साकिब सलीम
"इस प्रकार के पुरुष जो श्रीमान से संपर्क करने के लिए जाने जाते हैं.गांधीजी ने सहायता की जो पेशकश की, उनमें सबसे प्रमुख पीर मुहम्मद हैं.'' बेतिया के उपमंडल अधिकारी डब्ल्यू. एच. लुईस ने 1917में मुजफ्फरपुर के कमिश्नर को एक रिपोर्ट में यह लिखा था.
संदर्भ प्रसिद्ध चंपारण सत्याग्रह था,जिसने महात्मा गांधी को भारतीय राजनीति में लॉन्च किया था.ब्रिटिश अधिकारियों का मानना था कि पीर मुहम्मद ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने गांधीजी को चंपारण में किसानों की दुर्दशा के बारे में सूचित किया था.
पीर मुहम्मद कौन थे ?
यह वही सवाल है जो मैंने तब पूछा था जब एक शोधकर्ता ने मुझे पीर मुहम्मद के बारे में बताया था.जब मैं दिल्ली के लाल किले में एक संग्रहालय के लिए एक शोध दल का नेतृत्व कर रहा था.मैं नहीं जानता था कि पीर मुहम्मद कौन थे.जब मैंने उन्हें और उनके योगदान को जाना, तो हमने उन्हें गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ एक गैलरी में जगह दी, जहां राष्ट्रवादी पत्रकारों को प्रदर्शित किया जाता है.
इसका उत्तर उसी रिपोर्ट में है जहां लुईस ने लिखा, “मेरा मानना है कि वह मुहम्मदवाद (इस्लाम) में परिवर्तित हो गया था, और राज स्कूल में शिक्षक था.1915में या उसके आसपास प्रेस में प्रकाशित स्थानीय प्रबंधन पर ज़बरदस्त हमलों के लिए उन्हें उनके पद से बर्खास्त कर दिया गया था.
वह बेतिया में रहते हैं, और पार्टाप के लिए प्रेस संवाददाता के रूप में काम करते हैं, एक अखबार जिसने चंपारण के मुद्दों पर अपनी अत्यधिक अभिव्यक्ति के लिए खुद को प्रतिष्ठित किया.पीर मुहम्मद, जो मुनीस उपनाम से लिखते थे, महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा संपादित राष्ट्रवादी हिंदी समाचार पत्र प्रताप के नियमित योगदानकर्ता थे.
चम्पारण 1906से उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन का केंद्र रहा है. जब शेख गुलाब और सीतल रे ने जबरन नील की खेती के खिलाफ किसानों को संगठित किया था.पीर चंपारण में एक स्कूल शिक्षक थे.उन्हें लिखने का शौक था.1914में उन्होंने प्रताप में अपने लेखों से स्थानीय किसानों पर ब्रिटिश अधिकारियों के अत्याचारों को उजागर करना शुरू किया.
पीर के लेखों ने चंपारण में आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बना दिया.उन्होंने राज कुमार शुकुल के साथ मिलकर गांधीजी को चंपारण लाने और सत्याग्रह शुरू करने में अहम भूमिका निभाई.एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट में कहा गया है कि पीर "बिना किसी पद और बिना साधन वाला व्यक्ति है, एक खतरनाक आदमी है, व्यावहारिक रूप से एक बदमाश है."
पीर क्यों महत्वपूर्ण थे ?
इसका जवाब एक आधिकारिक रिपोर्ट में मौजूद है. इसमें कहा गया है, "पीर मुहम्मद ज्यादातर शिक्षित और अर्ध-शिक्षित पुरुषों के इस बेतिया वर्ग और अगले वर्ग, यानी रैयतों के अपने नेताओं के बीच की कड़ी हैं." ऐसे समाज में जहां रैयत (किसान) अधिकतर अशिक्षित थे, उनकी आवाजें शिक्षित वर्ग द्वारा अनसुनी कर दी गईं.
पीर एक शिक्षित व्यक्ति थे लेकिन शहरी अभिजात्य वर्ग से नहीं थे.उनके लेखों ने गाँववासियों से लेकर शहरी शिक्षित वर्ग तक की वास्तविकताओं को सामने रखा.राजेंद्र प्रसाद जैसे शहरी शिक्षित लोगों ने इस मामले को देशव्यापी स्तर पर लोकप्रिय बनाया.
गांधी की यात्रा से पहले और यात्रा के बाद भी पीर ने उन किसानों को सलाह दी, जिन्होंने नील की खेती करने वालों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी थी.वह किसी भी किसान की मदद के लिए एसडीएम और एसडीओ की अदालत में बैठते थे, जो नील की खेती करने वालों के खिलाफ मामला दायर करना चाहते थे.यही कारण है कि पुलिस अधीक्षक ने उसे "बहुत कड़वा आदमी" कहा.
गांधीजी को राष्ट्रीय नायक बनाने में पीर मुनिस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.चंपारण सत्याग्रह के बाद वह 1949 में अपनी मृत्यु तक किसानों के अधिकारों, दलित वर्गों और हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए लड़ते रहे.