‘ बॉर्डरलेस दुनिया ’ की दिलचस्प कहानी: ‘कश्मीर के मसीहा ’ को सेना और आतंकवादी क्यों बार बार उठा ले जाते थे ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-08-2023
Interesting story of 'Borderless Duniya' and founder adhik
Interesting story of 'Borderless Duniya' and founder adhik

 

छाया काविरे

सीमाएँ केवल राज्यों या देशों की नहीं होती बल्कि राजनीति भी होती हैं. युद्ध और धार्मिक संघर्ष की जड़ मतलब सीमाएँ. सत्ता और नियंत्रण के लिए युद्ध होते है और उससे देश के भीतर नफरत बढ़ती है. इस 'पॉवर प्ले' में  पिस जाते है निष्पाप और निरपराध. खासकर सीमावर्ती इलाकों के लोग. महाराष्ट्र के एक किसान के बेटे ने ऐसे ही एक सीमावर्ती इलाके में सैकड़ों अनाथ लड़कियों के रहने खाने और तालीम का जिम्मा उठाया. जम्मू-कश्मीर में हुई विभिन्न झड़प में अनाथ हुई लड़कियों की मदद करने वाला यह बहादुर इंसान है ‘अधिक कदम’!  

यह कहानी है जात-पंथ-धर्म-सीमाओं से परे जाकर कश्मीरी  लड़कियों को ममता और प्यार से भरा ‘घर’ देनेवाले अधिक कदम की.भारत में सीमाओं के मुद्दे कभी भी पूरी तरह सुलझते नजर नहीं आते. इसके कारण अब तक हजारों बच्चे बिना किसी गलती के अनाथ हो चुके हैं.

एक अध्ययन के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में संघर्ष के कारण लगभग तीन लाख बच्चे अनाथ हो चुके हैं. अधिक कश्मीर जाकर ऐसे ही मुठभेड़ों में मारे गए आतंकियों की बेटियों को शिक्षा देते हैं. उन्होंने आतंकियों की 200 से ज्यादा बेटियों को गोद लिया है. उनकी शिक्षा, रोजगार, शादी में पिता की भूमिका निभा रहे हैं.

जी हाँ... एक गैर-कश्मीरी व्यक्ति, एक गैर-मुस्लिम व्यक्ति... एक ऐसा व्यक्ति जिसका सीमावर्ती राज्यों से कोई लेना देना नहीं.महाराष्ट्र के एक सामान्य परिवार का एक व्यक्ति... अपना संपूर्ण जीवन इन लड़कियों के उज्जवल भविष्य के लिये समर्पित कर देता है. अधिक ने इन लड़कियों के लिए एक घर बनाया है . जहां वे सुरक्षित महसूस करती हैं.एक ऐसी जगह जहां कोई सीमा नहीं.कोई पूर्वग्रह नहीं है.

अधिक 'बॉर्डरलेस दुनिया' के विचार को आगे बढाते हुए 2004 में 'बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन' नाम से एक संस्था शुरू की. यह संस्था वर्तमान में भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच के संघर्षग्रस्त सीमा क्षेत्र, यानी जम्मू और कश्मीर में काम करती है. यह संस्था न केवल लड़कियों को सुरक्षित आश्रय प्रदान करती है,प्यार, सहायता, स्वास्थ्य, देखभाल और शिक्षा भी प्रदान करती है.

सत्रह वर्षीय अधिक के जीवन का टर्निंग पॉइंट

अधिक का जन्म 1977 में अहमदनगर (अहिल्यानगर) जिले के श्रीगोंदा तालुका में हुआ था. उनके माता-पिता सदाशिव और विमल किसान हैं. अधिक के पिता अपने बेटे को बेहतर शिक्षा के अवसर देने के लिए पुणे में स्थलांतरित हुए.

कॉलेज में अधिक की दोस्ती कुछ कश्मीरी छात्रों से हुई. राजनीति विज्ञान के छात्र होने के नाते, वह हमेशा कश्मीर के मुद्दों पर जागरूक रहते थे. उन्होंने एक बार कश्मीर के 15 दिवसीय शोध दौरे में भाग लिया; लेकिन वहां के माहौल को करीब से देखने के लिए वह करीब चार महीने तक वहां रुके.

