सेराज अनवर / पटना
गया - मध्य बिहार का एक प्रसिद्ध शहर है. बुद्ध और विष्णु की नगरी. एक से बढ़ कर एक शख्सियतों से सजा शहर. उनमें से ही एक मुमताज नाम सरताज अली खान का खान का है. सरताज अरबी शब्द है जिसका अर्थ हाकिम, सरदार होता है.गया व्यवहार न्यायालय में लोक अभियोजक के पद पर हैं. आजादी के बाद सरताज अली खान गया सिविल कोर्ट के पहले मुस्लिम पीपी हैं. जिनके अधीन चालीस के लगभग एपीपी कार्य करते हैं.
जमींदार घराने से ताअल्लुक रखने वाले सरताज अली खान की पहचान सिर्फ इतनी भर नहीं है. इनके दादा मोहम्मद अमीर अली खान 18वीं सदी में जज हुआ करते थे और नाना के पूर्वज परगना शेरघाटी के राजा.जिसकी सीमा झारखंड के जपला से पद्मा तक फैली थी.
जमींदारों और क़ानूनदां परिवार की पीढ़ी में सरताज अली खान एडवोकेट ने अपनी क़ानूनी योग्यता, इस्लामी जानकारी, अदबी सलाहियत, सियासी और सामाजिक गुर से एक अलग मुक़ाम बनाया है. गया सिविल कोर्ट में जब इनका दाखिला होता है, तो लोग इनके सम्मान में उठ खड़े होते हैं. काले कोट पर काली टोपी इनके नाम को चरितार्थ करता है. सरताज यानी सरदार वाला रुतबा.
नब्बे के दशक में जब मध्य बिहार नक्सलवाद से तप रहा था, तो दोनों तरफ के वकील यही हुआ करते थे. यानी नक्सलियों का मुक़दमा भी यही लड़ते और उसके विरोधी भी सरताज अली खान को ही वकील रखते.
नवाब डेल्हा से लेकर चर्चित बारा नरसंहार, बकरीडीह, तीनडीहा मर्डर केस के अधिवक्ता सरताज अली खान थे.इन कांडों की देश-दुनिया में बड़ी चर्चा हुई थी. ऐसी कितने मुक़दमात हैं, जिनको सरताज अली खान ने अपने क़ानूनी पढ़ाई से सुलझाया. सरताज अली खान वाम धारा और इस्लामिक नजरिया के संतुलित केन्द्र बिन्दु रहे हैं. उनकी दिनचर्या सुबह फजर की नमाज से शुरू होकर रात दस-ग्यारह बजे ख़त्म होती है.
आज भी अदालती कार्यों से दीगर बहुमूल्य किताबों की पढ़ाई के लिए समय निकाल लेते हैं.गया शहर के नगमतिया स्थित आवास पर उन्होंने अपनी निजी लाइब्रेरी भी स्थापित कर रखी है, जिसमें इतिहास से लेकर इस्लाम तक की नायाब पुस्तकें उपलब्ध हैं.
एक जमाने में उन्होंने सामाजिक जवाबदेही और सुधार पर उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ख़ूब आर्टिकल लिखे. समाज के नैतिक पतन और गिरते मानवीय मूल्यों से उनकी तबियत परेशान रहती है. उर्दू जबान से नई नस्ल की बढ़ती दूरी से वह बेचैन दिखते हैं.
सरताज अली खान का घराना
सरताज साहब का नाम दुर्रे-ए-शहवार खां हैं. पिता ने सरताज अली खान नाम रखा था. मगर क़ौस हमजापुरी जो अरबी, उर्दू, फारसी के बड़े शायर और विद्वान थे, उन्होंने यह नाम रखा था. जिसके माने बादशाह के सिर पर सजने वाला मोती.क़ौस उर्दू दुनिया के मशहूर शायर नावक हमजापुरी के पिता थे. सरताज अली खान ने प्रारम्भिक शिक्षा शेरघाटी अनुमंडल के आमस मिडिल स्कूल में ग्रहण की. यहां नावक हमजापुरी प्राचार्य थे. गांव में रहते वक़्त सरताज अली खान की ताअलीम और तर्बियत की जिम्मेदारी नावक हमजापुरी के सुपुर्द थी.
