फजल पठान
महाराष्ट्र के उत्तरी सोलापुर तालुका (जिला) के वडाला के ख्वाजा ताम्बो ने अपनी मां की मदद करने के लिए टेनिस बॉल क्रिकेट बैट का व्यवसाय शुरू किया, जो परिवार की एकमात्र कमाने वाली थीं और उनके इस काम ने उनका जीवन बदल दिया.
एक रसायन विज्ञान स्नातक ख्वाजा ने देखा कि उनके पिता की मानसिक बीमारी के कारण काम करने के लिए अयोग्य हो जाने के बाद, उनकी माँ परिवार का भरण-पोषण करने के लिए एक बाजार से दूसरे बाजार जाकर सामान बेचने जाती थीं. उन्होंने बताया, ‘‘पिछले 14 सालों से, मेरे पिता काम नहीं कर रहे थे. इसलिए मेरी माँ ने परिवार की देखभाल की. मैं पैसे कमाना चाहता था और अपनी मां की मदद करना चाहता था.’’
ख्वाजा को क्रिकेट से बहुत लगाव था, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इससे वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन जाएंगे. उन्होंने बताया, ‘‘मैं खिलाड़ियों के बल्ले से बहुत प्रभावित था. दुर्भाग्य से, जब काम की बात आई, तो उन्हें रसायनों से एलर्जी हो गई.’’
ख्वाजा कहते हैं, ‘‘मैंने कभी भी बल्ले बनाने के बारे में नहीं सोचा था.’’ उनका कहना है कि घर में आर्थिक तंगी की स्थिति को बदलने के लिए उन्होंने कई विकल्प आजमाए.
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे ग्राम पंचायत से एक दुकान मिली, जहां मैंने खेल के सामान का व्यवसाय खोला. मेरी मां ने कुछ पैसे बचाए थे, जो उन्होंने मुझे दिए. इस दुकान से मैंने विभिन्न कंपनियों के ट्रैक पैंट, टी-शर्ट और बल्ले बेचे.’’
ख्वाजा अपने परिवार के साथ उत्तरी सोलापुर तालुका के वडाला गांव में रहते हैं. उनके पिता अजमुद्दीन ताम्बो मोतियों और गहनों की पॉलिशिंग का व्यवसाय करते थे.
Khwaja Tambo oat his factory
करीब 14 साल पहले उन्हें पिता की मानसिक बीमारी का पता चला और तब से वे काम नहीं कर पाए. इस बीच, ख्वाजा की मां घरेलू सामान बेचती हैं और साप्ताहिक बाजार लगाती थीं.
ख्वाजा कहते हैं, ‘‘हालांकि मेरी पारिवारिक स्थिति कुछ हद तक स्थिर है, लेकिन मैंने बहुत सारी मुश्किलें देखी हैं. मेरे पिता अपनी बीमारी के कारण काम करने में असमर्थ हैं. मेरी मां अकेले काम करती हैं और हमेशा कड़ी मेहनत करती हैं. पढ़ाई के दौरान, मैंने जो भी काम उपलब्ध था, उसे किया और मदद करने की कोशिश की. वर्तमान में, मैं भी काम कर रहा हूं.’’
वे आगे कहते हैं, ‘‘सिर्फ इसलिए कि मैं गरीब था, इसका मतलब यह नहीं था कि मैं सपने नहीं देख सकता था. हर किसी को सपने देखने चाहिए. अपने सपनों को साकार करने के लिए, व्यक्ति को कड़ी मेहनत और लगन से काम करना चाहिए. ईमानदारी से किए गए प्रयास उन सपनों को पूरा करने की ओर ले जाएंगे.’’
अपने कारोबार की शुरुआत के बारे में बताते हुए ख्वाजा कहते हैं, ‘‘अपना व्यवसाय शुरू करने का मतलब चुनौतियों का सामना करना और उन्हें पार करके इसे चलाना भी है.’’ उन्होंने बताया, ‘‘मेरी मां ने मुझे पैसे दिए और मैंने ‘केटी बैट्स’ नाम से कारोबार शुरू किया. मैंने बैट बेचना शुरू किया. उस समय कुछ बड़ी कंपनियों ने कहा था कि वे तभी सामान देंगी, जब मैं बड़ी मात्रा में खरीदूंगा. हालांकि, उस समय मेरे पास पैसे नहीं थे. पैसे की वजह से कई चुनौतियां आईं. मैं दुकान में स्टॉक बढ़ाना चाहता था, लेकिन मैं कुछ नहीं कर सका.’’
