राकेश चौरासिया
गुरु नानक देव जी का चरित्र दैवीय प्रकाश से जीवन पर्यन्त आलोकित रहा. उनके आध्यात्म, मानवता और शिक्षाओं ने हिंदू और मुस्लिम दोनों वर्गों के दिलों पर राज किया. देश और दुनिया में अलौकिक अलख जगाने के बाद उन्होंने जीवन में अंतिम समय में करतारपुर साहिब (अब पाकिस्तान) में ठिकाना बना लिया था. एक दिन गुरु नानक ने भाई साधरण को बताया कि अब उनके बैकुंठगमन का समय निकट आ गया है.
उनकी इस घोषणा के बाद उनके हिंदू-मुस्लिम अनुयायियों में कोलाहल मच गया. सब उन्हें इस बात के लिए मनाने लगे कि वे इतनी जल्दी उन्हें अनाथ छोड़कर न जाएं. बाबा नानक जी ने मुस्कराते हुए कहा कि प्रकृति के अपने नियम हैं, जिन्हें परमात्मा गढ़ता है और ये नियम अटल हैं. इसके बाद करतारपुर साहिब में भारी भीड़ जुटने लगी, जिसको भी इस दुखद खबर का पता चलता, वह उनके अंतिम दर्शनों के लिए उनके पास आने लगा. इसी बीच गुरु नानक देव जी ने ने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था, जिन्हें बाद में गुरु अंगद देव जी के नाम से जाना गयाा. इस पर कुछ लोगों ने तीव्र विरोध किया था. इसीलिए गुरु नानक देव जी ने गुरु अंगद देव जी को करतारपुर साहिब छोड़कर खडूर साहिब जाने की सलाह दी थी.
बाबा नानक की मृत्यु कैसे हुई?
बाबा नानक देव जी का कटक पूर्णमासी 15 अप्रैल 1469 के दिन पंजाब में राय भोई की तलवंडी (वर्तमान ननकाना साहिब) में अवतरण हुआ था और उन्होंने 70 वर्षों तक आध्यातिमक लीलाएं रचते हुए 22 सितम्बर 1539 को करतारपुर साहिब में अपना नश्वर शरीर त्याग दिया. एक दिव्य ज्योति पृथ्वी ग्रह की यात्रा पूरी करके परम ज्योति में विलीन हो गई. इसलिए, गुरु नानक देव जी की मृत्यु को अक्सर सिख परंपरा में उनकी "जोती जोत" के रूप में वर्णित किया जाता है.
ऐसा कहा जाता है कि इससे पहले गुरू जी साहिब ने एक फकीर को अपने संस्कार के बारे में कुछ निर्देश दिए थे. उनके परलोकगमन के बाद एक विवाद खड़ा हो गया. हिंदू चाहते थे कि उनके शव का वैदिक रीति से अंतिम संस्कार किया जाए, जबकि मुसलमान भी पहुंचा हुआ फकीर मानते थे. इसलिए वे उन्हें दफनाना चाहते थे. तब उस फकीर ने एक तजवीज पेश की कि उनके शव पर हिंदू और मुस्लिम समुदायों की ओर से अलग-अलग दायीं और बायीं ओर पुष्प चढ़ाए जाएं. जिस वर्ग के फूल ताजे रहेंगे, उसे अपनी रीति से अंतिम संस्कार का अधिकारी मिलेगा और जिसके फूल मुरजा जाएंगे, उस वर्ग का अधिकार खत्म हो जाएगा. इसके बाद दोनों वर्गों ने प्रस्ताव के अनुसार फूल अर्पित किए और उनका पाथिव शरीर चादर से ढंक दिया गया.
गुरू नानक देव जी की समाधी और कब्र दोनों क्यों हैं?
हालांकि उसके बाद 1684 में मां रावी नदी भयंकर रूप से क्रोधित हुईं और उस प्रलंयकारी बाढ़ में वह कब्र और समाधी दोनों बह गए. गुरु के बेदी वंशजों ने रावी नदी के बाईं ओर एक और स्मारक बनवाया. हालांकि इसकी तक बहुत आलोचना हुई थी, क्योंकि गुरु नानक जी कब्र और समाधी बनाए जाने और उनकी पूजा करने के विरोधी रहे हैं. एक तीसरा स्मारक भी है, जो एक डेरा है यानी एक बस्ती है, जिसे अब अब डेरा बाबा नानक कहा जाता है. यह अमृतसर से 50 किलोमीटर गुरदासपुर जिले में अब एक उपतहसील है.
करतारपुर कॉरीडोर
करतारपुर इसीलिए खालसा पंथ का सर्वोच्च आदरणीय स्थान है. यहां एक ही दैवीय शक्ति के तीन स्मारक हैं. बंटवारे के बाद करतारपुर साहिब पाकिस्तान में चला गया, जो भारत की सीमा से स्पष्ट दिखाई पड़ता है. पहले सिख भाई दूरबीन करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के दर्शन करते थे. संयुक्त राष्ट्र के पूर्व सदस्य जॉन मैक डॉनल्ड्स ने 20 जून, 2008 को करतारपुर साहिब स्थल का जायजा लिया था और इसे भारत और पाकिस्तान के बीच मैत्री के सेतु के रूप में वर्णन किया था, जिससे दोनों देशों की तल्खियां दूर हो सकती हैं. अब भारत और पाकिस्तान में एक समझौते के बाद करतारपुर कॉरीडोर बनवाया गया है. इस कॉरीडोर को पार करके भारतीय सिख भाई बिना पासपोर्ट या वीजा के करतारपुर साहिब की तीर्थ यात्रा पर जाते हैं.
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