राकेश चौरासिया
मोहम्मद अली जौहर भारत की आजादी के दीवानों में बड़ा नाम है. वे मुस्लिम आलिम, एक पत्रकार और एक कवि तो थे ही. उन्होंने कई और दानिशवरों के संग मिलकर जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना भी की थी, जो आज विशाल षिक्षा समूह का आकार ले चुका है. उनके चाहने वालों में अक्सर ये जिक्र आता है, मौलाना मुहम्मद अली जौहर की मृत्यु कहां हुई?, मुहम्मद अली जौहर की कब्र कहां है? तो बता देते हैं कि उनकी मृत्यु लंदन में हुई थी और उनकी कब्र जेरूसलम में है.
भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फंूकने वाले मोहम्मद अली जौहर को कई बार जेल की सजा हुई, जिससे उनका स्वास्थ्य गिरने लगा था. जेल में भरपेट और उचित भोजन न मिलने के कारण वे बीमार रहने लगे थे और उन्हें मधुमेह हो गया था.
मौलाना मुहम्मद अली जौहर का जन्म कहां हुआ था?
10दिसंबर 1878को जन्मे मौलाना मुहम्मद अली जौहर के पूर्वज नजीबाबाद से थे, और वे 1857में अंतिम मुगल राजा बहादुर शाह जफर की रक्षा के लिए दिल्ली आए थे. 1857के स्वतंत्रता संग्राम में मौलाना मोहम्मद अली के लगभग 200रिश्तेदार मारे गये. मुहम्मद अली के दादा रामपुर राज्य चले गये और वहीं बस गये.
मौलाना मुहम्मद अली जौहर की मां का नाम क्या था?, बी अम्मा कौन थीं?
मोहम्मद अली पांच साल के थे जब उनके पिता अब्दुल अली खान का निधन हो गया. उनकी मां आबादी बेगम, जिन्हें प्यार से बी अम्मा कहा जाता था (जो अमरोहा से थीं) ने अपने बेटों को औपनिवेशिक शासन से आजादी के लिए संघर्ष का बीड़ा उठाने के लिए प्रेरित किया. इस उद्देश्य से, वह इस बात पर अड़ी थीं कि उसके बेटों को उचित शिक्षा मिले. उन्हें लगा कि ब्रिटिश मानसिकता को समझने और अपनी कमजोरियों को पहचानने के लिए उन्हें अंग्रेजी सीखनी चाहिए. इसकी परिणति उनकी ऑक्सफोर्ड से कानून और इतिहास में डिग्री के साथ हुई.
विदेश में मरना पसंद करूंगा
मौलाना मुहम्मद अली जौहर बीमारी की सूरत में ही, 1930में लंदन में आयोजित गोल मेज सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे थे. उस समय मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व सर आगा खान कर रहे थे. उन्होंने लंदन में अपनी मृत्य के संदर्भ में स्मरणीय कथन कहा था, ‘‘जब तक यह स्वतंत्र देश नहीं होता, मैं किसी विदेशी देश में मरना पसंद करूंगा और यदि आप हमें भारत में आजादी नहीं देते हैं, तुम्हें मुझे यहीं कब्र देनी होगी.’’
जेरूसलम में दफनाया गया
लंदन में गोलमेज सम्मेलन के बाद उनकी तबियत और बिगड़ और उनकी 4जनवरी, 1931को लंदन में ही उनकी मृत्यु हो गई. उनकी इच्छा के अनुरूप उनके रिश्तेदारों और दोस्तों ने उन्हें जेरूसलम में दफनाया गया. फिलिस्तीन के मुफ्ती अमीन अल-हुसैनी ने उन्हें मस्जिद अल-अक्सा के पास ही अंतिम विश्राम स्थल उपलब्ध करवाया.
