आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के अध्यक्ष मौलाना हसनी नदवी का लंबी बीमारी के बाद गुरुवार को निधन हो गया.डालीगंज के नदवा मदरसा में इंतकाल से पहले नदवी लंबे समय से बीमार चल रहे थे. इलाज के लिए उन्हें रायबरेली से लखनऊ ले जाया गया था.
मौलाना राबे हसनी नदवी एक प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान और 2018 से पर्सन लाॅ बोर्ड के प्रमुख थे. वह भारत में इस्लामी शिक्षा और ज्ञान की उन्नति में योगदान के लिए जाने जाते हैं.
सैयद मोहम्मद राबे हसनी नदवी के बारे में जानिए डिटेल
मौलाना सैयद मोहम्मद राबे हसनी नदवी का जन्म 1 अक्टूबर, 1929 को टाकिया कलां, रायबरेली में सैयद रशीद अहमद हसनी और उम्मातुल अजीज के परिवार में हुआ. मोहतरमा उम्मातुल अजीज मौलाना सैयद अबुल अहसन अली नदवी उर्फ अली मियां नदवी की बहन थीं.
उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा रायबरेली में अपने परिवार के मकतब से पूरी की. 1958 में दारुल उलूम नदवतुल उलेमा, लखनऊ से फजीलत उत्तीर्ण की. उन्होंने 1957 में दारुल उलूम, देवबंद में एक वर्ष और वर्ष 1950-51 में शिक्षा और दावा के लिए हिजाज में बिताया.
उपलब्धियों से भरा जीवन
मौलाना सैयद मोहम्मद राबे हसनी एक प्रसिद्ध विद्वान हैं. वह मौलाना सैयद अबुल हसन अली नदवी उर्फ अली मियां (रहमतुल्लाह अली) के भतीजे हैं. 1949 में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें दारुल उलूम नदवतुल उलेमा में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया.
वे आगे की पढ़ाई और शोध के लिए 1950-1951 तक हिजाज में रहे. 1952 में उन्हें दारुल उलूम नदवतुल उलेमा, लखनऊ में सहायक प्रोफेसर नियुक्त किया गया. उन्हें 1955 में नदवा में अरबी विभाग का प्रमुख नियुक्त किया गया.
1970 में नदवा के अरबी संकाय के डीन नियुक्त किए गए. अरबी भाषा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें भारतीय परिषद उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. उसी वर्ष अरबी भाषा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.
1993 में उन्हें दारुल उलूम नदवतुल उलेमा का मुहतमिम (वाइस चांसलर) नियुक्त किया गया. 1999 में उन्हें नदवा का नायब नाजिम (चांसलर) नियुक्त किया गया और 2000 में मौलाना सैयद अबुल हसन अली नदवी (रहमतुल्लाह अली) की मृत्यु के बाद, उन्हें नदवा के नाजिम (रेक्टर) के रूप में चुना गया. पूर्व सदर हजरत मौलाना काजी मुजाहिदुल इस्लाम कासमी (रहमतुल्लाह अली) की मृत्यु के बाद जून 2002 में हैदराबाद में उन्हें सर्वसम्मति से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का अध्यक्ष चुना गया.
मौलाना ने लिखी हैं करीब 30 किताबें
उन्होंने जापान, मोरक्को, मलेशिया, मिस्र, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, उज्बेकिस्तान, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और कई अन्य अरब, यूरोपीय और अफ्रीकी देशों की यात्रा की है. उन्होंने कई अप्रकाशित कार्यों के अलावा उनकी अरबी में 15 पुस्तकें और उर्दू में 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. वर्तमान में वह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष हैं. वह विभिन्न संगठनों में भी कई संभालते हैं.
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आलमी रबिता अदब-ए-इस्लामी, रियाद के उपाध्यक्ष
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अध्यक्ष, मजलिस-ए-तहकीकत-ओ-नशरियत इस्लाम, लखनऊ
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अध्यक्ष, मजलिस-ए-सहफत-ओ-नशरियत, दारुल उलूम नदवतुल उलेमा, लखनऊ
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-अध्यक्ष, दीनी तालीमी परिषद, उत्तर प्रदेश
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-अध्यक्ष, दार-ए-अरफात, रायबरेल
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संस्थापक सदस्य, रबिता आलम-ए-इस्लामी, मक्का मुकरमा
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-सदस्य, दारुल मुसानफिन, आजमगढ़
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ट्रस्टी, ऑक्सफोर्ड सेंटर ऑफ इस्लामिक स्टडीज, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, यू.के.
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-संरक्षक, पायम-ए-इंसानिय
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संरक्षक, इस्लामिक फिक्ह अकादमी (भारत)
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अध्यक्ष, अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कई अन्य संगठनों के संरक्षक
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हजरत मौलाना सैयद मोहम्मद रबे हसनी की अध्यक्षता में बोर्ड का एक अधिवेशन मुंगेर में आयोजित किया गया.
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मौलाना सैयद मोहम्मद रबे हसनी की अध्यक्षता के दौरान कार्यकारी समिति की 3 बैठकें हो चुकी हैं.