उन्होंने आतंकवाद से त्रस्त सीमावर्ती क्षेत्रों में कई दुर्भाग्यपूर्ण, भयानक घटनाओं का प्रत्यक्ष अनुभव लिया.दोनों देशों के बीच नफरत और उससे पैदा होने वाली समस्याएं, सीमा मतभेदों को लेकर लड़ाई; परिणामस्वरूप भय, अराजकता, अलगाव की भावना और अनाथ बच्चों और विधवा युवा महिलाओं के लिए सामाजिक-आर्थिक बाधाएं. इन सभी घटनाओं ने अधिक के युवा, संवेदनशील दिमाग पर गहरा प्रभाव डाला.

अधिक कहते हैं, ''कश्मीर में रहने के दौरान मैंने कई लोगों को मारा जाते हुए देखा. इस खून से लथपथ संघर्ष के सबसे बड़े शिकार वे बच्चे हैं जो इस माहौल में बड़े होते हैं.”'सेव द चिल्ड्रन' संस्था के मुताबिक, 2014 में जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में दो लाख 15 हजार बच्चे अनाथ हो गए. इनमें से 37 प्रतिशत बच्चों ने अपने माता-पिता को आतंकवाद के कारण खो दिया है.

अपने करियर की शुरुआत में, अधिक ने कई संगठनों के लिए स्वयंसेवक के रूप में काम किया. कारगिल युद्ध के दौरान, अधिक ने उन शरणार्थियों के लिए काम किया, जिन्हें कारगिल, बटालिक और द्रास सेक्टरों में जबरन युद्ध के कारण अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था. बाद में वह यूनिसेफ के प्रोजेक्ट 'जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित बच्चे' में भी शामिल हुए.

कुछ महीने बाद अधिक अपनी अंतिम परीक्षा देने के लिए पुणे लौटे, लेकिन उन्हें रहा नही गया. वह सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से पीड़ित लोंगो की मदद के लिए कश्मीर वापस चले गए. इस बीच उन्होंने राजनीति विज्ञान में मास्टर की पढ़ाई पूरी की. हालाकी उनका जन्मस्थान महाराष्ट्र है, लेकीन उनकी कर्मभूमी कश्मीर बनी. कोई भी निश्चित उत्पन्न, घर या परिवार न होने के बावजूद उन्होंने कश्मीर में रहने का फैसला किया.

1997 में अधिक ने कुपवाड़ा जिले के 369 गांवों का सर्वेक्षण किया. इसी बीच उन्हें एहसास हुआ कि अकेले कुपवाड़ा जिले में ही करीब 24 हजार लोग अनाथ हैं. इनमें अधिकतर लड़कियां हैं. वहाँ अनाथों के लिए आश्रय गृह थे, लेकिन लड़कियों के लिए ऐसी कोई सुविधा नहीं थी.

अधिक कहते हैं, “पुरुष प्रधान समाज में लड़कियों का तेजी से विकास होना मुश्किल है. कश्मीर में बच्चों के लिए कुछ संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन सुरक्षा के कारणों से कोई भी लड़कियों की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं.कश्मीर घाटी का अनुभव लेने के बाद, अधिक के मन में एक ही ज्वलंत विचार आया कि, 'कश्मीर की लड़कियों के लिए कुछ करना चाहिए.'


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अधिक को उठाकर ले गये आतंकवादी !

2002 में कुपवाड़ा के एक अनाथ लड़की के हाथो 'बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन' के घर का उद्घाटन हुआ. चार लड़कियों से शुरू हुई यह संस्था आज सैकड़ों लड़कियों का घर हो चुकी है.अधिक कहते हैं, “कश्मीर में एक संस्था स्थापित करना कठिन काम था.

खासकर स्थानीय लोगों को  भरोसा दिलाना  मुश्किल था. मुझे अक्सर दोनों पक्षों कि सेनाएँ उठा ले जाती थीं.उन्हें लगता था कि मैं उनके लिए जासूस के रूप में काम कर रहा हूँ. लेकिन, मेरे द्वारा किए गए काम की पुष्टि करने के बाद वो मुझे छोड देते.''

