डी. सुरेंद्र कुमार / नेल्लोर
नेल्लोर जिले के शांतिपूर्ण गांव पोडालाकुर की रहने वाली सुजाना रामम, पिछले 23 वर्षों से ग्रामीण छात्रों को शिक्षा देने में अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर चुकी हैं. वह केवल एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका ही नहीं हैं, बल्कि एक मार्गदर्शक, प्रेरक और प्रतिबद्ध कवयित्री भी हैं, जिन्होंने साहित्य के प्रति अपने प्यार और शिक्षा के प्रति समर्पण से एक नया दिशा-निर्देश स्थापित किया है.
हर पाठ के साथ सुजाना न केवल ज्ञान देती हैं, बल्कि अपने छात्रों में गहरे नैतिक मूल्य और साहित्य के प्रति प्रेम को भी बढ़ावा देती हैं.
शिक्षा और साहित्य के प्रति जुनून की शुरुआत
सुजाना रामम का जन्म नायडूपेटा के पास स्थित मेनकुरु गांव में हुआ था. वह अप्पाडी पेंचलय्या और ललितम्मा की दूसरी संतान हैं. उनकी शैक्षिक यात्रा की शुरुआत बड़ी उत्साही थी, और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नायडूपेटा में पूरी की. कला स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद, वह तेलुगु साहित्य के प्रति गहरी रुचि और जुनून से प्रेरित होकर एक शिक्षक बनने के लिए तैयार हो गईं.
सुजाना ने अपने स्कूल के दिनों से ही कविताएँ लिखना शुरू किया था, और इसमें उन्हें अपने तेलुगु शिक्षक पेंचला रेड्डी से प्रेरणा मिली. शिक्षक के रूप में उनकी विशेष शिक्षण शैली और कहानी कहने की कला ने उन्हें हमेशा साहित्य से जोड़े रखा.
वे केवल शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली नहीं थीं, बल्कि उनका उद्देश्य था कि वे तेलुगु साहित्य को एक नई दिशा दें. इस जुनून के चलते उन्होंने आंध्र विश्वविद्यालय (एयू) से तेलुगु साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की और फिर एक शिक्षिका के रूप में अपना करियर शुरू किया.
शिक्षिका से कवयित्री तक का सफर
सुजाना रामम ने अपने करियर की शुरुआत निजी संस्थानों में की, लेकिन जल्द ही वह एक सरकारी विद्यालय में तेलुगु शिक्षिका के रूप में स्थापित हो गईं. एक शिक्षिका के रूप में, उन्होंने अपने छात्रों के जीवन में बदलाव लाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हुए उन्हें न केवल पाठ्यक्रम के ज्ञान से बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों से भी सजग किया.
उनकी शिक्षण शैली में एक गहरी संवेदनशीलता और समाज के प्रति जागरूकता झलकती है, जो उन्हें छात्रों के बीच एक आदर्श बनाती है.एक लेखक के रूप में, सुजाना ने अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिक मुद्दों, भावनाओं और जीवन के विभिन्न पहलुओं को उकेरा है.
उनका पहला द्विभाषी कविता संग्रह "मौना बशपम" (2005) को काफी सराहना मिली और इसे साहित्यिक दुनिया में एक महत्वपूर्ण योगदान माना गया. उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाएँ और सामाजिक प्रासंगिकता से भरपूर कविताएँ मिलती हैं, जो न केवल व्यक्तिगत अनुभवों को बल्कि समाज की चुनौतियों और जटिलताओं को भी बयां करती हैं.
साहित्यिक पहचान और पुरस्कार
सुजाना रामम ने अपने लेखन और शिक्षा के जरिए कई महत्वपूर्ण साहित्यिक सम्मान प्राप्त किए हैं. उन्होंने साहित्य अकादमी, सार्क साहित्यिक सम्मेलन, कवियों की विश्व कांग्रेस और अखिल भारतीय लेखकों की बैठकों में सक्रिय रूप से भाग लिया है, और उनकी कविताओं को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सराहना मिली है.
उनका लेखन न केवल तेलुगु साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाता है, बल्कि यह दुनिया भर में साहित्यिक मंचों पर एक आधुनिक आवाज़ के रूप में उभर कर सामने आया है.सुजाना को उगादि पुरस्कार, मानसा, कलाज्योति, और कलांजलि जैसे साहित्यिक सम्मान मिले हैं.
इसके अलावा, उन्हें प्रसिद्ध ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता सी. नारायण रेड्डी से राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ. सार्क साहित्य सम्मेलन में छह बार उन्हें आमंत्रित किया गया और अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजा गया. इन पुरस्कारों और मान्यताओं ने उन्हें एक साहित्यिक प्रतिष्ठा दी है और उनके लेखन को व्यापक स्तर पर सराहा गया है.
ग्रामीण शिक्षा में योगदान
सुजाना रामम का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण शिक्षा को नई दिशा देना और तेलुगु भाषा के प्रति प्रेम को बढ़ावा देना है. उन्होंने अपने लेखन और शिक्षण के माध्यम से ग्रामीण छात्रों के बीच जागरूकता फैलाने और उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए कई पहल की हैं.
वह डिजिटल प्लेटफार्मों पर भी सक्रिय हैं, जहाँ वह तेलुगु को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न अभियान चला रही हैं. उनका मानना है कि शिक्षा और साहित्य के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है.
सुजाना रामम का जीवन एक प्रेरणा है, जो यह दिखाता है कि शिक्षा और साहित्य केवल ज्ञान देने के साधन नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए भी महत्वपूर्ण उपकरण हैं. उन्होंने अपने काव्य और शिक्षण के माध्यम से न केवल अपनी पहचान बनाई है, बल्कि ग्रामीण भारत में शिक्षा और साहित्य को नया जीवन भी दिया है.
सुजाना के अद्वितीय योगदान ने उन्हें एक ऐसी शख्सियत बना दिया है जो ग्रामीण शिक्षा, साहित्य और कला के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं.इनपुटः द न्यू इंडियन एक्सप्रेस