का एक सम्मेलन नई दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में भी आयोजित किया जा चुका है.”
‘सूरह नहल’ के हवाले से इस्लामिक दर्शन शास्त्र समझाते हुए जफर महमूद कहते हैं, “इसमें ‘अदल-अहसान’ का जिक्र है. इसके जरिए गलती करने वाले बंदे को बेहतर बनाने की जिक्र है. प्रशिक्षित इमामों की मदद से यही करने की कोशिश है.”