पिछले 15 सालो में, आतंकवादियों ने अधिक का 19 बार अपहरण किया है, लेकिन हर बार उसके काम कि पुष्टी करणे के बाद उसे सुरक्षित छोड दिया. इस बारे में विस्तार से बताते हुए अधिक कहते हैं, “स्थानीय लोगों की मदद के बिना मेरी सुरक्षा संभव नहीं है. स्थानीय लोगों ने मुझे आर्थिक मदद के साथ सुरक्षा भी मुहैया करायी. कश्मीर में उदारता कूट-कूट कर भरी है. दुर्भाग्य से, लोग शायद कभी इसका अनुभव करने की कोशिश करते हैं.

अधिक आगे कहते हैं, "एक बार जब आप इतना आतंक और दर्द देखते हैं, तो मृत्यु का डर अपने आप ही गायब हो जाता है.आप ऐसे अनुभवों के प्रति 'प्रतिरक्षित' हो जाते हैं!"

स्थानीय मौलवी ने जारी किया फतवा

कुपवाड़ा में संस्थान शुरू करने के तुरंत बाद, एक स्थानीय मौलवी ने अधिक के खिलाफ फतवा जारी किया, जिससे लोगों को अधिक पर सामाजिक बहिष्कार डालने के लिए प्रेरित किया गया. मौलवी का कहना था कि, 'अधिक हिंदू हैं. वह जम्मू-कश्मीर के बाहर का आदमी है. ” हालाँकि, अधिक ने इस विवाद में पड़े बिना काम आगे बढ़ाने का फैसला किया.

उसके पिता मुठभेड़ में मारे गए


2007 में शाजिया खान के पिता एक एनकाउंटर में मारे गए थे. वे आतंकवादी थे. हमारे समाज में काम के लिए बाहर जाने वाली महिलाओं की संख्या अभी भी कम है. इस वजह से शाज़िया कि मां के लिए अपनी बेटी को पालना मुश्किल था.

इसलिए अधिकने शाजिया को 'बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन' में भर्ती कर लिया. शाज़िया अब 19 साल की हैं. वह फिलहाल महाराष्ट्र में होमिओपॅथी की पढ़ाई कर रही हैं. वह कश्मीर के अनंतनाग जिले से हैं, जो दशकों से संघर्ष से जूझ रहा है. उसकी मां ने नब्बे के दशक का एक उतार-चढ़ाव भरा दौर झेला है. इस दशक में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों का जन्म हुआ.


'इतना खुश इससे पहले कभी नहीं थी...!'

सोलह साल की रजिया मलिक कहती हैं, “मैं पहले कभी इतनी खुश नहीं थी. मेरे मां की दूसरी शादी के बाद मुझे एक रिश्तेदार के घर फिर कुछ दिनो बाद दूसरे रिश्तेदार के घर भेजा जाता था, इसलिए मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाती थी. मैं कभी भी अपनी माँ के नए घर नहीं गई, लेकिन वह नियमित रूप से मेरे इस नए घर में मुझसे मिलने आती हैं."

रजिया के पिता एक आतंकवादी थे.वह कहती हैं, ''मुझे इस बात का बहुत बुरा लगता है. मैं कश्मीर में हो रहे अत्याचारों से अवगत हूं; लेकिन हिंसा इसका जवाब नहीं है."

और स्वयंसेवक, आर्थिक सहायता मिलनी शुरू हुई

'बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन' के बारे में पूरी घाटी में बात फैलने के बाद, अधिक को स्वयंसेवक और आर्थिक सहायता मिलने लगी. उन्होंने अनंतनाग, बीरवाह और जम्मू में ऐसे ही घर बनाये और संस्था का विस्तार किया. बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन के चार घरों में वर्तमान में लगभग 200 लड़कियों की देखभाल की जा रही है. इन सभी लड़कियों ने मुठभेड़ में अपने माता-पिता को खोया है. ये घर कंप्यूटर से सुसज्जित हैं. यहा लड़कियों के खेलने के लिए बगीचे भी हैं.

महिला विकास केंद्र : 'राह-ए-निस्वां'

अधिक ने लड़कियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया है; ताकि उन्हें आगे चलके बेरोजगारी और भुखमरी की नौबत न आये. इनमें से कुछ लड़कियां अब कुपवाड़ा में अपने घर के बगल में एक बिजनेस सेंटर भी चलाती हैं.


