मलिक असगर हाशमी
विश्व में शांति और सद्भावना के विस्तार के मकसद से मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव मुहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-इस्सा इस महीने के दूसरे सप्ताह में भारत के दौरे पर आ रहे हैं. इस दौरान ‘इंटरफेथ डायलॉग’ में वह न केवल अपने विचार रखेंगे, विश्व शांति के लिए उनके संगठन द्वारा किए जा रहे प्रयासों से भी अवगत कराएंगे.
वैसे, यह बहुत कम लोगों को पता है कि 2019 में ‘ईस्टर संडे’ के दिन चर्चों पर हुए आतंकी हमले के बाद श्रीलंका के बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध और देश के अल्पसंख्यक मुसलमानों के रिश्ते में आई खटास को सामान्य करने में मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव डॉ इस्सा की अहम भूमिका रही है.
बाद में उन्होंने श्रीलंकाई बौद्ध भिक्षुओं से इतने प्रगाढ़ संबंध बना लिए कि 9 से 13 मई 2022 को मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव के आमंत्रण पर श्रीलंका के बौद्ध और हिंदू पुजारियों ने पहली बार सऊदी अरब की न केवल यात्रा की, कई कार्यक्रम में शाामिल भी हुए. श्रीलंका के बौद्ध एवं हिंदू पुजारियों के इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व महाबोधि सोसाइटी ऑफ श्रीलंका के अध्यक्ष, जापान के मुख्य संघ नायक एवं लंकाजी मंदिर के मुख्य पुजारी बनगाला उपतिसा थेरा ने किया था.
इस यात्रा की मेजबानी मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव और मुस्लिम विद्वानों के संगठन के अध्यक्ष मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-इस्सा ने खुद की थी. इस दौरान एक कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी धर्मों के अनुयायियों के बीच सामान्य मूल्यों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया.
सऊदी अरब के शहर मक्का स्थित गैर-सरकारी इस्लामी संगठन मुस्लिम वर्ल्ड लीग द्वारा इन धार्मिक नेताओं और वरिष्ठ विद्वानों के लिए कार्यक्रम आयोजित किए गए थे. इस क्रम में बनगाला उपतिसा थेरा ने 11 मई 2022 को रियाद के रिट्ज कार्लटन होटल में आयोजित समारोह को संबोधित किया था.
बौद्धों एवं मुसलमानों के बीच बेहतर रिश्ते कायम करने के इस प्रयास के दौरान अपने संबोधन में बनगाला उपतिसा थेरा ने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं और इस्लामी आस्था व दीनी तालीम में रिश्ता कायम करने की कोशिश की थी. इस क्रम में उन्होंने कहा कि बहुत से लोग यह सोचकर चौंक जाएंगे कि इस्लाम और बौद्ध धर्म किसी भी तरह से तुलनीय नहीं हैं. फिर भी यदि आप उनकी शिक्षाओं और शांति के लिए उनके प्रयासों को करीब से देखें, तो वे कहीं अधिक समान नजर आएंगे.
भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के बारे में विस्तार से बताते हुए थेरा ने कहा, “बौद्ध दर्शन वास्तव में विश्व शांति के लिए महत्वपूर्ण है. मंत्र और दर्शन केवल बौद्धों के लिए ही नहीं, सभी के जीवन में मान्य और उपयोगी हैं.”
रियाद में अपने प्रवास के दौरान थेरा ने श्रीलंकाई समुदाय से धार्मिक सहिष्णुता और समझ पर भी बात की. उन्होंने ऐसे समय में राज्य में रहने वाले श्रीलंकाई लोगों के सकारात्मक योगदान के महत्व पर बल दिया.
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रियाद के दौरे के क्रम में थेरा ने 13 मई को श्रीलंकाई दूतावास परिसर में श्रीलंकाई सांस्कृतिक मंच द्वारा श्रीलंकाई समुदाय के साथ मिलकर आयोजित वेसाक उत्सव में भी भाग लिया था. इसमें बोधि पूजा और दाहम पासाला के छात्रों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए गए थे. इस दौरान उन्होंने वहां रह रहे श्रीलंकाईयों द्वारा अपने देश के जरूरतमंदों के लिए काम करने की भी सराहना की थी. उस दौरान श्रीलंका भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा था. उन्होंने 12 मई को दूतावास में आयोजित धन्ना में भी हिस्सा लिया.
