मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली
अस्सी के दशक की शुरुआत का वक्त था और हिंदुस्तान अपना परचम सालोंभर बर्फ से ढंके रहने वाले अंटार्कटिका महाद्वीप पर भी लहराने के लिए एक अभियान चला रहा था. 1981-82 में इस साहसिक और महत्वपूर्ण अभियान के उपनेता थे हसन नसीम सिद्दिकी. इसी अभियान में हिंदुस्तान ने अंटार्कटिका में ‘दक्षिण गंगोत्री’नामक अपना केंद्र स्थापित किया था.
सिद्दिकी एक समुद्री भूगर्भशास्त्री थे और वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑशनोग्राफी के निदेशक भी बने. वह बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में अपने भूगार्भिक अध्ययनों के लिए मशहूर हैं और वह भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादेमी, जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया, असोशिएशन ऑफ एक्सप्लोरेशन जियोफिजिसिस्ट्स और राष्ट्रीय विज्ञान अकादेमी के निर्वाचित फेलो रहे हैं.
सिद्दिकी को 1978 में ही भारत में विज्ञान का सबसे बड़ा पुरस्कार शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार प्रदान किया गया था और यह उनकी पृथ्वी, वातावरण, समुद्री और ग्रह विज्ञान में योगदान के लिए दिया गया था. 1983 में उन्हें पद्म श्री भी दिया गया.
हसन नसीम सिद्दिकी का जन्म 20 जुलाई 1934 को बिजनौर में हुआ था. शुरुआती पढ़ाई उनकी आदिलाबाद में हुई और 1949 में मैट्रिक करने के बाद उन्होंने 1951 में उस्मानिया विश्वविद्यालय से अपना इंटरनीडिएट पूरा किया. 1954 में वह अलीगढ़ मुस्लिम विवि से ग्रेजुएट होकर निकले और 1956 में उन्होंने एएमयू से ही जियोलजी में मास्टर्स किया. और इसी साल उन्होंने जियोलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से अपना करियर शुरू किया.
जीएसआइ में वह 17 साल तक काम करते रहे और जब भारत सरकार ने नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑशनोग्राफी की स्थापना 1973 में की, तो वह इस इंस्टीट्यूट के गोवा मुख्यालय में पदस्थापित हो गए. 1985 में वह इस संस्थान के निदेशक बने.
मुख्य तौर पर हसन नसीम सिद्दिकी का काम अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और अंटार्कटिका में फैला रहा. उनके काम में पेट्रोलियम और खनिजों की खोज, बुनियादी ढांचे का विकास, पॉलीमेटलिक नोड्यूल्स की खोज, तलछट का अध्ययन, पेलियोक्लाइमेटिक अध्ययन और अंटार्कटिका अभियान उल्लेखनीय है.
हसन नसीम सिद्दिकी कई तेल परियोजनाओं से जुड़े रहे, इसमें बॉम्बे हाई सबसे महत्वपूर्ण है. इसके अलावा बसैन-गुजरात लाईन, ओएनजीसी के लिए बूचर आइलैंड रूट्स खोजना और ऑइल इंडिया के लिए महानदी डेल्टा सर्वे भी अहम रहे हैं.
पोर्ट ट्रस्ट ऑफ इंडिया के लिए उन्हें मर्मागाओ, विशाखपत्तनम, मंगलूरू और कारवार बंदरगाहों के लिए सर्वे किए थे. हसन नसीम सिद्दिकी ने ही भारत में मैंगनीज नोड्यूल कार्यक्रम शुरू किया था. उनके इस कार्यक्रम की ही वजह से भारत संयुक्त राष्ट्र के संगठन, इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी ऑफ द युनाइटेड नेशंस के सात पंजीकृत प्रमुख निवेशकों में शामिल हो पाया. हसन नसीम सिद्दिकी की अगुआई में ही ही अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का पहला बॉटम सेडिमेंट मैप तैयार किया जा सका, जो भविष्य की खुदाइयों के लिए निर्देशिका का काम करता है.
हसन नसीम सिद्दिकी ने लक्षदीव के समुद्री तटों का अध्ययन भी किया था जिससे चागोस-लखदीव रिज के बनने की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलती है.
हसन नसीम सिद्दिकी भारत सरकार की विभिन्न एजेंसियों से, मसलन ओशन साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी बोर्ड और नेशनल काउंसिल ऑफ साइंसे म्यूजियम से जुड़े रहे और वह इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोडेसी ऐंड जियोफिजिक्स के सदस्य रहे.
1986 में एक साल के भीतर दो बार दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हो गया.
(यह लेख इल्म की दुनिया सीरीज का हिस्सा है)
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