लड़कीया इस विकास केंद्र में यानी 'राह-ए-निस्वान' (महिला मार्ग) में सैनिटरी नैपकिन, कढ़ाईवाले कपड़े, फैब्रिक-पेंटिंग आदि बनाती हैं. बांदीपोरा और बारामूला में शुरू किए गए केंद्र में सुईवर्क, बुनाई, विभिन्न कंप्यूटर पाठ्यक्रम, फोटोग्राफी आदि जैसे कला-कौशल सिखाये जाते हैं.

इनमें से कई युवतियां अब उद्योजक बन चुकी हैं. उद्योग और व्यवसाय में उनकी प्रतिभा के लिए उन्हें विभिन्न पुरस्कार भी मिल रहे हैं. यह पूरे कश्मीर में महिलाओं के लिए एकमात्र व्यापार केंद्र है.

आतंकी ने अपनी ही बेटी को भेजा संस्थान

2006 में एक आतंकवादी अपने दो साथियों के साथ बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन के घर में घुस गया. जांच शुरू कर दी. उन्होंने सुविधाओं के बारे में सवाल-जवाब किये. अधिक को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि वह आतंकवादी है, लेकिन यह बात अन्य कर्मचारियों को पता थी.

ऐसे में जब तीन आतंकी अंदर घुसे तो बाकी कर्मचारी डर गए. हालांकि, कुछ देर बाद ही आतंकी वहां से चले गए. उसके बाद लगभग आठ-दस महीनो बाद एक महिला ने बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन के मैनेजर से संपर्क किया. उनकी बेटी को संस्था के घर में भर्ती कराने के लिए विनती की.' यह महिला एक आतंकवादी की पत्नी थी.

उस दिन बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन के घर जाकर आतंकी ने अपनी पत्नी से कहा था, ''अगर मैं मुठभेड़ में मारा गया तो अपनी बेटी के लिए बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन से संपर्क करना.'' उनकी बेटी आज 11 साल की है. वह 'बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन' के घर में रहकर पढ़ाई कर रही है.ह बेहद खुश है.

विभिन्न राज्यों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं लड़कियां

'बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन' की आठ-दस लड़कियां वर्तमान में भारत के विभिन्न राज्यों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, जबकि कुछ लड़कियां स्थानीय स्तर पर व्यवसाय कर रही हैं. अधिक कहते हैं, ''इन लडकियो के साथ के अनुबंध को शब्दों में बयां करना मुश्किल है.

मैंने इन लड़कियों के कपड़े धोए हैं, उनके बालों में कंघी की है. मैं उनका दोस्त, भाई, टीचर बना हूं. जब एक लड़की की शादी हुई तो मुझे लगा कि मैं अब उसका पिता भी बन गया हूं.”

बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन ने पिछले पांच वर्षों में कश्मीर घाटी में 700 से अधिक लड़कियों को शिक्षित और सशक्त बनाया है. अधिक कहते हैं, “मुझे लगता है कि 200 अनाथ लड़कियों को गोद लेने से कश्मीर कि समस्या पूरी तरह से हल नहीं होगी. मेरा मानना है कि यही लड़कियां एक दिन ऐसे ही अच्छे विचारों वाले लड़के-लड़कियों को बड़ा करेंगी. यह एक धीमी प्रक्रिया है, लेकिन इसे कहीं न कहीं से तो शुरू करना ही था."

'हम अधिक भैय्या जैसे लोगो की मदद करेंगे'

जब इन लड़कियों से पूछा जाता है कि 'आप भविष्य में क्या करना चाहती हैं?' तो वे जो जवाब देती हैं, उससे अधिक के सपनों को बल मिलता है. उनका जवाब होता है, ''हम अधिक भैय्या की तरह कश्मीर के लोगों की मदद करेंगे. उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद हम वापस कश्मीर जायेंगे. कश्मीर के और अधिक बच्चों को पढाई के ऐसे अवसर प्रदान हो इसलिये हम प्रयास करेंगे."