सरताज अली खान ने 22 जून, 1948 में आजाद भारत में गया जिले के शेरघाटी के मोरनिया गांव में आंख खोली. आमस के क़रीब मोरनिया गांव में आज भी इनकी जमीन-जायदाद मौजूद है. सरताज अली खान हालांकि सासाराम के रहने वाले थे, लेकिन जमींदारी की वजह से गया आ गये.
इनके नाना सत्तार बख़्श बड़े जमींदार थे और नाना के पूर्वज मोहम्मद बख़्श, जहांगीर बख़्श 17वीं सदी में परगना शेरघाटी के राजा हुआ करते थे .तब शेरघाटी की सरहद पलामू के जपला से लेकर हजारीबाग के पद्मा तक फैला था. झारखंड का यह इलाक़ा जंगलों और पठारी वाला था. जपला हुसैनाबाद से भी मशहूर था.
सैयद गुलाम हुसैन खां यहां के नवाब और अंग्रेजों के मुलाजिम थे. उन्होंने अपने नाम पर हुसैनाबाद बसाया था. सरताज अली खान के ननिहाल के पूर्वज की इनसे लड़ाई चलती थी. गुलाम हुसैन खां से कई बार जंगे हुईं.
जहांगीर बख़्श के दादा का भी नाम राजा गुलाम हुसैन था, जिनका निधन 1790 में हुआ. इस परिवार का 1762 तक परगना शेरघाटी पर राज था. सरताज अली खान के नाना की दादी रौशन बीबी थीं, जिसके नाम पर रौशनगंज बाजार बसा हुआ है.
सरताज अली ख़ान के दादा मोहम्मद अमीर अली खान आजादी से पचास से पहले सासाराम में जज थे. 1893 में सीवान कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए. इनके मंझले और बड़े चाचा एहतेशाम अली खान और अकरम अली खान लंदन से बैरिस्टर थे.
इस परिवार में तब चार-पांच बैरिस्टर थे. सर अली इमाम न्यूरा की मशहूर फैमिली के नवाज इमदाद असर सरताज अली के दादा के दोस्तों में थे. बंगाल के देशबंधू सीआर दास, सिद्धांत शंकर रे भी अमीर अली खान के दोस्तों में थे.
सरताज अली खान के पिता तक़द्दुस अली खान जमींदार थे. उनकी ही ख़्वाहिश थी कि बेटा सरताज बड़ा वकील बने. दरअसल, ददिहाल में बैरिस्टर और जज भरे पड़े थे, उसका असर था कि सरताज अली खान ने भी अदालत का रख कर लिया.
सरताज अली खान का सफर
सरताज अली खान 54 साल से वकालत के पेशे में हैं. आमस मिडिल स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद सरताज अली खान ने रंगलाल हाई स्कूल शेरघाटी से 1962 में मैट्रिक किया. फिर वहां से सासाराम चले गये.
एसपी जैन कॉलेज सासाराम से 1969 में ग्रेजुएशन किया. ग्रेजुएशन करने के बाद पटना लॉ कॉलेज में दाख़िला लिया. लॉ करने के बाद गया सिविल कोर्ट में बार ज्वाइन की. सैयद सरफुद्दीन अहमद के अधीन इन्होंने वकालत शुरू की. बिहार सरकार के दिवंगत मंत्री शकील अहमद खान इनके बैचमेट थे. आजाद खां, मसूद अहमद खां आदि भी समक्ष थे.
सरताज अली खान बताते हैं कि तब सीनियर्स में सैयद शफीक़ उर रहमान गया सिविल कोर्ट में टॉप के अधिवक्ता थे. ख़लील उर रहमान, अब्दुल ख़ालिक़ अता उर रहमान का शुमार भी जीनियस वकीलों में हुआ करता था.
