आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली
भारत के 76वें गणतंत्र दिवस समारोह में विशेष अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो नई दिल्ली पहुँच चुके हैं.वह इस समारोह में मुख्य अतिथि बनने वाले चौथे इंडोनेशियाई राष्ट्रपति हैं.इसके साथ ही, वह 26 जनवरी के ऐतिहासिक दिन में अपनी उपस्थिति से भारत और इंडोनेशिया के द्विपक्षीय संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं.
इंडोनेशिया से 352 सदस्यीय मार्चिंग और बैंड दल इस आयोजन में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली आ चुके हैं.यह दल भारतीय गणतंत्र दिवस की भव्य परेड में अपनी प्रस्तुति देगा, जो समारोह का एक अहम हिस्सा होगा.प्रबोवो सुबियांटो का भारत दौरा एक ऐतिहासिक घटना है, और इसे दोनों देशों के बीच बढ़ती दोस्ती और सहयोग का प्रतीक माना जा रहा है.
भारत-इंडोनेशिया संबंध: एक पुराना और सशक्त सहयोग
भारत और इंडोनेशिया के बीच रिश्ते सदियों पुराने हैं.यह रिश्ता हर साल और भी मजबूत होता जा रहा है.भारत ने इंडोनेशिया को अपनी स्वतंत्रता के बाद पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी थी.1940 के दशक के अंत में भारत ने इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन दिया था, और इसने दोनों देशों के बीच सहयोग को एक नई दिशा दी.
इंडोनेशिया के पहले गणतंत्र दिवस समारोह में, 26 जनवरी 1950 को, राष्ट्रपति सुकर्णो को भारत के गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था.इसके बाद, दोनों देशों के रिश्ते समय-समय पर मजबूत होते गए, और वर्तमान में इंडोनेशिया, भारत की एक्ट ईस्ट नीति के एक अहम भागीदार के रूप में उभरा है.
इंडोनेशिया आसियान (ASEAN) क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है, और 2023-24 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार का आंकड़ा 29.4 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है.
प्रबोवो सुबियांटो: एक धनी जनरल से राष्ट्रपति बनने तक की यात्रा
प्रबोवो सुबियांटो का राजनीतिक करियर बेहद दिलचस्प और जटिल रहा है.वह एक सेवानिवृत्त जनरल हैं और इंडोनेशिया के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से एक से ताल्लुक रखते हैं.उनका जन्म 1951 में हुआ था.वह सुमित्रो जोजोहादिकुसुमो के बेटे हैं, जो इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो और सुहार्तो के अधीन मंत्री रहे थे.
सुबियांटो का राजनीतिक जीवन कई विवादों से भरा रहा है, खासकर उनके सैन्य करियर और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों के कारण.1998 में, सुबियांटो को सेना से बाहर कर दिया गया था जब कोपासस सैनिकों ने सुहार्तो के राजनीतिक विरोधियों का अपहरण और प्रताड़ना की थी.
इस घटना ने उन्हें सियासी और सामाजिक आलोचना का सामना करना पड़ा. हालांकि, वे इस आरोप से कभी नहीं जुड़ पाए.इसके बावजूद, उन्होंने 2008 में अपनी पार्टी, गेरिंडा पार्टी की स्थापना की और धीरे-धीरे इंडोनेशिया के राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख भूमिका निभाई.
हालांकि उनके अतीत में कई विवाद हैं, लेकिन चुनावी राजनीति में उनकी पकड़ मजबूत रही है.2024 के राष्ट्रपति चुनाव में, उन्होंने 59% वोट हासिल किए और राष्ट्रपति जोको विडोडो के लोकप्रिय आर्थिक विकास योजनाओं को आगे बढ़ाने का वादा किया.
भारत-इंडोनेशिया रिश्तों में आगे का रास्ता
राष्ट्रपति सुबियांटो का भारत दौरा दोनों देशों के बीच साझा हितों, विशेष रूप से व्यापार, सुरक्षा, और सांस्कृतिक सहयोग में नई ऊर्जा का संचार करेगा.सूत्रों के मुताबिक, भारत और इंडोनेशिया के बीच सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर से दोनों देशों के संबंधों में और भी मजबूती आएगी.
सुबियांटो का नेतृत्व इस दिशा में अहम साबित हो सकता है, क्योंकि उन्होंने अपने अभियान में ऐसे ठोस कदम उठाने का वादा किया है जो दोनों देशों के नागरिकों के बीच स्थायी साझेदारी और मित्रता को प्रोत्साहित करेंगे.
इंडोनेशिया की एक्ट ईस्ट नीति के तहत, भारत और इंडोनेशिया की बढ़ती साझेदारी क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास में भी अहम भूमिका निभा सकती है.भारत और इंडोनेशिया के रिश्तों में बढ़ती दोस्ती और सहयोग दोनों देशों के लिए एक उज्जवल भविष्य की ओर इशारा करती है, जिसमें अधिक व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और साझा सुरक्षा के अवसर पैदा होंगे.
प्रबोवो सुबियांटो का भारत दौरा, उनके देश के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत है.उम्मीद की जा रही है कि यह यात्रा भारत-इंडोनेशिया संबंधों को नए आयाम पर पहुंचाएगी.