मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली
गणितज्ञ और कवि उमर खय्याम का जन्म नेयाश्बर (ईरान) में हुआ था और वह अल-बीरूनी की मृत्यु से कुछ ही बरस पहले जन्मे थे.
बाद में वह समरकंद और इस्फहान में रहे और दसवीं सदी के गणित में वहां उनके काम को आगे बढ़ाया गया. उन्होंने न सिर्फ ऊंचे मान वाले अंकों के वर्गमूल निकालने का सरल तरीका खोज निकाला, बल्कि उनके बीजगणित में घन समीकरणों का भी उन्हें पूरी तरह समाधान निकाला था.
गणित में विशेष रुचि रखने वाले खय्याम ने ज्यामितीय बीजगणित की शुरुआत की और बीजगणित से जुड़े समीकरणों के ज्यामितीय हल प्रस्तुत किए. उमर खय्याम ने ही बीजगणित में मौजूदा द्विघात समीकरण दिया. इसके अलावा उन्होंने पास्कल के त्रिकोण और बियोनमियस कोइफीसिएंट के ट्राइएंगल अरे का भी पहली बार प्रयोग किया.
इन्हें जलाली कैलेंडर शुरू करने का श्रेय भी जाता है. जलाली कैलेंडर एक सौर कैलेंडरहै, जिसे जलाली संवत या सेल्जुक संवत भी कहा जाता है. इस संवत में ३३ साल के दिन, तारीख, सप्ताह और लीप ईयर का पता लगाया जा सकता है. इसी कलैंडर के आधार पर बाद में कई कलैंडर तैयार किए गए. यह जलाली कैलेंडर आज भी ईरान और अफगानिस्तान में इस्तेमाल किया जाता है.
उमर इस्लामिक परंपरा के भी वाहक थे जिसमें इब्न-अल हैदम और थाबी रहे थे. इसी परंपरा के तहत, उमर ने आधार के लिए लंबवत दो सर्वांगसम पक्षों के साथ एक चतुर्भुज का विचार प्रतिपादित किया.
वैसे, उमर खय्याम का पूरा नाम भी बड़ा दिलचस्प और खासा लंबा है. ग्यात अल-दिन अबू अल-फत उमर इब्न इब्राहिम अल-निसाबुरी अल खय्याम. और इनसाइक्लोपेडिया ब्रिटानिका के मुताबिक, उनका जन्म 18 मई, 1048 को हुआ था. उनका जन्म खुरासान (अब ईरान) में हुआ था और उनके गांव का नाम था नैशाबुर (निशापुर).
उमर खय्याम बेशक आला दर्जे के गणितज्ञ थे, पर उनको आज भी याद किया जाता है तो उनकी रुबाईयों के लिए जो चार पंक्तियों वाली कविता होती है.
उनके नाम में जुड़ा खय्याम शायद उनके पिता के कारोबार से निकला हुआ उपनाम था, जो तंबुओं के व्यापारी थे. नैशाबुर में ही उन्होंने समरकंद (अब उज्बेकिस्तान में) की यात्रा करने से पहले विज्ञान और दर्शन की अच्छी तालीम हासिल की थी, जहां उन्होंने बीजगणित पर आलेख तैयार किया जिसका नाम ‘रिसाला फिल-बराहिन अला मासिल अल-जब्र वाल-मुकाबला (बीजमिथीय समस्याओं के विवरण का आलेख) जिसमें जो मोटे तौर पर उनके गणितीय सूत्रों का आधार है. इन आलेखों में, घन समीकरणों के व्यवस्थित रूप से समाधान दिए गए हैं.
उमर खय्याम का चतुर्भुज
उमर खय्याम ने ऐसा चतुर्भुज बनाया जिससे यह साबित करने की कोशिश की गई थी कि यूक्लिड का पाँचवाँ पदांतर (पॉस्ट्यूलेट) जोसमांतर रेखाओं से संबंधित है, बहुत ही शानदार है.