सरताज अली खान पिछले आठ वर्षों से पीपी के पद पर विराजमान हैं. पब्लिक प्रोसेक्यूटर (पीपी) या लोक अभियोजक राज्य द्वारा नियुक्त उस एडवोकेट को कहते हैं, जो क्रिमिनल ट्रायल या आपराधिक मुक़दमें में राज्य की ओर से सस्पेक्टेड क्रिमिनल के अगेंस्ट मुकदमा लड़ा करते हैं.
सरताज अली खान क्रिमिनल लाूयर हैं. 40-42 एपीपी इनके अधीन कार्य करते हैं.पीपी सरताज अली खान के जिम्मे गम्भीर केस का संचालन ख़ुद भी करना और एपीपी की निगरानी करने के साथ उनके कार्यों की समीक्षा करना भी है.
वह बताते हैं कि सिर्फ डिस्ट्रिक्ट जज की अदालत में पचास मुक़दमे रोज सुने जाते हैं. इनकी दिनचर्या सुबह फजर नमाज से शुरु होकर रात्रि दस-ग्यारह बजे तक चलती है. वह बताते हैं कि सुबह चार बजे आंख खुल जाती है. अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं. नमाज और क़ुरआन की तिलावत करते हैं. उसके बाद उस रोज का रिकार्ड देखते हैं. फिर दस बजे अदालत चले जाते हैं.
बेटा तारिक़ अली खान भी गया सिविल कोर्ट में क्रिमिनल के बेहतरीन अधिवक्ता हैं. वकालत के पेशे में तारिक़ अपने पिता के जानशीं भी हैं. सरताज अली खान की पोती फातिमा अली पांचवीं पीढ़ी में वकालत का विरासत सम्भालने जा रही हैं.एनएमआइएमएस कृति मेहता स्कूल ऑफ लॉ से इसी साल पास आउट होने के बाद फातिमा वकालत के पेशे से जुड़ जायेंगी. उनका रुझान क्रिमिनल के बजाय कॉरपोरेट में है.
बारा नरसंहार सबसे चर्चित मुक़दमा
नब्बे का दशक, मध्य बिहार ख़ासकर गया जिला नक्सली हिंसा-प्रतिहिंसा की आग में झुलस रहा था. जिले के टिकारी प्रखंड के बारा गांव में 12 फरवरी 1992 को भाकपा माओवादी नक्सली संगठन ने एक ही जाति के 35 लोगों की गला रेतकर हत्या कर दी थी. यह हत्याकांड दुनिया भर में चर्चे में रहा. केस चला, कई को फांसी की सजा हुई. आरोपित में कई बेकसूर थे, उन्हें बेवजह उसे फंसाया गया था.सरताज अली खान आरोपितों के वकील थे. उस मुक़दमा को याद करते हुए बताते हैं कि आरोपितों में अक्सर गरीब लोग थे. 17 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें 5 लोगों को डिस्चार्ज कर दिया गया. बाक़ी 12 के खिलाफ चार्ज फ्रेम हुआ.ट्रायल चला और 12 में चार की रिहाई हो गयी. चार को आजीवन कारावास हुआ और चार को फांसी. मुक़दमा बहुत लम्बा चला. आजीवन कारावास की सजा पाये लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सरताज अली खान ने सर्वोच्च न्यायालय में नक्सलियों की तरफ से बहस की और उनकी भी रिहाई करायी. फांसी की सजा पाये शेष चार अभी भी गया जेल में बंद है. फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया है.
सरताज अली खान के आदलती जीवन का यह सबसे बड़ा मुक़दमा था, जिसमें उन्होंने आरोपितों की रिहाई करायी. इसके अलावा, बकरीडीह नरसंहार मुक़दमा में भी सरताज अली खान वकील थे. इस बार नक्सलियों के ख़िलाफ मुक़दमा की पैरवी की और सभी को सजा करायी. गया जिले के डुमरिया स्थित बकरीडीह में नक्सलियों ने पांच लोगों की हत्या कर दी थी, सभी मुस्लिम थे. तीनडीहा में सात लोग मारे गये थे. इसमें भी सरताज अली खान को आरोपियों ने वकील रखा.