ताम्बो ने बताया, ‘‘दुकान बढ़ाने के लिए पैसे जुटाने के लिए मैंने टी-शर्ट प्रिंटिंग का कारोबार शुरू किया. कई समूह त्योहारों के लिए टी-शर्ट ऑर्डर करते थे. मैंने अपने स्टिकर (बल्ले पर लगाने के लिए कंपनी के स्टिकर) बनाने के बारे में सोचा. मैंने बिना स्टिकर वाले बैट खरीदे और उन पर अपने स्टिकर लगा दिए. समस्या यह थी कि मेरे बनाए बैट ग्राहकों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते थे. नतीजतन, मैं पैसे नहीं कमा पाता था.’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं कुछ बड़ा करना चाहता था. बाजार में मिलने वाले बल्ले ग्राहकों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे थे, इसलिए मैंने बल्ले बनाने का फैसला किया. मेरी योजनाओं में पैसे की कमी एक समस्या थी. हालांकि, मैं किसी तरह पैसे जुटाकर कश्मीर गया, जहां मैं कुछ दिन रहा और बल्ले बनाने और उसमें इस्तेमाल होने वाली अलग-अलग तरह की लकड़ियों को देखा. मैंने बल्ले बनाने वाली मशीन चलाना सीखा. फिर मैं घर लौटा और मशीन खरीद ली. बल्ले बनाने का काम शुरू हुआ, तो ग्राहकों का तुरंत साथ मिलने लगा. मेरे बल्ले की बिक्री बढ़ गई और कारोबार चल निकला.’’
ख्वाजा की मां रशाद कहती हैं, ‘‘मेरे बेटे को क्रिकेट का शौक था. वह कड़ी मेहनत करता था और सबकी मदद करता था. उसका दृढ़ संकल्प देखकर मैंने उसे कारोबार शुरू करने के लिए अपनी सारी जमा पूंजी दे दी. ख्वाजा ने उन जमा पूंजी का अच्छे से इस्तेमाल किया और मेरी उम्मीदों पर खरा उतरा. मुझे उम्मीद है कि वह और भी सफल होगा.’’
कारोबार शुरू करने के लिए पढ़ाई की जरूरत होती है. ख्वाजा ने कारोबार शुरू करने से पहले पढ़ाई भी की. इस बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘जैसा कि पहले बताया गया है, मुझे क्रिकेट का शौक था, इसलिए मैं अलग-अलग जगहों पर क्रिकेट मैच देखता था. इस समय बाजार में नामी-गिरामी कंपनियां बैट बना रही हैं. हर कोई जानता है कि टेनिस बॉल क्रिकेट में कुछ आइकॉनिक खिलाड़ी हैं. उनके पास अलग-अलग कंपनियों के बैट हैं. मैं उन बैट को देखता था, उनके स्कूप के बारे में सोचता था और कंपनियों के बैट और मेरे बैट में अंतर देखता था. मैंने खिलाड़ियों के लिए जरूरी बैट के वजन और कौन से खिलाड़ी किस बैट का इस्तेमाल करते हैं, इसका भी अध्ययन किया.’’
ख्वाजा के बैट महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और झारखंड जैसे राज्यों के खिलाड़ियों को पसंद हैं. खिलाड़ी कस्टमाइज्ड बैट भी ऑर्डर कर सकते हैं.
उन्होंने बताया, ‘‘अपने अध्ययन के दौरान मैंने महसूस किया कि खिलाड़ियों को अलग-अलग तरह के बैट की जरूरत होती है. मेरा मतलब है कि अगर कोई खिलाड़ी मैदान के चारों ओर यानी 360 डिग्री पर खेलता है, तो उसे 970 ग्राम वजन वाले बैट की जरूरत होती है. ऐसा बैट सभी खिलाड़ी इस्तेमाल कर सकते हैं.’’
‘‘अगर कोई खिलाड़ी मैदान पर सिर्फ वी-शेप में खेलता है, तो उसे 1030 से 1050 ग्राम वजन वाले बल्ले की जरूरत होती है. उनके बल्ले का वजन निचले हिस्से में केंद्रित होना चाहिए.’’
वे कहते हैं, ‘‘मैंने गरीबी देखी है. कई बार खिलाड़ी घर पर ही रहते हैं, क्योंकि उनके पास नए बल्ले के लिए पैसे नहीं होते. अगर कोई खिलाड़ी ऐसी स्थिति में होता है, तो मैं उन्हें कम कीमत पर बल्ले उपलब्ध कराता हूँ. मैं नहीं चाहता कि पैसे की कमी की वजह से कोई खेलना छोड़ दे. मैं नए खिलाड़ियों को अपने स्टिकर वाले बल्ले देता हूँ. हाल ही में मैंने गुजरात के एक खिलाड़ी को प्लेयर एडिशन वाला बल्ला दिया.’’
अपनी योजनाओं के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, ‘‘मैं बल्ले के लिए कच्चा माल कश्मीर से मंगवाता हूँ. अभी मैं हर महीने 100 से 200 बल्ले बेचता हूँ. हर बल्ले की कीमत 2000 रुपये से शुरू होती है. ‘केटी एडिशन’ और ‘प्लेयर एडिशन’ के बल्ले की कीमत 3,500 रुपये है, जबकि ‘गोल्ड एडिशन’ के बल्ले की कीमत 1000-3000 रुपये तक है.’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘भविष्य में, मैं चाहता हूं कि मेरे बल्ले देश भर के विभिन्न राज्यों में उपलब्ध हों. मैं अपना ब्रांड बनाना चाहता हूं. मेरा सपना है कि हर राज्य में ‘केटी बैट्स’ स्टोर हों.’’