पहली गैर-अरब शख्सियत
मौलाना मुहम्मद अली जौहर अकेले ऐसी गैर-अरबी शख्सियत रहे, जिन्हें जेरूसलम में दफनाया गया. जब मौलाना मुहम्मद अली जौहर का जनाजा निकला, तो अरब देशों से होकर निकला और उनके अंतिम संस्कार के जुलूस में कई मुल्कों के प्रतिनिधिमंडल और मुस्लिम जगत के गणमान्य जन कतारबद्ध कर इस अजीम शख्सियत के दर्शन कर रहे थे.
तलवार के स्थान पर कलम चुनी
मौलाना मुहम्मद अली जौहर की पोती अजीज फातिमा के मुताबिक, मुहम्मद अली ने तलवार के स्थान पर कलम को चुना. भारत लौटने पर, मुहम्मद अली को एहसास हुआ कि उन्हें अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अन्याय और भारतीय समाज के आदर्शों और संस्कृति को कमजोर करने के उनके जानबूझकर किए गए प्रयासों का जवाब देना चाहिए. इसके महान कलाकारों और लेखकों का मजाक उड़ाया गया. भारतीयों में बहुत कम एकता बची थी.
‘द कॉमरेड’
1911में, मुहम्मद अली जौहर कलकत्ता चले गए जहाँ उन्होंने ‘द कॉमरेड’ नामक एक अंग्रेजी समाचार पत्र शुरू किया. उन्होंने अपने संपूर्ण अंग्रेजी गद्य में गहराई से महसूस की गई भावनाओं को अभिव्यक्ति दी, और इस प्रकार, उनका अखबार अंग्रेजों को छोड़कर, बहुत लोकप्रिय हो गया.
रामपुर में संपत्ति जब्त
इसके बाद, अपने विचारों को उजागर करने के कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया और रामपुर में उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई. रिहा होने के बाद, उन्होंने फिर से अपना पेपर लिखना शुरू कर दिया. इससे उनके गिरफ्तार होने और फिर रिहा होने का सिलसिला शुरू हो गया, लेकिन अपना लेखन फिर से शुरू करने के लिए उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया.
फिलिस्तीन को लेकर चिंता
देहली में उन्होंने ‘द हमदर्द’ नाम से एक उर्दू अखबार शुरू किया. उन्होंने ओटोमन साम्राज्य के पतन के बाद भारत और मध्य पूर्व की स्थितियों के बारे में लिखा. उन्होंने खिलाफत के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए तुर्की का दौरा किया. वह फिलिस्तीन की स्थिति को लेकर बहुत चिंतित थे.
बेटियों के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति नहीं
जब वह ब्रिटिश हिरासत में थे, उनकी 20और 21साल की दो बेटियां बीमार पड़ गईं. ऐसा कहा गया कि अंग्रेजों ने मुहम्मद अली से अपने विचारों के लिए माफी मांगने का आग्रह किया, ताकि उन्हें अपनी मरती हुई बेटियों से मिलने की अनुमति मिल सके, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. जब उसकी बूढ़ी मां ने इस प्रस्ताव के बारे में सुना, तो उसने उसे पत्र लिखकर कहा कि यदि उसे यह प्रस्ताव स्वीकार करना है, तो उसके बूढ़े हाथों में अभी भी इतनी ताकत है कि वह उसे खुद ही मौत के घाट उतार सकती हैं. जब उनकी बेटियों की मृत्यु हो गई, तो उन्हें उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई.
दौर-ए-हयात आएगा...
मौलाना मुहम्मद अली जौहर का अंग्रेजों के खिलाफ यह शेर बहुत मकबूल हुआ - ‘‘दौर-ए-हयात आएगा कातिल तेरी कजा के बाद, है इब्तेदा हमारी तेरी इंतेहा के बाद.’’ उनकी याद में कई संस्थानों का नामकरण हुआ, जिनमें मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया में मौलाना मोहम्मद अली जौहर अकादमी ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, मौलाना मोहम्मद अली कॉलेज और मुंबई में जौहर टाउन, जौहराबाद, गुलिस्तान-ए-जौहर, मुहम्मद अली रोड शामिल हैं.
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