आमतौर पर यह धारणा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुस्लिम विरोधी संगठन है. इस छवि और धारणा को गलत साबित करने के लिए आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कई बार मुसलमानों के साथ निकटता प्रदर्शित की है. कुछ जानकारों का कहना है कि आरएसएस के विरोधियों ने ही संघ को मुस्लिमविरोधी के रूप में प्रचारित कर रखा है. क्या है वास्तविकता, इस पर प्रख्यात विद्वान और बुद्धिजीवी ख्वाजा इफ्तिखार से बात की आवाज- द वॉयस के डिप्टी एडिटर मंजीत ठाकुर ने. पेश हैं मुख्य अंशः
सवालः कुछ पार्टियों ने एमवाई जैसे पॉलिटिकल समीकरण बनाए. ऐसा क्यों है कि मुसलमान संघ से बात करे तो जमीरफरोश कहलाएगा लेकिन किसी खास सियासी पार्टी को वोट दे और एक समीकरण का हिस्सा और वोटबैंक बने, तो वह बुरा नहीं है?
ख्वाजा इफ्तिखारः एमवाई की बात को मैं थोड़ा आगे ले जाता हूं. एक बात चलती है कि सभी मुसलमान इकट्ठा हो जाएं, तमाम मुसलमान इत्तेहाद बैनुल मुसलमीन, तमाम मुसलमानों के बीच एक जिस्म की तरह हो जाएं. तो मैं लोगों से कहता हूं कि ठीक है, आप सबने इकट्ठे होकर संसद की65 सीटें जीत ली, क्या कर लिया आपने? 273 हो गए आप?
दूसरी बात ये कि क्या आपका ही अधिकार है इकठ्ठा होने का? क्या हिन्दू का अधिकार नहीं है?जब हिन्दू इकट्ठा होने की बात करेगा तो आप उसे कम्युनल कह देंगे, और वह संघी हो जाएगा. जब मुसलमान सब इकट्ठे होने की बात करेंगे तो कम्युनल नहीं होंगे?ये वह सुविधाएं हैं भारतीय राजनीति की जिसमें ये सब तमाशे होते हैं.
एमवाई का मतलब है मुस्लिम और यादव. तो क्या इसका खामियाजा होगा. इसका काउंटर भी होगा, तो क्या देश को टूटने पर ले जाना चाहते हो?मैं हमेशा इस पक्ष की तरफ रहा हूं कि इकट्ठे होने की बात करता हूं, तुम सब राष्ट्र के लिए इकट्ठा हो. तब तो कोई बात बने और अलग-अलग होकर रहोगे तो तुम कहते रहे हो कि हम इकट्ठे हो रहे हैं. मैं ये मान रहा हूं कि तुम इकट्ठे नहीं हो रहे हो. इकट्ठा होने की जो प्रक्रिया है उसमें बाधा हो तुम.
सवालः कौन सी ऐसी चीजे हैं जो मुस्लिम समुदाय को संघ की विचारधारा है राष्ट्र की, देश की उससे अलग करती है. कुछ पत्रकार हैं, कुछ बुद्धिजीवी हैं जो कहते हैं कि संघ तो मुस्लिमविरोधी हैं. अगर हम जमीनी स्तर पर बात करें तो क्या जिहाद, काफिर जैसी बातों से, संघ को परेशानी होती है किदेश में नहीं होना चाहिए. ये बाच जमीनी स्तर पर कहां तक पहुंची है. ये संदेश पहुंचा है या नहीं पहुंचा है?
ख्वाजा इफ्तिखारः सरसंघचालक जी कीबुद्धिजीवयों के साथ मीटिंग हुई थी, उसमें इन बिंदुओं पर चर्चा हुई. अभी हाल ही में जो चर्चाएं हुई उस पर भी बात हुई. डॉ. राम माधव ने भी इस पर लिखा था. मैंने एक महीना इंतजार किया कि कोई इन बिंदुओं पर कुछ बोले, कुछ बात रखे सामने.
देखिए जब प्रश्न रखा जाता है तो समाज की ये जिम्मेदारी होती है कि वह उस प्रश्न को लें. इसका सही आकलन करें और आकलन करने के बाद जो वास्तविकता हैं और वास्तविकता जरूरी नहीं कि हमेशा अच्छी हो बल्कि कुछ कड़वाहट भी हो सकती है.
ईमानदारी का तकाजा है कि जो सच्चाई है उसे आप सामने रखिए. लेकिन किसी ने इस काम को किया नहीं, मैंने एक महीने के इंतजार के बाद मैंने राम माधव जी ही मैंने इन तीन बिन्दुओं पर लिख कर अपना पक्ष भेजा. काफिर के बारे में जो बुनियादी तथ्य हैं,उसे हमारे भारतीय समाज को समझना चाहिए. पहली बात ये कि ये कोई गाली नहीं है, एक आईडेंटिफिकेशनहै. यानी इस चीज को मैं मानता हूं आप उस चीज को नहीं मानते हैं. अगर आप उस चीज को मानते हैं तो आप मुस्लिम हैं और नहीं मानते हैं तो फिर आप काफिर कहलाते हैं. इसके अलावा इसकी कोई हैसियत नहीं.
