रतन टाटा की विरासत: मदरसा सुधार से 10 लाख बच्चों का भविष्य उज्जवल

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 12-10-2024
Ratan Tata's legacy: Madrasa reform brightens the future of 1 million children
Ratan Tata's legacy: Madrasa reform brightens the future of 1 million children

 

मलिक असगर हाशमी

बहुत कम लोग जानते हैं कि रतन टाटा ने अपनी पूरी जिंदगी में न केवल व्यापार में अपार सफलता हासिल की, बल्कि उन्होंने सामाजिक सुधारों पर भी गहरी छाप छोड़ी. विशेष रूप से, उन्होंने मदरसा शिक्षा में सुधार लाने के लिए अत्यधिक प्रयास किए. यह काम उन्होंने 2006 में आई सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से प्रेरित होकर शुरू किया था.

इस रिपोर्ट में मुसलमानों की शिक्षा के स्तर पर गंभीर चिंता जताई गई थी, और इसे देखते हुए रतन टाटा ने 'टाटा मदरसा ट्रस्ट' की स्थापना की, जो आज भी देश के कई हिस्सों में मदरसा शिक्षा को सुधारने के लिए काम कर रहा है.

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट: शिक्षा का सच

2006 की सच्चर कमेटी रिपोर्ट ने देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय, मुसलमानों की शिक्षा स्थिति को उजागर किया. रिपोर्ट में बताया गया कि मुसलमानों की साक्षरता दर मात्र 59.1% थी, और 6-14 वर्ष की आयु के एक चौथाई बच्चे स्कूलों से बाहर थे.

मैट्रिकुलेशन करने वाले मुस्लिम छात्रों का प्रतिशत भी केवल 23.9% था, जो देश के औसत 42.5% से बहुत कम था. इन आंकड़ों को देखते हुए, रतन टाटा ने मदरसा शिक्षा में सुधार के लिए एक व्यापक योजना बनाई, ताकि मुसलमानों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ा जा सके.


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मदरसा सुधार कार्यक्रम की शुरुआत

टाटा ट्रस्ट ने ‘मदरसा सुधार कार्यक्रम’ के तहत उन मदरसों पर ध्यान केंद्रित किया, जहाँ गरीब और पिछड़े तबके के बच्चे पढ़ते हैं. इस कार्यक्रम का उद्देश्य मदरसे के बच्चों को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ गणित, विज्ञान और अन्य आधुनिक विषयों की शिक्षा देना था. इसके लिए ट्रस्ट ने आधुनिक शिक्षण पद्धतियों, गतिविधि-आधारित शिक्षा और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया.

आधुनिक शिक्षण पद्धतियों का समावेश

टाटा ट्रस्ट ने मदरसा शिक्षकों को प्रशिक्षित किया ताकि वे बच्चों को बाल-केंद्रित और सहभागी शिक्षण पद्धतियों से पढ़ा सकें. इसके साथ ही, शिक्षा के दौरान गणित, विज्ञान और अन्य विषयों को रोचक तरीके से सिखाने पर जोर दिया गया. शिक्षकों को यह भी सिखाया गया कि किस तरह से संवादात्मक और रचनात्मक तरीकों से बच्चों को पढ़ाया जा सकता है.

मदरसा मॉडल का विस्तार

ट्रस्ट ने विभिन्न राज्यों में मदरसों में सुधार के लिए व्यापक स्तर पर कार्य किया. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में मदरसा सुधार कार्यक्रम को लागू किया गया. इसके तहत मदरसों को आधुनिक तकनीक से जोड़ा गया और बच्चों को प्रोजेक्ट-बेस्ड लर्निंग के माध्यम से नई-नई जानकारियाँ दी गईं. छात्रों को इंटरनेट का उपयोग सिखाया गया ताकि वे अपने ज्ञान को और अधिक विकसित कर सकें.

यूपी के मदरसों में सुधार का प्रयोग

उत्तर प्रदेश, जहाँ सबसे अधिक मदरसे हैं, वहाँ टाटा ट्रस्ट ने एक बड़ा प्रयोग किया. वाराणसी और जौनपुर के 50 मदरसों में लगभग 10,000 बच्चों को इस कार्यक्रम में शामिल किया गया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य मदरसों को उन्नत और आधुनिक बनाना था ताकि बच्चे नियमित स्कूलों में भी जा सकें.