रियाद में आयोजित इन कार्यक्रमों में हिंदू धार्मिक विभाग के कुरुक्कल रामचंद्र अय्यर और वेन फोरम में कोस्वाटे पालीथा थेरा ने भी हिस्सा लिया था. यह पहली बार था, जब श्रीलंका से किसी हिंदू पुजारी ने अरब का दौरा किया था.
श्रीलंकाई बौद्ध और हिंदू पुजारियों के सउदी प्रवास के दौरान आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त चरमपंथी विचारों वाले व्यक्तियों को लेकर गंभीर चर्चाएं हुई थीं. वे इसे बात सहमत दिखे कि दरअसल, आतंकवादी शांतिप्रिय लोगों के दुश्मन हैं. इस दौरान यहां तक कहा गया कि जिन लोगों ने श्रीलंका में ‘ईस्टर संडे’ पर बम धमाके किए, वे सच्चे मुसलमान नहीं हैं. मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव डॉ. मोहम्मद बिन अब्दुल करीम इस्सा ने कहा कि ईस्टर रविवार के बम हमलों को आतंकवादी कृत्य माना जाना चाहिए, जिसका सच्चे मुस्लिमों से कोई संबंध नहीं है.
ईस्टर संडे और डॉ. इस्सा का श्रीलंका दौरा
‘ईस्टर संडे’ की घटना के तुरंत बाद मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव डॉ. डॉ. मोहम्मद बिन अब्दुल करीम इस्सा ने श्रीलंका दौरा किया था. श्रीलंका में सिंहली बहुसंख्यकों एवं मुसलमानों के बीच हिंसक टकराव का लंका इतिहास रहा है. मगर डॉ. इस्सा के दौर से उनके बीच बहुत हद तक रिश्ते सुधरे हैं. श्रीलंका के अपने दौरे के क्रम में उन्होंने आतंकवाद का सीना ठोंक कर विरोध किया था.
डॉ. मोहम्मद बिन अब्दुल करीम इस्सा ने ‘ईस्टर संडे’ के आतंकी हमले का विरोध श्रीलंका के नेलम पोकुना में शांति, सद्भाव और सह-अस्तित्व पर आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने के दौरान किया था. इस दौरान उन्होंने कैंडी में मालवाटे और असगिरिया धर्माध्यक्षों से मुलाकात की थी.
डॉ इस्सा ने कहा कि आतंकवाद दुनिया का सबसे बड़ा दुश्मन है. वह महासंघ द्वारा निभाई गई भूमिका को बहुत महत्व देते हैं, जिन्होंने उन दुखद घटनाओं के बाद देश में शांति बहाल करने और सुरक्षित रखने के लिए बुद्धिमानी से काम किया.
सांप्रदायिक सौहार्द और शांति बनाए रखने के लिए महासंघ द्वारा की गई कार्रवाई की दुनिया भर के शांतिप्रिय लोगों द्वारा प्रशंसा की जानी चाहिए. यही नहीं इस्सा वह पहले इस्लामिक विद्वान हैं, जिन्होंने कहा था कि श्रीलंका में सिंहली बहुमत के साथ रहने वाले मुसलमानों को हमेशा देश में सिंहली बौद्ध संस्कृति का सम्मान और आदर करना चाहिए.
इसके साथ उन्होंने महानायके थेरों से विश्व शांति स्थापित करने में उनके द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रमों में सहयोग करने का भी अनुरोध किया. डॉ इस्सा के अनुसार, मुस्लिम समुदाय शांति को बढ़ावा देने के लिए महानायके थेरों द्वारा दिए गए धम्म देसाना को महत्व देना चाहिए.