लेकिन प्रश्न इससे बड़ा है. लोग घबराते हैं चर्चा करते वक्त. देखिए एक टीवी कार्यक्रम में मैंने एक कही, वही राम माधव जी को कहा, वही आपको कहूंगा. हम सब ये मानते हैं कि धर्म में आस्था रखने वाला देश है. लेफ्टिस्ट को भारतीय समाज ने उनकी जगह दिखा दी है, डिविनिटीएक है. जिसको हम एकम् सत्य कहते हैं. जो डिविनिटी को एक मानता हैं वह काफिर नहीं है. ब्रह्म एक है, इसकी रचना जिसका मैं और आप हिस्सा, उसकी अपनी व्यवस्थाएं हैं, रूप कोई भी हो.
दूसरी बात, ये कि सनातन धर्म को मैंने बहुत पढ़ा है. सनातन धर्म किसी दूसरे या धार्मिक व्यवस्था को नाकारता ही नहीं है. सनातन धर्म सब को स्वीकार करता है. तो जो धर्म एक आस्था रखता है, सब को स्वीकार करता है, किसी को खारिज करने के मोड में नहीं है. काफिर तो वह होगा जो खारिज करने के, डिनायल के मोड में होगा. तो सनातन डिनायल मोड में ही नहीं है तो फिर काफिर कहां से हुआ. काफिर रह गया हस शायरों के लिए.
सवालः गौकशी का भी मामला आता है जो बहुत भावनात्मक मुद्दा है. हिन्दुओं को लगता है कि उनकी भावनाएं आहत हो रही है क्योंकि गौ को माता की तरह पूजते हैं. दूसरी तरफ खानपान की जो आजादी है उसका भी मसला है कि हमें क्या खाना चाहिए यह दूसरा कैसे तय करेगा.
ख्वाजा इफ्तिखारः मैं हिन्दू मुसलमान की चर्चा में यकीन नहीं करता. गोरक्षा के मामले में, भारतीय सनातन समाज के लिए गौ पूज्य है, ये आपकी आस्था का प्रश्न है. कुरान मुझसे कह रहा है कि अगर तुम आस्था का सम्मान चाहते हो तो सामने वाले की आस्था का सम्मान करो. लकुम दिनकुम वलिया दिन उसको बहुत बार सुना होगा आपने, हर स्थिति के हिसाब से इसकी अलग व्याख्या है.
हिन्दुस्तान का मुसलमान, एक भी मुसलमान मैं पूरी जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि गोहत्या के साथ नहीं है. गो की हत्या कश्मीर मुस्लिमबहुल राज्य है, वहां बैन है, नहीं होती वहां. नॉर्थ इस्ट में रहने वाला मुसलमान गोमांस खा रहा है तो उसके लिए वहां गोहत्या नहीं हो रही है, वहां क्रिश्चियन की व्यवस्था है.
हिंदुस्तान का मुसलमान, हिन्दुस्तान की लीडरशिप, हमारे धार्मिक संस्थाएं, हमारे धार्मिक महत्व सब उसके हक में है, सब कह चुके हैं कि गौ को जब ये हमारा समाज मानता है कि गौ पूजनीय है, गौ माता है. तो ऐसे में ये जिम्मेदारी हमारे प्रधानमंत्री की है, हमारे पार्लियामेंट की है. हमारे पॉलिटिशियन और सिविल सोसाइटी की है कि इतने संगीन मुद्दे को बेवजह हिन्दू-मुस्लिम का मामला बने रहने दिया है. इसे एक राष्ट्रपशु के तौर पर, उसकी पूरी गरिमा के साथ कानून बनाइए और माहौल को खत्म कीजिए.
सवालः जमाना सोशल मीडिया का आ चुका है. यह खतरनाक भी है. बहुत सारे ऐसे मैसेज आते हैं जिसमें धमकाया जाता है दूसरी कम्युनिटी को, मेसेज आता है कि दारुल हर्ब हो जाएगा, दारुल इस्लाम हो जाएगा. यह क्या लफ्ज हैं?
ख्वाजा इफ्तिखारः आज 2023 में दारुल इस्लाम एक भी नहीं है. कुछ देश अपने-आपको इस्लामिक स्टेट कहते हैं. इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ऐसे कई दूसरे मुल्क अपने नाम के आगे इस्लामिक लगाते हैं. एक देश के अंदर भी पूरा इस्लाम नाफ़िज़ नहीं है. पूरी इस्लामिक व्यवस्था नाफ़िज़ नहीं है. कुरान की आयत है आज हमने तुम्हारे ऊपर सब कुछ दे दिया, अब तुम इसमें पूरी तरह से उतर जाओ. इसमें सेलेक्टिव अप्रोच नहीं चलेगा.
