ख़ालिक़ हुसैन परदेशी: उर्दू का एक शायर जो समाज को जोड़ता है

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 29-12-2024
Khaliq Hussain Pardesi: An Urdu poet who connects society
Khaliq Hussain Pardesi: An Urdu poet who connects society

 

सेराज अनवर/पटना

"इक हुस्न-ए-सरापा है मेरे यार ग़ज़ल में

आशिक़ न करे क्यों तिरा दीदार ग़ज़ल में
इंकार में मख़मूर निगाहों का असर है
हर शे'र नज़र आता है सरशार ग़ज़ल में
अब मेरे तसव्वुर में नहीं कोई अंधेरा
बिखरे हैं तिरे हुस्न के अनवार ग़ज़ल में
अशआ'र में अब सिर्फ़ सियासत की ही बातें
कम हो गया ज़िक्र-ए-लब-ओ-रुख़्सार ग़ज़ल में
रुस्वा कोई हो जाएगा 'परदेसी' समझ ले
अच्छा नहीं यूं इश्क़ का इज़हार ग़ज़ल में."

यह ग़ज़ल उस शायर ख़ालिक़ हुसैन परदेशी की है, जिनकी शायरी न केवल ग़ज़ल की दुनिया में प्रसिद्ध है, बल्कि वह समाज में आपसी भाईचारे, गंगा-जमुनी तहजीब और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक भी हैं.वह एक ऐसे शायर हैं, जो इश्क़ और मुहब्बत की बात करते हुए संस्कृत और रामायण का ज्ञान रखते हैं, और छठ के गीत गाकर अपने समुदाय की धार्मिकता और संस्कृति को सम्मानित करते हैं.

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ख़ालिक़ हुसैन परदेशी का जीवन और उनका योगदान

ख़ालिक़ हुसैन परदेशी का जन्म 5 अक्टूबर, 1956 को बिहार के गया जिले के एक छोटे से क़स्बे में हुआ था.उनका असल नाम ख़ालिक़ हुसैन है, लेकिन वह उर्दू साहित्य की दुनिया में 'परदेशी' के नाम से जाने जाते हैं.वह शायरी के साथ-साथ राम कथा भी पढ़ते हैं, उर्दू के साथ-साथ संस्कृत और हिंदी के भी जानकार हैं.

परदेशी की शायरी में विशेष रूप से ग़ज़ल का रस और भावनाओं का अद्भुत मिश्रण मिलता है.वह न केवल उर्दू शायरी के शायर हैं, बल्कि उन्होंने अपनी शायरी को भारतीय संस्कृति और समाज के लिए एक सशक्त संदेश भी बनाया है.जब समाज में नफरत और असहिष्णुता फैलाने की कोशिशें हो रही हैं, तब उनकी शायरी एकजुटता, प्रेम और सौहार्द का प्रतीक बनकर सामने आई है.

गंगा-जमुनी तहजीब और धार्मिक समरसता

परदेशी का जीवन गंगा-जमुनी तहजीब का जीवित उदाहरण है.वह बचपन से ही अपने गांव के मंदिरों में भाग लेते थे और वहां के 'कीर्तन' में हिस्सा लेते थे.इस दौरान, उन्होंने संगीत वाद्ययंत्र 'झाल' बजाना शुरू किया और यहीं से उनकी रचनात्मकता का शिलान्यास हुआ.

उनका यह जुनून गांव के पंडित रामेश्वर मिश्रा ने बढ़ावा दिया, जिन्होंने उन्हें वाल्मीकि की रामायण पढ़ने और लिखने में मदद की.इसके बाद, उन्होंने रामायण, राधे श्याम रामायण और कई अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और उनके आधार पर अपनी रचनाएँ लिखनी शुरू की.

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वह न केवल उर्दू में शायरी करते थे, बल्कि उन्होंने नाअत ए रसूल और हमद बारी त'आला भी लिखी, जिनमें उनकी मोहब्बत और अख्लास साफ़ झलकती है.यही कारण है कि उनका लेखन हिंदू समुदाय में भी बहुत सराहा जाता है.छठ के गीत गाते हुए उनका भक्ति भाव पूरी तरह से डूब जाता है और उनका गायन एकता और सौहार्द का प्रतीक बन जाता है.

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राम कथा और छठ गीतों में योगदान

परदेशी ने राम कथा और छठ गीतों को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया है.1980 से लेकर 1995 तक, वह नियमित रूप से राम कथा और छठ गीत गाते रहे.उनका यह कार्य केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं था, बल्कि यह समाज में एकता और भाईचारे का संदेश देने का एक तरीका था.

हालांकि, 1995 में नक्सलवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण उनका राम कथा पढ़ने का सिलसिला रुक गया.नक्सलियों ने राम कथा और चौपाई पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि वे चाहते थे कि परदेशी नक्सलवाद के प्रचार में कविताएं पढ़ें.इससे प्रभावित होकर परदेशी को अपना गांव छोड़ना पड़ा, लेकिन उनका विश्वास और समर्पण अपनी धार्मिकता और सांस्कृतिक धरोहरों को लेकर कभी कमजोर नहीं पड़ा.

भविष्य में समाज को जोड़ने का कार्य

आज, ख़ालिक़ हुसैन परदेशी अपने शायरी और राम कथा के माध्यम से समाज को जोड़ने का काम कर रहे हैं.उनका यह मानना है कि यदि लोग अपने धर्म, संस्कृति और भाषा से बाहर निकलकर एक दूसरे के विश्वासों का सम्मान करें तो समाज में शांति और प्रेम का वातावरण पैदा हो सकता है.वह यह भी मानते हैं कि आजकल के समाज में यह बहुत ज़रूरी है कि लोग अपने धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन से बाहर निकलकर एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा दें.

ख़ालिक़ हुसैन परदेशी का कार्य केवल शायरी तक सीमित नहीं है.वह एक बहुभाषी कवि, शायर और लेखक हैं, जो हिंदी, संस्कृत, उर्दू और मगही के जाने-माने कवि हैं.उनके द्वारा रचित सैकड़ों गज़लें, गीत और कविताएं समाज में एक सकारात्मक संदेश फैलाती हैं.उन्होंने भारतीय संस्कृति को अपनी शायरी, लेखन और गायन के माध्यम से सम्मानित किया है और वह अपने योगदान से भारतीय साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में एक अद्वितीय स्थान बना चुके हैं.

समाज के लिए संदेश

ख़ालिक़ हुसैन परदेशी का कहना है कि आज के समय में हमें अपनी संस्कृति, धर्म और भाषा के बीच के भेद को मिटाकर एकता की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए.उनका मानना है कि अगर हम सभी मिलकर एक-दूसरे के धर्म और विश्वास का सम्मान करेंगे, तो समाज में नफरत और असहमति की कोई जगह नहीं होगी.वह मानते हैं कि साहित्य, संगीत और शायरी का सही उपयोग समाज को जोड़ने के लिए किया जा सकता है, और यही उनकी सबसे बड़ी सफलता है.

आजकल के समय में जब साम्प्रदायिक तनाव और धार्मिक भेदभाव बढ़ रहा है, ऐसे समय में ख़ालिक़ हुसैन परदेशी जैसे शायर और लेखक समाज में शांति और एकता का संदेश देते हैं, जो कि समाज को सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है.