अधिक कहते हैं, “जब एक लड़की शिक्षित और आर्थिक रूप से स्थिर हो जाती है,जब उसकी शादी हो जाती है और उसका एक परिवार होता है, तो वह अपने मूल्यों और विचारधारा के माध्यम से पूरे परिवार को प्रभावित करती है. इस प्रकार यह सकारात्मक सामुदायिक विकास और राष्ट्रीय मूल्य प्रणाली का समर्थन करता है. ये वे 'बीज' हैं जिन्हें मैं शांति स्थापित करने के लिए बो रहा हूँ!"

हालांकि यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है. अधिक का मानना है कि जम्मू-कश्मीर के बिखरे हुए समुदायों के बीच शांति की भावना पैदा करने का यही एकमात्र तरीका है.

युवाओं की दृष्टि वापस लाने के लिए आरोग्य सेवा

महिलाओं में कैंसर, उच्च रक्तदाब और मधुमेह जैसी बीमारियों का पता लगाने के लिए फाउंडेशन  स्क्रीनिंग और अवलोकन शिविर आयोजित करता है. पिछले 20 वर्षों में 500 से अधिक चिकित्सा शिविर आयोजित किए गए हैं.

अधिक ने पैलेट गन हमले में पकड़े गए 1,400 युवाओं में से 1,270 युवाओं की दृष्टि वापस लाने के लिए  प्रयास किया है. अगर ऐसे युवाओं की ठीक से देखभाल न की जाए तो उनकी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है.

अधिक ने इन जटिल सर्जरी को करने के लिए मुंबई और दक्षिण भारत से 13 नेत्र रोग विशेषज्ञों की एक टीम की व्यवस्था की. इलाज न किए जाने पर, ये पीड़ित युवा  भविष्य में और अधिक नफरत और हिंसा के चक्र में फंस जाते.


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प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य

प्राकृतिक आपदाओं के दौरान 450 से अधिक गांवों में बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन द्वारा आपदा-प्रबंधन सहायता भी प्रदान की गई है. भारतीय सेना की मदद से अलग अलग इलाकों में 21 एंबुलेंस तैनात हैं. यह पहल 10 जिलों के तीन लाख से अधिक लोगों के स्वास्थ्य का ख्याल रख रही है.

'उड़ान शाला' एवं पुनर्वास केन्द्र

'उड़ान वाला' और पुनर्वास केंद्र कुपवाड़ा जिले के ड्रगमुल्ला में विशेष लोगों के लिए चलाई जाने वाली एक स्कूल है. स्कूल की शुरुआत 2010 में भारतीय सेना द्वारा की गई थी. सितंबर 2019 में इसे 'बॉर्डरलेस वर्ल्ड फाउंडेशन' को सौंप दिया गया.

यहां मरीजों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा करने का प्रयास किया जाता है. कश्मीर में एक विकलांग संगठन के सर्वेक्षण के अनुसार, कुपवाड़ा जिले में 38,000 से अधिक विकलांग लोग हैं.

गौर करनेवाली बात

अगर दाहिना हाथ मदद करे तो बाये हाथ को भी पता ना चल पाये. इस पंक्ति कि तरह अधिक अपना सामाजिक कर्तव्य निभाते हुए खुद को सुर्खियों से दूर  है. लेकिन अब तक कई संस्थाओं और संगठनों ने उनके काम को सराहा  है.

अधिक को भारत में एनजीओ-क्षेत्र में पारदर्शिता और सर्वोत्तम दस्तावेज़ीकरण प्रक्रिया के लिए (2009) 'उत्कृष्ट वार्षिक रिपोर्ट' पुरस्कार मिला. इसके अलावा, 'मदर टेरेसा' अवॉर्ड (2010), 'महाराष्ट्र टाइम्स' द्वारा 'यूथ आइकन' अवॉर्ड (2011), 'इंद्रधनु फाउंडेशन' द्वारा 'युवोन्मेष' अवॉर्ड, 'द स्पिरिट ऑफ मास्टर' अवॉर्ड (2012), 'आईसीए' अवॉर्ड और 'सावित्री सम्मान' पुरस्कार (2016), 'एनबीसी' पुरस्कार (2017), 'मानवता-नायक' पुरस्कार (2020) आदि प्राप्त कर चुके हैं.

 
(लेख में उल्लेखित लड़कियों के नाम सुरक्षा  कारणों से बदल दिए गए हैं.