कौन सा देश है ऐसा और कड़वी बात कहूं. एक सही इस्लामिक रियासत जब बनेगी तो उसमें तमाम दुनिया के मुसलमानों का एक खलीफा होगा. कहीं हैं क्या? तमाम दुनिया के मुसलमान उस खलीफा के पाबंद होंगे, कहीं ऐसा हैं क्या? उस रियासत का डिफेंस एक होगा, उस रियासत की गवर्नेंस एक होगी, कहीं है क्या?
इतना ही नहीं बल्कि उस रियासत में दुनिया में कहीं भी मुसलमान रहता होगा उस रियासत का वह शहरी होगा. मिसाल ले लीजिए, हमारी यहूदी कम्यूनिटी है जो पूरी दुनिया में फैली हुई है. दुनिया में कोई अगर धार्मिकस्टेट है तो वह है इजराइल. इजराइल के अंदर दुनिया में कहीं भी बसने वाला यहूदी उसका स्वतः नागरिक है और वह उसका नियमित नागरिक बन सकता है. जब वह इजराइल के सरहद में दाखिल होगा तो वह इजरायल की शहरी की हैसियत से दाखिल होगा.
इन 57 मुस्लिम देश में जरा बता दीजिए कि ऐसा कहां है?ख्वाजा इफ्तेखार और हम दोनों (मंजीत ठाकुर) अटारी के पास चलते हैं और कहते हैं कि मेरा नाम ख्वाजा इफ्तिखार है, मैं मुसलमान हूं मैं इस्लाम को मानता हूं. आपका इस्लामिक रियासत है, मैं उसमें दाखिल हो रहा हूं, मैं इसका शहरी, तो मेरा क्या हश्र होगा. मेरा हश्र यही होगा कि जासूस कहलाऊंगा. मुझे डंडे लगेंगे और जेलों में फंसा दिया जाएगा.
दारुल मुस्लिमीन वह होता है जिसके अंदर बहुसंख्या मुसलमानों की हो. 57 दारुल मुस्लिमीन है, दारुल हरब एक भी नहीं है.
दूसरी बात, अब अगर एक ऐसे स्टेट में मुसलमान हैं जिसमें बहुसंख्या किसी दूसरे कम्युनिटी की है और उसकी तादाद कम है तो उसमें दो चीजें हो सकती हैं. जैसे हमारा स्टेट है, हमारे स्टेट की जो संविधान की प्रस्तावना है, वह कहती है कि सब बराबर हैं.उस प्रस्तावना के आधार पर तमाम उलेमा के नजदीक हिन्दुस्तान दारुल अमन है. यानी वह मुल्क जिसके अंदर आप अमन से रह रहे हैं, रह सकते हैं और रहने की पूरी संवैधानिक व्यवस्था है.
दारुल अमन को ही दारुल सलाम कहा जाता है. फर्क यह होता है कि दारुल अमन ये व्यवस्था है और दारुल सलाम का मतलब ये कि इसकी व्यवस्थाएं आपको इस तरह रहने की गुंजाइश देती है कि जिसमें आप पूरे सम्मान के साथ, पूरे भाईचारे के साथ रह रहे हैं और रहते रहेंगे. इस लिए हिन्दुस्तान पूरे तौर पर इस्लामिक परंपरा के मुताबिक दारुल अमन है, दारुल सलाम है.
दारुल हर्ब, एक ऐसी बागी, गैर मुस्लिम रियासत जिसके अंदर मुसलमान हैं, लेकिन उनके साथ आखरी दर्जे का जुल्म ढाया जा रहा है और कोई व्यवस्था उनके काम का नहीं है. तो ऐसी स्थिति के अंदर आप आत्मसम्मान के लिए लड़ते हैं.कोई दारुल हर्ब स्थायी नहीं होता. मिसाल के तौर पर अफगानिस्तान, हमारे यहां वैसी व्यवस्था कभी नहीं रही और न होगी, हमारा समाज ही इस तरह है.
अफगानिस्तान में सोवियत संघ तशरीफ लाते हैं 1989, तब अफगान लड़ेगा या नहीं लड़ेगा, वह जो कैफियत हैं कि मुझे लड़ना है. हरब का मतलब है लड़ना, जंग के अंदर शामिल होना, दारुल हर्ब दुनिया में कही नहीं है. दारुल इस्लाम कहीं नहीं, दारुल मुस्लिमीन है दुनिया में, और पूरे गौरव के साथ हमारा देश दारुल अमन है, दारुल सलाम है.