600 साल बाद भी प्रासंगिक हैं सूफी संत कबीरदास: हाशिम रज़ा जलालपुरी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 22-06-2024
Kabir is relevant even after 600 years: Hashim Raza Jalalpuri
Kabir is relevant even after 600 years: Hashim Raza Jalalpuri

 

साकिब सलीम

संत कवि कबीर के पदों का उर्दू शायरी में अनुवाद करने वाले युवा साहित्यकार हाशिम रज़ा जलालपुरी ने कहा कि कबीर 21वीं सदी में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने 15वीं सदी में थे. कबीर के पदों का यह अनुवाद, पुस्तक के रूप में "कबीर उर्दू शायरी में (नग़मा-ए-फ़हम-ओ-ज़का)" के नाम से हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है.

हाशिम रज़ा जलालपुरी ने बताया कि दुनिया को अगर किसी चीज़ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है तो वो मोहब्बत और इंसान-दोस्ती है. कबीर मोहब्बत और इंसान-दोस्ती के अन्तर्राष्ट्रीय प्रचारक हैं इसलिये उनकी रचनाओं को लोगों तक पहुँचनी चाहिए जिससे विभिन्न संप्रदायों के मानने लोगों के बीच की दूरियों को कम किया जा सके. हिंदुस्तान संतों, सूफ़ियों और महात्माओं का देस है. इस देस की मिट्टी में न जाने कितने संतों, सूफ़ियों और महात्माओं ने जन्म लिया और अपनी तालीमात के दीपक से लोगों के दिलों की दहलीज़ पर मोहब्बत और इंसान-दोस्ती के चराग़ रोशन किये. संत, सूफ़ी या महात्मा किसी मज़हब, मसलक या मकतब-ए-फ़िक्र के नुमाइंदे नहीं होते बल्कि मोहब्बत और इंसानियत के पैरोकार होते हैं, जिनकी शख़्सियत और ज़िंदगी मज़हब की तफ़रीक़ और ज़ात-पात के झगड़ों से पाक होती है. 
 
कबीर भक्ति आंदोलन की साझा संस्कृति के अलमबरदार हैं, जिनकी नज़र में राम और रहीम एक हैं. कबीर की शायरी गंगा जमुना का हसीन संगम है. उनके कलाम में भक्ति और तसव्वुफ़ दोनों का रंग यकजा दिखाई देता है. कबीर के नज़दीक इंसानों के दरमियान तफ़रीक़ बे-मा’नी है, न कोई आला है न कोई अदना, सब एक ही ख़ुदा के बंदे हैं और बंदों में तफ़रीक़ कैसी? हिंदुस्तान की तारीख़ में जिन लोगों ने इंसानी बिरादरी को एक करने और उनमें इत्तिफ़ाक़-ओ-यकजहती पैदा करने की कोशिश की उन में कबीर का नाम सर-ए-फ़ेहरिस्त है. हाशिम रज़ा जलालपुरी ने कहा कि मेरे उस्ताद-ए-मोहतरम पद्मश्री अनवर जलालपुरी साहब ने श्रीमद् भगवत गीता को उर्दू शायरी में ढाल कर गंगा जमुनी तहज़ीब के फ़रोग़ का जो सिलसिला शुरू किया था कबीर उर्दू शायरी में (नग़मा-ए-फ़हम-ओ-ज़का) उसी सिलसिले की एक कड़ी है. 
 
हाशिम रज़ा जलालपुरी ने रूहेलखंड यूनिवर्सिटी बरेली से बी.टेक और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़ से एमटेक की डिग्री हासिल की. इस समय राजकीय पॉलीटेक्निक रामपुर में लेक्चरर के पद पर सेवाएं दे रहे हैं. पूर्व में हाशिम रज़ा जलालपुरी चोन्नम नेशनल यूनिवर्सिटी दक्षिण कोरिया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और रूहेलखंड यूनिवर्सिटी बरेली में कार्य कर चुके हैं. मीराबाई लोक साहित्य सम्मान 2021, गंगा जमुनी तहज़ीब सम्मान, उर्दू रत्न और फाखिर जलालपुरी सम्मान 2019 से सम्मानित हो चुके हैं. आज हाशिम रज़ा जलालपुरी अपनी शायरी और निज़ामत के हवाले से मुशायरों और कवि सम्मेलनों में जाना पहचाना नाम हैं मगर कबीर के पदों को उर्दू शायरी में अनुवाद करने का कारनामा हाशिम रज़ा जलालपुरी को अपने दौर के शायरों से अलग करता है.
 
आयरलैण्ड में भारतीय राजदूत श्री अखिलेश मिश्र जी अपने शुभकामना संदेश में कहा कि मैं प्रिय हाशिम रज़ा जलालपुरी को इस प्रयास के लिए हृदय से बधाई देता हूँ और उनकी निरन्तर सफलता के लिए दुआ करता हूँ. मुझे आशा है कि कबीर के पदों के माध्यम से हाशिम रज़ा जलालपुरी जी की पुस्तक भारतीय समाज में आपसी समझदारी और सहयोग, शांति और सौहार्द की भावना को मज़बूत करेगी.
 
पद्म भूषण चिन्ना जीयर स्वामी जी ने अपने आशीर्वाद संदेश में कहा कि हाशिम रज़ा जलालपुरी का हृदय इन भक्ति आंदोलन प्रेरकों की रहस्यमय भक्ति से अभिभूत है. . हाशिम ने अपनी पिछली पुस्तक के माध्यम से भगवान कृष्ण के प्रति मीराबाई की भक्ति को अपने उर्दू भाषी भाइयों के साथ साझा किया. अब वह संत कबीर की भक्ति को कबीर उर्दू शायरी में (नग़मा-ए-फ़हम-ओ-ज़का) नामक एक अन्य पुस्तक के माध्यम से साझा कर रहे हैं.