IICC चुनाव : सलमान खुर्शीद मुख्यधारा की राजनीति में क्यों नहीं हैं?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 29-07-2024
IICC Election Special: Why is Salman Khurshid not in mainstream politics?
IICC Election Special: Why is Salman Khurshid not in mainstream politics?

 

अमीना माजिद सिद्दीकी

देश के जाने माने संगठन इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर (IICC) के चुनाव को लेकर हर बार की तरह इस बार भी बहुत ज्यादा घमासान चल रहा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद इस बार भी अध्यक्ष पद के दावेदार हैं. 
 
11 अगस्त को इंडियन इस्लामिक कल्चर सेंटर का चुनाव होने जा रहा है. ऐसे में सलमान खुर्शीद इस बार क्या विजन लेकर चुनावी रण में उतरे हैं. हमारी संवाददाता अमीना माजिद सिद्दीकी ने उनसे खास बातचीत की. पेश हैं साक्षातकार के खास अंश:
 
आपने  इंडिया इस्लामिक सेंटर के चुनाव में उतारने के बारे में कब सोचा और क्यों?

देखिए सोचा तो बहुत नहीं मैंने और मैं चाहता था कि मैं  किसी और चीज में व्यस्त न हो क्योंकि पार्टी के सामने  बहुत बड़े  मसायल हैं . एक सवाल मेरे सामने आया था कि क्या हम खुदमुख्तार रह पाएंगे इस सेंटर में रहकर धीरे धीरे हुकूमत जो है वो वो ईदारों पर अपना पंजा जमा रही है  तो कही ऐसा न हो के इस किस्म के ईदारे हमारे  हाथ से चले जाए. तब मैंने इलेक्शन में उतारने के बारे में सोचा.

इस बार इलेक्शन को ज्यादा अहमियत दी जारी रही कैम्पेनिंग के लिए कैंडिडेट मुंबई तक जा रहे है इसपर क्या कहेंगे आप?

देखिए जो मेरा तजुर्बा है वो यह है कि लोग  जहां जहां अच्छी तादाद में हमारे मेंबर्स हैं  वहां लोग अक्सर जाया करते है. मेरा तो ये मानना है कि इलेक्शन के दौरान ही हम क्यों  जाएं  अगर हम एक ताल्लुक बना के रखना चाहते हैं और हम चाहते हैं कि लोगों की शिरकत रहे और हमारा ये आना जाना  बरकरार रहना चाहिए.

ये 5 सालों तक ही होना चाहिए लोगों की बात सुन्नी चाहिए अगर हम चाहते हैं कि इसका एक  जम्हूरि निजाम बने तो समझिए इलेक्शन के समय पर जाना एक शुरुवात होगी उन बातों की जो हमें अगले 5साल करनी होगी और जिससे सेंटर का भला होगा.

अगर आप इलेक्शन जीतते है तो क्या बदलाव लाएंगे इस्लामिक सेंटर में ?

बुनियादी चीज ये है कि बहुत सारे लोगों के बहुत ख्वाब है. कि हम उसमें ट्रेनिंग करें या हम इसमें उर्दू जबान सिखाए. हम इसमें और सेंटर्स की बुनियाद बनाएंगे और वो मुख्तलिफ शहरों में सेंटर बने. मैं कहता हूं कि सबसे पहली बात है कि हम ये समझ लें कि ये सेंटर का मक़सद क्या है

इसका मकसद था कि हिंदुस्तान में जो सबसे बेहतर चेहरा हिंदुस्तान के मुसलमानों का है वो हम दुनिया को दिखा सके और वो उस बेहद बेहतर जैसे चेहरे में हिंदुस्तान के मुख्तलिफ लोग जमा है ऐसा नहीं एक इस्लामिक सेंटर में सिर्फ एक ही मजहब के लोग हैं. कई मजहबों के लोग हमारे इस्लामिक सेंटर में है लेकिन इस्लाम एक तहजीब कल्चर तमद्दुन (मिल जुलकर रहना) को कैसे हिंदुस्तान प्रोजेक्ट करता है, गंगा जामनी तजीब को कैसे दिखाता है. ये हम सेंटर के जरिए दिखाना चाहते है. राष्ट्रीय विकास के लिए हमारा जो योगदान है उससे हम दुनिया के सामने दिखाना चाहते हैं.

सेंटर एक सेक्यलर सोच के साथ शुरू हुआ था क्या वो उसपर बरकरार है?

सेक्यलर सोच के डो पहलू हो सकते है एक तो ये के आप कम्यूनल नहीं है दूसरा पहलू ये है कि आप उस चीज को बहुत मशक्कत और मेहनत के साथ प्रोजेक्ट करें या तो आप बैठे बैठे किसी चीज को वे यकीन रखें या उस यकीन को लोगों तक पहुंचाने कि आप कोशिश करें.

एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी हर इदारे में है. ऐसा नहीं कि ये सिर्फ हमारी जिम्मेदारी है ये हर ईदारे की जिम्मेदारी है की एक दीवार खड़ी न की जाए  जहां ये कहा जाए कि येसिर्फ हमारा है आपका नहीं. इस मुल्क में हम लोग सब एक साथ रहते हैं और हम सब बाशिन्दे इस मुल्क के हैं और हमें हक है कि एक फैमिली की तरह एक ही खानदान की तरह हमें मिलजुल कर रहना चाहिए .

आज के टाइम में interfaith डायलॉग की कितनी जरूरत है?