उमर खय्याम का चतुर्भुज (फोटो सौजन्यः इनसाइक्लोपेडिया ब्रिटेनिका)
उमर खय्याम की ख्याति इतना हो गई कि सेल्जुक सुल्तान मलिक-शाह ने उसको इस्फहान आने का निमंत्रण दिया ताकि वह कैलेंडर में सुधार के लिए जरूरी प्रेक्षण करक सके. इस काम के लिए वहां एक वेधशाला बनवाई गई, और एक नया कैलेंडर पेश किया गया, जिसका चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं और जिसका नाम था जलाली कैलेंडर. इस कैलेंडर में हर 33 साल में 8 को लीप ईयर बनाया जाता है और यह आज के ग्रेगोरियन कैलेंडर से कहीं अधिक सटीक है और इसको 1075 में मलिक शाह ने अपनाया था. इस्फहान में उन्होंने यूक्लिड के समांतर के सिद्धांत की बुनियादी आलोचना पेश की और साथ ही अनुपात के नियम का प्रतिपादन भी किया. यूक्लिड की उनकी आलोचना धीरे-धीरे यूरोप पहुंच गई और वहां खय्याम के विचारों से बहुत बाद में अंग्रेज गणितज्ञ जॉन वॉलिस (1616-1703) प्रभावित हुए, और उन्होंने खय्याम के विचारों की नींव पर अपने सिद्धांत प्रतिपादित किए.
इस्फहान में खय्याम की जिंदगी बहुत काम की रही लेकिन 1092 में उनके संरक्षण की मौत हो गई और सुल्तान की विधवा खय्याम के खिलाफ हो गई और उसके ठीक बाद उमर खय्याम हज के लिए निकल पड़े.
मक्का से खय्याम नैयाश्बुर ही लौटे और वहां पढ़ाने का काम करते हुए वहां के दरबार में ज्योतिषी बन गए. दर्शन, न्यायशास्त्र, इतिहास, गणित, चिकित्सा और खगोल विज्ञान इन सब पर खय्याम की जबरदस्त महारत थी.
हालांकि, पश्चिम में उमर खय्याम की लोकप्रियता उनकी रुबाइयों की वजह से अधिक है और इनका अनुवाद दुनिया की अधिकतर भाषाओं में हो चुका है और दुनियाभर में अगर फारसी को लेकर रंग-बिरंगे विचार हैं तो उसकी वजह भी खय्याम ही हैं.
उनकी कविताएं या रुबाईयां (चार लाइनों में लिखी जाने वाली खास कविता) को अंग्रेजी कवि एडवर्ड फिज्जेराल्ड द्वारा अनुवाद किए जाने पर 1859 के बाद ही प्रसिद्धि मिली. उमर खय्याम ने एक हजार से ज्यादा रुबायत और छंद लिखे हैं. एडवर्ड फिट्जगेराल्ड ने उनके काम का रुबायत ऑफ उमर खय्याम नाम से अनुवाद किया है.
हालांकि, कुछ विद्वानों को शक है कि खय्याम कविताएं लिख सकते थे क्योंकि उनके समकालीनों ने उनकी रुबाइयों का कोई जिक्र नहीं किया है और उनकी मौत के दो सदियों बाद तक उनके नाम की रुबाइयों का जिक्र किसी और जगह नहीं मिलता. विद्वानों को लगता है कि उमर की विद्वता की वजह से लोगों ने किसी भी विचार पर रुबाइयां बनाकर उनके नाम पर चला दीं ताकि उनकी मशहूरियत की वजह से यह चल निकलें और कोई उस पर सवाल न करे.
बहरहाल, हम उमर खय्याम की रुबाइयों को उनकी ही मानकर चल रहे हैं और उनकी सचाई पर बहस का काम विद्वानों के जिम्मे छोड़ते हैं. असल में, खय्याम की हर रुबाई अपने-आप में एक संपूर्ण कविता है.
बहरहाल, उमर खय्याम ने इस्लामिक ज्योतिष को भी नई पहचान दी.
उमर खय्याम की मृत्यु 4 दिसंबर, 1131 में 83 साल की उम्र में हुई. उनके शरीर को निशाबुर, ईरान में ही मौजूद खय्याम गार्डन में दफनाया गया.