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बातचीत के क्रम में मालवटे चैप्टर के थिब्बोतुवावे सिद्धार्थ सुमंगला महानायके थेरा ने कहा कि सिंहली, तमिल और मुस्लिम समुदाय प्राचीन काल से श्रीलंका में शांति और सद्भाव से रहते आए हैं, लेकिन छोटे उद्देश्यों वाले कुछ राजनेता समुदायों के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि श्रीलंका में बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध हैं. यदि अल्पसंख्यक इस वास्तविकता को समझकर काम करें, तो समस्याएं पैदा नहीं होंगी. अल्पसंख्यक समूहों की कुछ कार्रवाइयों ने बहुसंख्यकों के बीच हिंसा को उकसाया और ऐसी स्थितियों को रोकने में मुस्लिम धार्मिक गुरुओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
श्रीलंका प्रवास के दौरान डॉ इस्सा से मुलाकात के दौरान असगिरिया चैप्टर के वारकागोडा ज्ञानरत्ने महानायके थेरा ने कहा था कि चरमपंथी एक गुमराह वर्ग है. उलेमा ने उन्हें सही रास्ते पर लाने का कर्तव्य निभाया है. इस दौरान बताया गया कि श्रीलंका के तत्कालीन पश्चिमी प्रांत के राज्यपाल और मुस्लिम धार्मिक मामलों के मंत्री ने आतंकवादी कृत्यों की निंदा करने के अलावा सांप्रदायिक सौहार्द और शांति की नींव तैयार करने के लिए अनुकरणीय काम किए हैं.
श्रीलंका प्रवास के दौरान डॉ. इस्सा ने दियावदाना निलामे प्रदीप निलंगा डेला से भी मुलाकात की थी. इस दौरान डोरानेगामा रतनपाल थेरा, वेन, मुरुद्देनिये धम्मरत्न थेरा, मध्य प्रांत के गवर्नर मैत्री गुणरत्ने, पश्चिमी प्रांत के गवर्नर एम.जे.एम. मुजम्मिल और मंत्री एम.एच.ए. इस कार्यक्रम में हलीम भी मौजूद थे.
क्या है ‘ईस्टर संडे’ मामला ?
बता दूं कि ‘ईस्टर संडे’ घटना इसलिए चर्चित है, क्यों कि 21 अप्रैल 2019 को ईस्टर रविवार के दिन श्रीलंका के तीन चर्चों और वाणिज्यिक राजधानी कोलंबो के तीन लक्जरी होटल पर बम विस्फोट किए गए थे. इसके अलावा उसी दिन दोपहर में एक आवासीय परिसर और एक गेस्ट हाउस में छोटे विस्फोट किए गए, जिसमें तीन पुलिसकर्मी मारे गए थे. इसके अलावा कोलंबो सहित श्रीलंका के कई शहरों को निशाना बनाया गया था, जिसमें कम 290 लोग मारे गए थे. इनमें 35 विदेशी नागरिक थे. बम विस्फोटों में लगभग 500 लोग घायल हुए थे.
नेगोंबो, बट्टीकलोआ और कोलंबो के चर्च में ईस्टर प्रार्थना के दौरान बम विस्फोट किए गए थे. कोलंबो के शांगरी ला, किंग्सबरी और सिनेमन ग्रैंड होटल पर भी लगभग उसी समय बम धमाके हुए थे.
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लगभग सभी आत्मघाती हमलावर श्रीलंकाई नागरिक थे, जोकि एक स्थानीय आतंकवादी इस्लामिक समूह, राष्ट्रीय ताहीथ जमात से जुड़े हुए थे. उन्हें बौद्धों के खिलाफ हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
श्रीलंका में मुसलमान और अन्य समुदाय
श्रीलंका की सत्तर प्रतिशत आबादी बौद्धों की है. यहां 9.7 प्रतिशत मुस्लिम हैं. श्रीलंकाई आबादी के लगभग 7.4 प्रतिशत लोग ईसाई हैं, जिनमें से 82 प्रतिशत रोमन कैथोलिक हैं, जो सीधे पुर्तगालियों को अपनी धार्मिक विरासत का स्रोत मानते हैं. श्रीलंकाई तमिल कैथोलिक अपनी धार्मिक विरासत का श्रेय सेंट फ्रांसिस जेवियर के साथ पुर्तगाली मिशनरियों को भी देते हैं. शेष ईसाई समान रूप से सीलोन के एंग्लिकन चर्च और अन्य प्रोटेस्टेंट संप्रदायों के बीच विभाजित हैं. 2009 में श्रीलंका के गृह युद्ध के अंत के बाद से, पहली बार देश में एक बड़ा आतंकवादी हमला हुआ था.
