मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली
हुआ यूं कि मिस्र का खलीफा नील नदी में हर साल आने वाले बाढ़ से बड़ा हैरान था. उसने एक साइंसदान को कहा कि वह नील नदी की बाढ़ से निबटने का कोई हल निकाले. वह वैज्ञानिक उन दिनों बसरा में था और उसने दावा किया कि नील नदी के बाढ वाले पानी को पोखरों और नहरों के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है और उस पानी को गर्मी के सूखे दिनों में इस्तेमाल किया जा सकता है.
अपना यह सुझाव लेकर, वह वैज्ञानिक काहिरा आया, और तब जाकर उसे यह इल्म हुआ कि इंजीनियरिंग के लिहाज से उसका सिद्धांत अव्यावहारिक है. लेकिन मिस्र के क्रूर और हत्यारे खलीफा के सामने अपनी गलती मान लेना, अपने गले में फांसी का फंदा खुद डालने जैसा ही था, ऐसे में उस वैज्ञानिक ने तय किया कि सजा से बचने के लिए वह खुद को पागल की तरह पेश करे.
नतीजतन, खलीफा ने उसे मौत की सजा तो नहीं दी, लेकिन उसको उसी के घर में नजरबंद कर दिया. उस वैज्ञानिक को मनमांगी मुराद मिल गई. अकेलापन और पढ़ने के लिए बहुत कुछ.
दस साल बाद जब उस खलीफा की मौत हुई, तब जाकर वैज्ञानिक छूटा. यह वापस बगदाद लौट गया और तब तक उसके पास बहुत सारे ऐसे सिद्धांत थे, जिसने उसे दुनिया का पहला सच्चा वैज्ञानिक बना दिया.
उस वैज्ञानिक का नाम था, इब्न अल-हैतम जिसने दस साल की नजरबंदी के दौरान भौतिकी और गणित के सौ से अधिक काम पूरे कर लिए थे.
हम सब जानते हैं और पढ़ते आ रहे हैं कि सर आइजक न्यूटन ही दुनिया के अब तक के सबसे महान वैज्ञानिक हुए हैं, खासकर भौतिकी (फिजिक्स) की दुनिया में उनका योगदान अप्रतिम है.
सर आइजक न्यूटन को आधुनिक प्रकाशिकी (ऑप्टिक्स) का जनक भी कहा जाता है. न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण और गतिकी के अपने नियमों के अलावा लेंसों और प्रिज्म के अपने कमाल के प्रयोग किए थे. हम सबने ने अपने स्कूली दिनों में, प्रकाश के परावर्तन और अपवर्तन के उनके अध्ययन के बारे में जाना है और यह भी कि प्रिज्म से होकर गुजरने पर प्रकाश सात रंगों वाले इंद्रधनुष में बंटकर दिखता है.
लेकिन, न्यूटन ने भी प्रकाशिकी के अपने अध्ययन के लिए एक मुस्लिम वैज्ञानिक की खोजों का सहारा लिया है जो न्यूटन से भी सात सौ साल पहले हुए थे.
वैसे, आमतौर पर यही माना जाता है, और खासतौर पर विज्ञान के इतिहास की चर्चा करते समय यही कहा जाता है कि रोमन साम्राज्य के उत्कर्ष के दिनों के बाद और आधुनिक यूरोप के रेनेसां (नवजागरण) की बीच की अवधि में कोई खास वैज्ञानिक खोजें नहीं हुईं. पर यह एकतरफा बात है और जाहिर है, भले ही यूरोप अंधकार युग में रहा हो, पर यह जरूरी नहीं है कि बाकी दुनिया में भी ज्ञान के मामलें में अंधेरा छाया था. असल में, यूरोप के अलावा बाकी जगहों पर बदस्तूर वैज्ञानिक खोजें चल रही थीं.
अरब प्रायद्वीप के इलाके की बात करें तो नवीं से तेरहवीं सदी के बीच का दौर वैज्ञानिक खोजों के लिहाज से सुनहरा दौर माना जा सकता है.
इस दौर में गणित, खगोल विज्ञान, औषधि, भौतिकी, रसायन और दर्शन के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई. इस अवधि के बहुत सारे विद्वानों और वैज्ञानिकों में एक नाम था इब्न अल-हैतम का, जिनका योगदान सबसे बड़ा माना जा सकता है.
अल-हसन इब्न अल-हैदम का जन्म 965 ईस्वी में इराक में हुआ था और उन्हें आधुनिक वैज्ञानिक तौर-तरीकों का जनक माना जाता है.
आमतौर पर माना जाता है कि वैज्ञानिक तौर-तरीकों से खोज करने में घटनाओं की परख, नई जानकारी हासिल करना या पहले से मौजूद जानकारी को ठीक करना या उसे प्रेक्षणों तथा मापों के आंकड़ों के आधार पर फिर से साबित करना, संकल्पनाएं नाकर उनके आंकड़े जुटाना है और इस तरीके की स्थापना का श्रेय 17वीं सदी में फ्रांसिस बेकन और रेने डिस्कार्तिया ने की थी, पर इब्न अल-हैतम यहां भी इनसे आगे हैं.
प्रायोगिक आंकड़ों पर उनके जोर और एक के आधार पर कहा जा सकता है कि इब्न अल-हैदम ही इस ‘दुनिया के पहले सच्चे वैज्ञानिक’थे.
इब्न अल-हैदम ही पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने यह बताया कि हम किसी चीज को कैसे देख पाते हैं.
उन्होंने अपने प्रयोगों के जरिए यह साबित किया कि कथित एमिशन थ्योरी (जिसमें बताया गया था कि हमारी आंखों से चमक निकलकर उन चीजों पर पड़ती है जिन्हें हम देखते हैं) जिसे प्लेटो, यूक्लिड और टॉलमी ने प्रतिपादित किया था, गलत है. इब्न अल-हैदम ने स्थापित किया कि हम इसलिए देख पाते हैं क्योंकि रोशनी हमारे आंखों के अंदर जाती है. उन्होंने अपनी इस बात को साबित करने के लिए गणितीय सूत्रों का सहारा लिया था. इसलिए उन्हें पहला सैद्धांतिक भौतिकीविद भी कहा जाता है.
लेकिन इब्न अल-हैदम की प्रसिद्धि पिन होल कैमरे की खोज के लिए अधिक है और इसतरह उनके हिस्से में प्रकाश के अपवर्तन (रिफ्रैक्शन) के नियम की खोज का श्रेय भी आना चाहिए. इब्न अल-हैदम ने प्रकाश के प्रकीर्णन (डिस्पर्शन) की खोज भी की कि किसतरह प्रकाश विभिन्न रंगों में बंट जाता है. इब्न अल-हैदम ने छाया, इंद्रधनुष और ग्रहणों का अध्ययन भी किया और उन्होंने यह भी बताया कि पृथ्वी के वायुमंडल से किस तरह प्रकाश का विचलन होता है. इब्न अल-हैदम ने वायुमंडल की ऊंचाई भी तकरीबन सही मापी और उनके मुताबिक पृथ्वी के वायुमंडल की ऊंचाई करीबन 100 किमी है.
कुछ जानकारों का कहना है कि इब्न अल-हैतम ने ही ग्रहों की कक्षाओं की व्याख्या की थी, और उनकी इसी बात के आधार पर बाद में कॉपरनिकस, गैलीलियो, केपलर और न्यूटन ने ग्रहों की गतिकी का सिद्धांत दिया.
(यह लेख इल्म की दुनिया सीरीज का हिस्सा है)
— Awaz -The Voice हिन्दी (@AwazTheVoice2) April 3, 2021