उस्ताद जाकिर हुसैन सांस्कृतिक एकता के प्रतीक थे: साबिर हुसैन

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 19-12-2024
Ustad Zakir Hussain was a symbol of cultural unity: Sabir Hussain
Ustad Zakir Hussain was a symbol of cultural unity: Sabir Hussain

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली

जाकिर हुसैन साहब से कई बार मेरी मुलाक़ात हुई लेकिन आजतक मेने उनके तस्वीर नहीं खिचवाई क्योंकि मेरा सपना था उनके साथ एक ही स्टेज पर बैठकर तबला बजाना जो अधूरा रह गया और वो तस्वीर सिर्फ मेरे मन के किसी कोने में सिसक कर रह गई ये कहना है भारतीय शास्त्रीय तबला वादक साबिर हुसैन का.

साबिर हुसैन ने तबला वादन अपने मामा उस्ताद रफ़ुद्दीन साबरी से सीखा और गंडा बंधाई की रस्म और तबला वादन की बारीकियां सीखने-जानने के बाद इन्होनें अपनी कला का प्रदर्शन विभिन्न नामी कार्यक्रमों में किया.

आइकॉन तबला उस्ताद जाकिर हुसैन

साबिर हुसैन ने आवाज द वॉयस को बताया कि तबला उस्ताद जाकिर हुसैन साहब की हर एक अदा के लोग दीवाने हैं. अगर उन्होनें स्टेज पर बैठकर यूंही कहीं देख भी लिया तो वो भी उनका एक फेमस स्टाइल बन गया. साबिर हुसैन ने बताया कि जाकिर हुसैन साहब की देखा देखी लोगों ने लंबे बाल रखने शुरू किए. 

साबिर हुसैन ने आवाज द वॉयस को बताया कि तबला उस्ताद जाकिर हुसैन साहब से जब भी वे मिले तो हमेशा उनके चहरे के भाव से ही वे बड़े प्रभावित हुए.

साबिर हुसैन ने तबला वादन अपने मामा उस्ताद रफ़ुद्दीन साबरी से सीखा और कई कार्यक्रमों में परफॉर्म किया जिसमें श्री बाबा हरीलाल, ताज महोत्सव, साहित्य फेस्टिवल, दिल्ली दरबाद, दिल्ली म्यूजिक फेस्टिवल, पंजाबी अकादमी फेस्टिवल आदी शामिल है. तबले की उनकी थाप देश में गूंजी और खूब सराही गई.

तबला उस्ताद जाकिर हुसैन साहब ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. लेकिन उनका तबला और उनकी रचनाएँ आज भी हमारे साथ हैं. जिसके शारी आज भी हमारे दिलों में वो जिन्दा हैं.

गुरु और शिष्य पर जाकिर हुसैन का वह किस्सा  

गुरु-शिष्य परंपरा हमारे शास्त्रीय संगीत की एक बड़ी पुरानी सभ्याता है. पुराने और अब के जमाने में गुरु और चेले का संबंध बहुत बदल गया है. पहले के जमाने में चेले गुरु पर अपनी जान न्योछावर कर देते थे. एक किस्सा मैं सुनाता हूं. हमारे आचार्य उस्ताद अलाहुद्दीन खान साहब अली जब सीखने की बड़ी इच्छा थी.
 
किसी ने उनसे से कहा रामपुर के नवाब के यहां चले जाओ. वहां उस्ताद वजीर खां साहब हैं, वह आपको सिखाएंगे. वह दिन रात दरवाजे के बाहर खड़े रहते, लेकिन वह नहीं माने. जब बहुत दिन निकल गए, एक बार वजीर खां कहीं जा रहे थे, तो उन्होंने तांगे सामने खुद को गिरा दिया. वजीर खां साहब ने शिष्य बना लिया.
 
जब गुरु शिष्य बनाता है तालीम देता है तो फिर  गुरु दक्षिणा भी मांगता है. तो वजीर खां साहब को लगा कि उस्ताद अल्लाउद्दीन खान बहुत अच्छा बजा रहे हैं तो उनके खानदान में कोई अच्छा बजाने वाला आए तो उसको दिक्कत न हो. तो उन्होंने गुरु दक्षिणा में कहा कि तुम सरोज उल्टे हाथ से बजाओगे.
 
अलाउद्दीन खां साहब ने गुरु की यह यह बात मान ली और फिर 15 साल फिर सरोद उल्टे हाथ से बजाना सीखा.पूरी श्रद्धा के साथ उल्टे हाथ से बजाना सीखा और हिंदुस्तान के इतने बड़े उस्ताद बने.
 
जाकिर हुसैन: एक सच्चे प्रतिभाशाली व्यक्ति
 

साबिर हुसैन को महान तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन से बहुत दुख हुआ. उन्होनें बताया कि जाकिर हुसैन को वाकई एक सच्चे प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में क्रांति ला दी. वे तबले को वैश्विक मंच पर भी लेकर आए और अपनी बेजोड़ लय से लाखों लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय परंपराओं को वैश्विक संगीत के साथ सहजता से मिश्रित किया.

साबिर हुसैन ने आवाज द वॉयस को बताया कि उस्ताद जाकिर हुसैन सांस्कृतिक एकता के प्रतीक भी थे. उनके प्रतिष्ठित प्रदर्शन और भावपूर्ण रचनाएं संगीतकारों और संगीत प्रेमियों की पीढ़ियों को प्रेरित करने में योगदान देंगी.

साबिर हुसैन ने आवाज द वॉयस को बताया कि उस्ताद जाकिर हुसैन के जाने से संगीत की दुनिया में एक अद्वितीय शून्य पैदा हो गया है. उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का संगीत अमर रहेगा. जो संगीतकारों की पीढ़ियों को कुछ नया करने और उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगा.