जयनारायण प्रसाद / कोलकाता
एक थे ड्रामानिगार आगा हश्र कश्मीरी, जिनके नाम से पारसी, उर्दू और हिंदुस्तानी थिएटर आज भी शान से अपना परचम लहरा रहा है. आगा हश्र कश्मीरी शुरू में गजलें लिखते थे, जी चाहा, तो नज्में भी खूब लिखीं, बाद में ड्रामे में खुद को पूरी तरह डूबो लिया.
इस तरह ड्रामानिगार के तौर पर उनकी पहचान ताउम्र बनी रही. गुजरे तो ‘उर्दू अदब के शेक्सपियर’ कहलाए, क्योंकि शेक्सपियर का असर आगा हश्र की शख्सियत पर सबसे ज्यादा था. आगा हश्र कश्मीरी का असली नाम आगा मोहम्मद शाह था. जब वे बाम्बे पहुंचे, तो ‘हश्र’ उपनाम से लिखने लगे और अपना पूरा नाम ‘आगा हश्र कश्मीरी’ रख लिया.
बनारस में हुई थी पैदाइश
आगा हश्र कश्मीरी
आगा हश्र कश्मीरी का जन्म बनारस में हुआ था 3 अप्रैल, 1879 को. कहते हैं बनारस के गोविंद कलां, नारियल बाजार में आगा हश्र का परिवार रहता था. उनके पिता गनी शाह मूलतः व्यापारी थे और कश्मीर के बासिंदे थे. व्यापार के सिलसिले में गनी शाह का बनारस आना-जाना अक्सर लगा रहता. एक दिन गनी शाह ने बनारस को हमेशा के लिए अपना ठिकाना बना लिया. बनारस में ही आगा हश्र कश्मीरी ने अपनी पढ़ाई शुरू की. लिखने-पढ़ने में शुरू से दिलचस्पी थी, सो युवा अवस्था में ही वे बनारस से बाम्बे पहुंच गए. बनारस में खूब संघर्ष किया - अनुवाद किया, थिएटर किया, नाम कमाया और एक दिन बाम्बे को अलविदा कहकर आगा हश्र लाहौर, पाकिस्तान जा बसे. लाहौर में 28 अप्रैल, 1935 को आगा हश्र कश्मीरी ने आखिरी सांस भी ली.
बाम्बे में पहली नौकरी
बहुत मशक्कत के बाद आगा हश्र कश्मीरी को बाम्बे में पहली नौकरी मिली थीं ‘न्यू अल्फ्रेड थिएट्रिकल कंपनी’ में. यह मूलतः थिएटर की कंपनी थी और 15 रुपए रोजाने पर आगा हश्र यहां जुड़े थे.
बाम्बे में लिखा पहला नाटक
'यहूदी' नाटक का मंचन
आगा हश्र कश्मीरी ने बाम्बे में अपना पहला नाटक लिखा ‘मुरीद-ए-शक’. यह दरअसल शेक्सपियर के ‘विंटर्स टेल’ का हिंदुस्तानी एडॉप्टेशन था. बताते हैं कि पहले प्ले में यह नाटक इतना कामयाब रहा कि आगा हश्र कश्मीरी की सैलरी 15 रुपए रोज से बढ़कर 40 रुपए रोज पर चली गई. फिर तो आगा हश्र कश्मीरी ने शेक्सपियर के नाटकों का अपने अंदाज में खूब तर्जुमा किया और सभी नाटकों ने पैसे भी कमाए.
20 से ज्यादा नाटक लिखे
गजल, नज्म के साथ-साथ आगा हश्र कश्मीरी ने 20 से ज्यादा नाटक लिखे. आंख का नशा, असीर-ए-हीर, भगीरथ गंगा, ख्वाब-ए-हस्ती, मधुर मुरली, रुस्तम-ए-सोहराब, सफेद खून, सैद-ए-हवश, सीता बनवास और यहूदी की लड़की. उनकी रुचि महाभारत और रामायण में भी थी. इन दोनों पर आधारित नाटक भी लिखे और दोनों का मंचन भी हुआ.
यहूदी की लड़की पर बनीं फिल्में
यहूदी की लड़की (द डॉटर ऑफ ए ज्यू) असल में आगा हश्र कश्मीरी का लिखा एक एडाप्टेड क्लासिकल नाटक है, जो वर्ष 1913 में लिखा गया. बाद में इस पर हिंदी / हिंदुस्तानी में फिल्में भी बनीं.एक बनी थीं ‘यहूदी की लड़की’ के नाम से मधुबाला और प्रदीप कुमार को लेकर 1957 में और दूसरी बनी थीं विमल राय के निर्देशन में. उसका नाम था सिर्फ ‘यहूदी’ (1958).
'यहूदी' नाटक का एक और दृश्य
पहले वाली फिल्म के निर्देशक थे एसडी नारंग यानी सत्यदेव नारंग. एसडी नारंग मूलतः लायलपुर (अब फैसलाबाद) पाकिस्तान के थे. वे उस जमाने में पीएचडी थे. सबकुछ छोड़कर कलकत्ता आ गए और ‘न्यू थिएटर’ फिल्म कंपनी से जुड़ गए थे. बाद में ‘दिल्ली का ठग’ (1958), ‘शहनाई’ (1964) और ‘अनमोल मोती’ (1969) जैसी फिल्मों का निर्देशन किया. 25 जनवरी, 1986 को बाम्बे में उनका निधन हुआ.
दूसरी वाली ‘यहूदी’ (1958) विमल राय के निर्देशन में बनी थीं. दिलीप कुमार, मीना कुमारी, सोहराब मोदी और मीनू मुमताज ने क्या खूब अभिनय किया था इसमें. इसमें कुल 9 गीत थे. एक गीत आज भी खूब सुना जाता है ‘ये मेरा दीवानापन है’ मुकेश का गाया हुआ है. बाद में विमल राय ने दो बीघा जमीन, देवदास, परख, और मधुमति जैसी खूबसूरत फिल्में बनाईं.
गायिका मुख्तार बेगम से आगा की शादी
मुख्तार बेगम
पाकिस्तान में अपने दौर की मशहूर गायिका मुख्तार बेगम से आगा हश्र कश्मीरी की शादी हुई थी. मुख्तार बेगम गाने के साथ-साथ अभिनय भी करती थीं. असल में मुख्तार बेगम मूलतः कलकत्ता की थीं. बाद में पाकिस्तान चली गई. मुख्तार बेगम असल में पाकिस्तानी गायिका फरीदा खानम की बड़ी बहन थीं.