इसमें सबकी रिहाई हुई. कहने का मतलब यह है कि नक्सलियों की तरफ से या नक्सलियों के ख़िलाफ सरताज अली खान ही मुक़दमा की वकालत करते थे. कभी रिहाई और कभी सजा इन्होंने दिलवाई यानी अपने पेशे से इन्होंने समझौता नहीं किया.
वकालत के पेशे में आते ही इनके हाथ चर्चित डेल्हा नवाब का केस हाथ लग गया.1972 में डेल्हा नवाब अंजार हसनैन के साले के बेटे ने गोली चला दी थी. गोली डेल्हा नवाब के नौकर पर चली थी. नवाब साहब साला के बेटे अब्दुल हमीद के ख़िलाफ केस कर दिया था. सरताज अली बताते हैं कि यह उनका पहला केस था.उस वक़्त सोनारका साहब जज थे. ऐसे कई केस हैं, जिसका जिक्र वह करना चाहते हैं, मगर परस्तिथिवश नहीं भी करना चाहते हैं.
वकील के साथ लेखक और शायर भी
एक इंसान बहुत कुछ हो सकता है, उसका मजमुआ हैं सरताज अली खान. कम लोग जानते हैं कि सरताज साहब हल्की-फुल्की शायरी भी कर लेते हैं. 2019 में पत्नी शाहिना बेगम के इंतेक़ाल के वक़्त छह महीने गजल और नजम ख़ूब लिखीं. कई शॉर्ट स्टोरी भी लिखीं. इनकी अपनी छोटी सी लाइब्रेरी भी है. मसरूफियत के बावजूद पढ़ने के लिए समय निकाल लेते हैं. पढ़े बगैर नहीं रहते हैं.नायाब किताबों का जख़ीरा है इनके पास.
सरताज अली खान लेखक भी रहे हैं. सौ के क़रीब इनका आर्टिकल उर्दू, हिन्दी अंग्रेजी के पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होते रहे हैं. सरताज साहब की एक ख़ूबी और है फआल भी खोलते हैं, सिर्फ अपने लिए एक शगल के तौर पर.आवाज-द वायस से उन्होंने कहा, फआल पर यक़ीन नहीं होने के बावजूद दीवान ए हाफिज से उन्होंने कई बार फआल खोला. किसी काम में दुविधा होने पर फआल का सहारा लिया. सामाजिक संगठनों और सियासी मंचों पर किसी दौर में इनकी मौजूदगी लाजिमी थी. किसी पार्टी के बक़ायदा मेम्बर तो नहीं रहे, मगर सर्वहारा वर्ग का हमेशा साथ दिया.
वह बताते हैं गिरती हुई मानवीय मूल्यों और समाज में नैतिक पतन से मन व्यथित रहता है. नैतिक पतन की वजह शिक्षा में गिरावट है. ईमानदारी मूल्यों का मामला है, जो अब दुनियादार हो गयी है. बेईमानी की दौलत को आज लोग कमाई की दौलत बताते हैं.
इदारों के कर्ताधर्ता क़ौमी सरमाया की हिफाजत के बजाय अपनी जाति और ख़ानदान के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. पारिवारिक रिश्तों में कमी आयी है.मिलना-मिलाना बंद हो गया है. लोग सिमट कर रहने लगे हैं.
उर्दू की मौजूदा हालत को देख सरताज अली खान विचलित हो जाते हैं. कहते हैं कि नई नस्ल उर्दू से बेगाना होती जा रही है. उसके लिए उर्दू ‘करिया अक्षर भैंस बराबर’ है. उर्दू पर आज बहुत काम करने की जरूरत है.
कोशिश होनी चाहिये कि नई नस्ल को उर्दू लिखना-पढ़ना अच्छे तरीक़ा से सिखाया जाये. सियासत पर कहते हैं कि आज की सियासत कितनी ही बदनुमा हो गयी है, लेकिन सियासत से किनारे रहने की जरूरत नहीं है. इससे क़तआ तआल्लुक़ कर लेना क़ौमी सियासी मौत के बराबर है.