मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
रमजान का पाक महीना चल रहा है, और इस अवसर पर देशभर से सहरी, इफ्तार और नमाज की खूबसूरत तस्वीरें सामने आ रही हैं. ऐसे में एक युवा लड़की ने अपनी मेहनत और नेकियों से दिल्ली के जामा मस्जिद में एक अनोखा संदेश दिया है.
यह लड़की है नेहा भारती, जो पिछले तीन वर्षों से रमजान के महीने में जामा मस्जिद में रोजेदारों के लिए इफ्तार का आयोजन कर रही हैं. वह अपने इस नेक काम के जरिए न केवल हिंदू-मुसलमान भाईचारे का प्रतीक बन चुकी हैं, बल्कि समाज में एकता और मोहब्बत का संदेश भी फैला रही हैं.
नेहा भारती पुरानी दिल्ली के चावड़ी मोहल्ले की रहने वाली हैं . दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं. जब 2014 के बाद देश में एक विशेष समुदाय के खिलाफ नफरत और तनाव बढ़ने लगे, तो नेहा ने ठान लिया कि वह इस नफरत को मोहब्बत से हराएंगी.
उनका मानना है कि हमारे समाज में शांति और एकता बनाए रखने के लिए हमें एक-दूसरे के त्योहारों का सम्मान करना चाहिए और इंसानियत की सेवा में अपना योगदान देना चाहिए.नेहा ने अपनी इस सोच को वास्तविकता में बदलने के लिए जामा मस्जिद में इफ्तार का आयोजन शुरू किया.
वह रोजेदारों के लिए इफ्तार का आयोजन करती हैं, ताकि वे रमजान के पवित्र महीने में अपनी भूख और प्यास का मुकाबला कर सकें. पहले-पहल उन्होंने यह काम अकेले शुरू किया था, लेकिन अब उनके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य भी इस नेक काम में उनका साथ देते हैं.
नेहा का इफ्तार बांटने का तरीका बहुत ही अनोखा है. वह न केवल रोजेदारों के लिए इफ्तार तैयार करती हैं, बल्कि विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन लेकर आती हैं ताकि लोग एक ही चीज से बोर न हो जाएं.
यह प्रयास इस बात को दर्शाता है कि नेहा न केवल भोजन बांटने का काम करती हैं, बल्कि वह लोगों को एक-दूसरे के प्रति प्यार और समर्पण का अहसास भी दिलाती हैं.
उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें सोशल मीडिया पर भी व्यापक पहचान दिलाई है, जहां लोग उनकी सराहना कर रहे हैं और उनके इस नेक कार्य में सहायता भी प्रदान कर रहे हैं.
अब उनका यह इफ्तार आयोजन दिन-ब-दिन बड़ा होता जा रहा है और इसमें समाज के विभिन्न वर्गों के लोग योगदान देने के लिए आगे आ रहे हैं.
नेहा ने अपने माता-पिता का भी खास धन्यवाद किया, जिन्होंने इस नेक काम में उनका साथ दिया। वह बताती हैं, "मेरे माता-पिता हमेशा मुझे यह सिखाते रहे हैं कि नफरत में कुछ नहीं रखा.
हमें जितना हो सके, मोहब्बत बांटनी चाहिए." उनके परिवार ने भी इस काम में अपनी भूमिका निभाई है.घर पर स्वादिष्ट व्यंजन तैयार करने से लेकर इफ्तार तैयार करने तक, पूरा परिवार एकजुट होकर इस काम को अंजाम दे रहा है.
नेहा का मानना है कि रमजान का महीना केवल मुसलमानों के लिए नहीं है, बल्कि यह पूरी इंसानियत के लिए रहमत का महीना है. उनका कहना है, "हम सभी को एक-दूसरे के त्योहारों का सम्मान करना चाहिए और इंसानियत के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए." उनकी यह सोच देशभर में समाजिक एकता और भाईचारे के महत्व को उजागर करती है.
नेहा का यह भी मानना है कि दुनिया में नफरतें जितनी भी फैल जाएं, मोहब्बत हमेशा जिंदा रहेगी. वह कहती हैं, "दुनिया के जिस भी कोने में नफरत बढ़ी है, वह देश बर्बाद हो गया है. लेकिन जिन देशों में मोहब्बत है, वहां हमेशा शांति और समृद्धि बनी रहती है.यही कारण है कि मैं इस काम को जारी रख रही हूं."
शुरुआत में जब नेहा ने इस नेक काम की शुरुआत की थी, तो कई रिश्तेदारों और जानने वालों ने उनका मजाक उड़ाया था. लेकिन नेहा ने किसी की परवाह नहीं की और अपने रास्ते पर चलती रहीं। आज वह एक मिसाल बन चुकी हैं, जो न केवल अपने समुदाय के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं.
नेहा भारती का यह प्रयास हिंदू-मुसलमान भाईचारे की मिसाल बन चुका है. उनके इस नेक काम में कई हिंदू मित्रों ने भी सहयोग दिया है, जिन्होंने इफ्तार आयोजन में सहायता की और मोहब्बत के इस संदेश को फैलाने में योगदान दिया. यही कारण है कि नेहा का नाम आज हर किसी की जुबां पर है और लोग उनकी सराहना करते हैं.
नेहा भारती का इफ्तार बांटने का काम सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बन चुका है. वह न केवल धार्मिक एकता का प्रतीक हैं, बल्कि एकता, भाईचारे और मोहब्बत के महत्व को भी समाज में फैलाने का काम कर रही हैं/
उनके इस नेक काम से यह साबित होता है कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए किसी भी धर्म और जाति की सीमाओं को पार करना चाहिए. नेहा की यह पहल सचमुच प्रेरणादायक है और हमारे समाज को एकता और शांति का संदेश देती है.