इसके तहत ट्रस्ट ने बच्चों को समकालीन पाठ्यक्रमों और आधुनिक शिक्षा पद्धतियों से परिचित कराया.इसके तहत संस्थानों को उन्नत और आधुनिक बनाने को प्राथमिकता दी जाती है. मदरसा छात्रों को नियमित स्कूलों में जाने के लिए प्रेरित किया जाता है. उन्हें समकालीन पाठ्यक्रमों और सीखने के तरीकों से अवगत कराया जाता है.

इस पहल में ट्रस्ट के साथ दो स्थानीय गैर सरकारी संगठन, वाराणसी में पीपुल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स और जौनपुर में आजाद शिक्षा केंद्र भागीदार हैं. इसके अलावा, चुने हुए मदरसों की प्रबंधन समितियां, जिनमें से 30 जौनपुर में और 20 वाराणसी में हैं तथा शिक्षक और स्थानीय समुदाय भी इसमें शामिल हैं.

कार्यक्रम का पहला चरण यूपी में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के तुरंत बाद शुरू किया गया था. इसके तहत शिक्षा में सुधार लाने के लिए मदरसों के साथ सरकारी स्कूलों को भी लक्षित किया गया था. 2008 के बाद से ट्रस्ट ने कार्यान्वयन, कवरेज और संसाधन सहायता को बढ़ाते हुए पहल को विस्तार दिया है.


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100,000 बच्चे लाभान्वित

2013 और 2018 के बीच, एमआईपी को बिहार और झारखंड के मदरसों तक बढ़ाया गया. यह पहल 3 राज्यों में 45,000 से अधिक छात्रों तक पहुँची. अब तक, लगभग 100,000 बच्चे, जिनमें से अधिकांश लड़कियां हैं, इससे लाभान्वित हो चुके हैं.

तिघरा गांव का उदाहरण

उत्तर प्रदेश के तिघरा गांव में स्थित मदरसा जामिया दारुल-उल-उलूम हनफिया इस सुधार कार्यक्रम का आदर्श उदाहरण है. यहाँ मदरसे में 119 बच्चे पढ़ते हैं, जिनमें से लगभग 50 हिंदू समुदाय से हैं. यह बदलाव साम्प्रदायिक सौहार्द की दिशा में एक बड़ा कदम है.

14 वर्षीय विष्णु प्रजापति, जो एक किसान का बेटा है, ने मदरसे में उर्दू के सर्वश्रेष्ठ छात्र का खिताब जीता. विष्णु पहले सरकारी स्कूल में पढ़ता था, लेकिन वहाँ की शिक्षा से असंतुष्ट होकर उसके पिता ने उसे मदरसे में दाखिला दिलाया. अब विष्णु के व्यक्तित्व और शिक्षा में बड़ा सुधार देखा जा रहा है.

साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश

मदरसा सुधार कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसने न केवल शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाया है, बल्कि इससे समाज में एकता और साम्प्रदायिक सौहार्द भी बढ़ा है. तिघरा गांव के मदरसे में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के बच्चे पढ़ते हैं और एक साथ शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.

मदरसा सुधार की दिशा में भविष्य

टाटा ट्रस्ट ने अब तक लगभग 400 मदरसों को इस योजना में शामिल किया है, जिसमें से 75 को 'मॉडल मदरसा' के रूप में विकसित किया गया है. ट्रस्ट ने विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर मदरसों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया है. इन प्रयासों के परिणामस्वरूप हजारों बच्चे मुख्यधारा की शिक्षा से जुड़ रहे हैं और उनके भविष्य की संभावनाएँ बेहतर हो रही हैं.

टाटा ट्रस्ट का मदरसा सुधार कार्यक्रम यह साबित करता है कि सही दिशा और प्रयासों से धार्मिक और आधुनिक शिक्षा का समन्वय किया जा सकता है, और इसका सकारात्मक प्रभाव समाज पर भी पड़ता है.