श्रीलंका में पहले भी हुए ईसाइयों पर हमले
2010 में ईसाईयों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ लगातार हमले किए गए थे. इस दौरान कोलंबो के एंग्लिकन बिशप ढिल्लराज कैनागासबी ने धर्म पर संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने का आह्वान किया. 2018 में नेशनल क्रिश्चियन इवेंजेलिकल अलायंस ऑफ श्रीलंका ने उस वर्ष देश में ईसाइयों के खिलाफ हमलों की संख्या में बड़ी वृद्धि दर्ज की.
ईस्टर रविवार ईसाई धर्म के पवित्रतम दिनों में से एक है. इस दिन श्रीलंका के चर्च में प्रार्थना करने वालों की उपस्थिति बहुत अधिक होती है.
न्यूयॉर्क टाइम्स और एएफपी के एक रिपोर्ट के अनुसार घटना के 10 दिन पहले ही सुरक्षा अधिकारियों द्वारा एक कट्टरपंथी इस्लामवादी समूह, नेशनल थोहीथ जमात द्वारा चर्चों पर हमलों के खतरे की सुचना जारी की गई थी. हालांकि, इस संबंध में कोई जानकारी देश के वरिष्ठ राजनेताओं को नहीं दी गई थी. तत्कालीन मंत्री हरिन फर्नांडो ने तब राष्ट्रीय थोहीथ जमात के नेता मोहम्मद जहरान द्वारा योजनाबद्ध आतंकी हमले की पुलिस की खुफिया सूचना और आंतरिक मेमो की रिपोर्ट ट्वीट की थी. हालांकि इस घटना के बाद श्रीलंका के मुसलमानों ने जबर्दस्त हिंसा देखी. बहुसंख्यक सिंहली मुस्लिमों के खून के प्यासे हो गए थे.
टकराते रहे हैं सिंहली और मुस्लिम
ईस्टर संडे की घटना से पहले भी मुस्लिम और सिंहलियों में टकराव होते रहे हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका में साल 2012 से सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई है. कहा जाता है कि एक कट्टरपंथी बौद्ध संगठन (बीबीएस) इस तनाव को हवा देता रहता है.
कुछ कट्टरपंथी बौद्ध समूहों ने मुसलमानों पर जबरन धर्म परिवर्तन कराने और बौद्ध मठों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया. इसके चलते गॉल में मुसलमानों की मिल्कियत वाली कंपनियों और मस्जिदों पर हमले की 20 से ज्यादा घटनाएं दर्ज की गई थीं. 2014 में कट्टरपंथी बौद्ध गुटों ने तीन मुसलमानों की हत्या कर दी थी जिसके बाद गॉल में दंगे भड़क गए थे.
साल 2013 में कोलंबो में बौद्ध गुरुओं के नेतृत्व में एक भीड़ ने कपड़े के एक स्टोर पर हमला कर दिया था. कपड़े की ये दुकान एक मुस्लिम की थी और हमले में कम से कम सात लोग घायल हो गए थे. रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में सेना के हाथों तमिल विद्रोहियों की हार के बाद से श्रीलंका का मुस्लिम समुदाय एक तरह से सियासी फलक से दूर हो गया है. उसके बाद से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ धर्म के नाम पर हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं.
बौद्धों के निशाने पर मुसलमान क्यों?
बौद्ध धर्म को दुनिया में शांति और अहिंसा के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है. अहिंसा के प्रति बौद्ध मान्यताएं उसे अन्य धर्मों से अलग बनाती है. फिर सवाल उठता है कि मुसलमानों के खिलाफ बौद्ध हिंसा का सहारा क्यों लेते हैं.
श्रीलंका में मुसलमानों का मुस्लिम परंपरा के तहत मांसाहार या पालतू पशुओं को मारना बौद्ध समुदाय के लिए विवाद का मुद्दा रहा है. श्रीलंका में कट्टरपंथी बौद्धों ने एक बोडु बाला सेना भी बना रखी है, जो सिंहली बौद्धों का राष्ट्रवादी संगठन है. ये संगठन मुसलमानों के खिलाफ है. उनके खिलाफ सीधी कार्रवाई की बात करता है और मुसलमानों द्वारा चलाए जा रहे कारोबार के बहिष्कार का वकालत करता है. इस संगठन को मुसलमानों की बढ़ती आबादी से भी शिकायत है. हालांकि इस्सा और बौद्ध भिक्षुओं की मुलाकातों से बहुत हद तक स्थिति सामान्य हुई है.