बहुत ज्यादा जरूरत है. interfaith डायलॉग से हिंदुस्तान में नहीं पूरी दुनिया में तो फिर डायलॉग क्यों के जो फाइठस  वो पूरी दुनिया में फैले हुए हैं. ऐसा तो हो नहीं सकता कि हिंदुस्तान का इस्लाम एक है और सऊदी अरब का इस्लाम कुछ और है और जो इस्लाम इंग्लैंड में है या अमरीका में है वो कुछ और है.तो हम हर मजहब की सबसे बेहतर तस्वीर और किस तरह से हम इकट्ठा होकर एक साथ रह सकते हैं. इस बात को प्रोजेक्ट करें और कहें ये इस्लामिक सेंटर का प्रोजेक्शन है तो ये कोई ना माने कि इस्लामिक सेंटर इस्लाम तक महदूद है.इस्लामिक सेंटर हिंदुस्तान की सही तहजीब को पूरा प्रोजेक्ट करता है.

दूसरे कंडीडटेस के बारे में क्या कहना चाहेंगे आप उन्हें एक अच्छा कॉम्पिटीशन माना जा रहा है.

अच्छी कॉम्पिटिशन एक बड़ी अच्छी बात है और जो कंपटीशन है वो फिर इलेक्शन के दिन तय करेगा कि कौन ज्यादा कामयाब रहा. कौन कम कामयाब रहा लेकिन अच्छे लोग लड़े सब लोग लड़े. सिर्फ एक बुनियादी बात को हर एक याद रखें कि ये हमारे लिए नहीं है.

यह किसी किसी पोलिटिकल पार्टी के लिए नहीं है.यह किसी एक ओर किसी तंजीम के लिए नहीं है. ये हमारा है जब हम कहें तो उसमें हम सब जो मेंबर्स है. इसके वो सब का ही हक बनता है कि ये हम अपने जो ख्वाब हैं, उनकी ताबीर हम यहां देख सके उनको हम पूरा कर सके और उसमें हम लोग सभी गए.

मुस्लिम कम्युनिटी को किन बातों पर अहमियत देनी चाहिए?

मुस्लिम कम्युनिटी अगर इस्लाम पर अहमियत दें तो वही अच्छी बात है. इस्लाम में सूफीज्म का ही बहुत अहम पहलू है और सूफीज्म का हिंदुस्तान की तहजीब है उसमें एक बहुत बड़ा रोल है एक नजरिए से देखें तो वो भक्ति मूवमेंट है, दोनों का रिश्ता अगर हम समझ जाए तो हम एक बहुत कामयाब देश होंगे,

आप समय कैसे निकलेंगे इस्लामिक सेंटर के लिए?

प्रेसीडेंट का कम दिमाग लगाना होता है, पॉलिसी बनाना होता है, सोचना होता है, अच्छे लोग अपने साथ लेने होते हैं और अच्छे लोग जब साथ होंगे तो हर शख्स अपने अपने एरिया में अच्छा काम करेगा तो फिर वक्त जो है वह बेस्ट यूटिलाइज होगा.  अगर एक वक्त वकील है वकालत भी करनी है.एक सियासी आदमी है तो सियासत भी करनी है और अगर एक सोशल वर्कर है तो सोशल वर्क भी करना है तो ऐसा नहीं हो सकता कि सोशल वर्कर से भी सोशल वर्कर हो और पॉलिटिशन हो या जो पब्लिक फिगर हो वो सिर्फ पब्लिक फिगर हो. उसको और किसी से कुछ मतलब नहीं एक डॉक्टर सीनियर डॉक्टर भी हो, ऐसा नहीं है.डॉक्टर सोशल वर्कर भी हो सकता है. सोशल वर्कर एजुकेशनिस्ट भी हो सकता है. एजुकेशनिस्ट एक स्कॉलर भी हो सकता है और स्कॉलर एक पब्लिक फिगर भी हो सकता है और किसमें कितना टैलंट है और कौन इन सब चीजें कर सकता हैवक्त बताएगा.

Main stream पॉलिटिक्स से दूरी की क्या वजह रही है?

मेरी दूरी नहीं है धरना प्रदर्शन करना पॉलिटिक्स नहीं है, दिमाग का इस्तेमाल करना mainstream पॉलिटिक्स है. constituency को रेप्रिज़ेन्ट आप सिर्फ parliament में रहकर ही नहीं कर सकते पार्लिमेंट के बाहर भी होता है तो मैं ये मानता हूं के जो पार्लिमेंट के बाहर होता है उसकी अपनी अहमियत है और अगर हम पार्लिमेंट में नहीं है तो उसका मतलब ये नहीं कि हम इनसे पॉलिटिक्स से दूर है.

हम वर्किंग कमेटी में जाते हैं. वहां काम करते हैं जो पार्टी की तरफ से जो भी हमको जिम्मेदारी दी जाती है, उसमें काम करते हैं और पार्टी से जिम्मेदारी मिले ना मिले.

ज़हन में बात बाकी रहती है कि हमें आवाम के लिए आम लोगों के लिए काम करना है. वही पॉलिटिक्स है. पॉलिटिक्स का काम इलेक्शन लड़ना अकेले नहीं है.पॉलिटिक्स का काम है आवाम की तय की गई  बातों की और उनके टासुरात की तरजुमानी करना है. ये आप कैसे करें  किताब लिखकर करें आपसे इंटरव्यू देकर करें.

किसी को स्कूल में डाल के करें. किसी को अस्पताल भजा कर करें. वो सारी चीजें जो है उसकी शोहरत ने की जाती. नेकी करेंकुएं में डालें और भूल जाइए नेकी होनी चाहिए और जो भी समाज में रिफॉर्म हो सकता है जो भी हम अब समाज की बेहतरी के लिए कर सकते हैं, वो करते रहें.

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